संयुक्त राष्ट्र ने लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति को लेकर हाल में एक रिपोर्ट जारी की जो अपने आप में भयावह है। रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि अगर जलवायु परिवर्तन पर लगाम नहीं लगाई गई तो आने वाले समय में आम जनजीवन को बहुत बड़ा खतरा उठाना होगा।
आगे रिपोर्ट यह बताती है कि “वैश्विक स्तर पर निरंतर इंसानी गतिविधियों” की वजह से पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र को बहुत नुकसान हो रहा है। 700 से अधिक पेज की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन (climate change) और जैव विविधता (biodiversity) दो प्रमुख पर्यावरणीय खतरे बताए गए हैं। इसके अलावा तत्काल कोई ना कोई एक्शन लेने की भी अपील करती है।
70 से अधिक देशों के लगभग 250 वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में छठा वैश्विक पर्यावरण आउटलुक रखा जिसकी रिपोर्ट नैरोबी, केन्या में एक सम्मेलन में जारी की गई। सीएनएन के अनुसार, यह 2012 में पांचवें संस्करण के बाद से वैश्विक पर्यावरण की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की अब तक की सबसे बड़ी रिपोर्ट है।
मानव जीवन खतरे में
रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर हमें हवा में कार्बन को कम करने के साथ-साथ वाटर मैनेजमेंट और कई तरह के प्रदूषण को कम करना जरूरी है क्योंकि पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए हम भविष्य को सुरक्षित करने में मदद कर सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मानव निर्मित प्रदूषण दुनिया भर में होने वाली लगभग 25% मौतों और बीमारियों का कारण है हर साल, वायु प्रदूषण दुनिया भर में 7 मिलियन लोगों को मारता है जबकि जल प्रदूषण से 1.4 मिलियन तक मौतें होती है।
प्रदूषण के अलावा, हमारे पीने के पानी में कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो हमारे लिए खतरनाक संक्रमण पैदा कर सकते हैं और 2050 तक इंसानों की मौत का एक प्रमुख कारण बन सकते हैं।
इसके अलावा अनियंत्रित भूमि के कटाव से खेती को और अधिक खतरा होगा। वहीं औद्योगिक खाद्य पदार्थों का 33 प्रतिशत दुनिया भर में बर्बाद हो जाता है, क्योंकि आधे से अधिक औद्योगिक कचरा कई देशों में फेंका जाता है।
हमारे पास एक्शन लेने के लिए बहुत कम समय बचा है
रिपोर्ट को जारी करने वाली टीम का कहना है कि यह रिपोर्ट मानवता के लिए एक दृष्टिकोण है। हम एक चौराहे पर हैं। क्या हम अपने वर्तमान से चल सकते हैं, जिससे मानव जाति के लिए बनता हुआ एक अंधकारमय भविष्य रोशनी से भर जाए या क्या हम इससे अधिक स्थायी विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं? यही वह विकल्प है जो हमारे नेताओं को अब समझने चाहिए।
वहीं वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि हमारे पास विज्ञान, तकनीक और पर्यावरण की रक्षा के लिए पैसा है, जो 2050 तक पृथ्वी पर रहने वाले 10 अरब लोगों को बचाए रखेगा। इसको हम ऐसे भी कह सकते हैं कि “उम्मीद के मुताबिक रहने की हर वजह है।” “अभी भी समय है, लेकिन खिड़की बहुत जल्दी बंद हो रही है।”
हमें जो चाहिए वह राजनीतिक और आर्थिक होगा ताकि हम जिन सरकारों का चुनाव करें, वे तत्काल बदलावों को लागू करने के रास्ते में खड़े होने के बजाय काम करें।
पेरिस समझौते के मुताबिक कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए मौजूदा प्रयासों के विपरीत, जलवायु नीतियों को विकसित करने के लिए समय की आवश्यकता है।
भारत क्या कर सकता है?
भारत के मामले में अगर समुद्रों का जल स्तर बढ़ता है तो न केवल पूरे शहर जलमग्न हो जाएंगे, बल्कि इससे कई उद्योगों पर भी असर पड़ेगा, जिससे जान-माल की तबाही होगी और इसके साथ कई नई लाइलाज बीमारियों की चपेट में भी लोग आ सकते हैं।
एनर्जी के स्वदेशी तरीकों को अपनाना, खेती करना और भोजन और पानी की बर्बादी को कम करना जलवायु संरक्षण के कुछ व्यक्तिगत उपाय हैं। वहीं सरकार को जंगलों और मैदानी इलाकों को कॉर्पोरेट कवर के तहत आने से बचाने की आवश्यकता है, दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल 6 भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अब ठोस उपायों पर ध्यान देना चाहिए। वहीं देश की बढ़ती जनसंख्या भी एक ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि जीवन को बनाए रखने के लिए संसाधनों की कमी होती जा रही है।
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