बदल जाओ वक्त के साथ या वक्त बदलना सीखो
मजबूरियों को मत कोसो हर हाल में चलना सीखो…
जिंदगी पर ये लाइनें कितनी फिट बैठती हैं। हम अक्सर हालातों के आगे घुटने टेक देत हैं या फिर छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो जाते हैं। अक्सर हमें लगता है कि हमारी परिस्थिति ही सबसे खराब है और दूसरे लोग बहुत अच्छे से रह रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं होता, हर व्यक्ति की अपनी-अपनी परेशानियां होती हैं जो ताउम्र चलती रहती हैं।
वक्त के साथ चलना आसान नहीं होता। घड़ी की सुई की तरह बिना रूके चलना होता है भले कितने ही व्यवधान आएं। जो घड़ी की सुई से मेल मिला लेता है वह हर परिस्थिति से निकल जाता है लेकिन जो ऐसा नहीं कर पाता वह निराशा और उदासी में डूब जाता है।
यदि आप में इतनी हिम्मत है कि आप वक्त को बदल सकें तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता लेकिन यह सुनने में जितना आसान लग रहा है उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है। अपना समय बदलने के लिए आपको जिंदगी में कई कड़े इम्तिहान देने होंगे। उसके बाद ही आप खुशियों का रास्ता ढूंढ पाएंगे। जब आप ऐसा कर लेंगे तो वक्त भी आपको सलाम करेगा।
दरअसल जिंदगी हमें हर हालात में जीना सीखाना चाहती है। यही कारण है कि वह हमारे सामने नई-नई चुनौतियां लेकर आती है ताकि हम हर तरह की परेशानी को समझ सकें और उनका सामना करने के काबिल बन सकें। लेकिन चुनौतियों को मजबूरी मानकर झेलना एक अलग बात है। अक्सर लोग अपने हालातों का रोना रोते रहते हैं। खुद को दूसरों के सामने लाचार बनाते हैं इससे उन्हें सहानुभूति जरूर मिल जाती है लेकिन समस्या वहीं की वहीं रहती है। ऐसे में बेहतर यह है कि चुनौतियों का इस अंदाज में सामना किया जाए कि दूसरे आपकी मिसाल दें।
वक्त हर दिन कुछ नया सीखाता है और मजबूरी हमेशा आपको पीछे धकेलती है। ऐसे में यह हमारे ऊपर है कि हम वक्त के साथ खुद को ढ़ालना चाहते हैं या फिर खुद को मजबूर बनाकर रोना चाहते हैं।
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