बॉलीवुड की ‘कर्मा’ और ‘क्रांति’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में अंग्रेज ऑफिसर की भूमिका निभाने वाले अभिनेता टॉम अल्टर की आज 29 सितम्बर को छठवीं डेथ एनिवर्सरी है। अल्टर अमेरिकी मूल के थे, लेकिन उन्हें बॉलीवुड में उनके दमदार अभिनय के लिए जाना जाता है। ‘हमारी पलटन’ उनके बॉलीवुड करियर की आखिरी फिल्म थी। वह एक हिंदी फिल्म से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अभिनय में ही अपना करियर बनाने की सोच ली थी। इस अवसर पर जानते हैं उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें..
टॉम अल्टर का जन्म 22 जून, 1950 को उत्तराखंड के मसूरी में हुआ। इनके दादा जी वर्ष 1916 में अमेरिका के ऑहियो से भारत आए और लाहौर में रहने लगे। उनके पिता अमेरिकन क्रिश्चियन मिशनरी में थे। बंटवारे के बाद इनके पिता भारत आ गए और मसूरी में बस गए। टॉम की प्रारम्भिक शिक्षा मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल में हुई। यहां पर टॉम को हिन्दी भाषा सीखने का मौका मिल गया।
वह उच्च शिक्षा के लिए येल विश्वविद्यालय भी गए, लेकिन वहां की शिक्षा पद्धति उन्हें पसंद नहीं आई और वह वापस भारत चले आए। इन्होंने हरियाणा के सेंट थॉमस स्कूल में पढ़ाने का मौका मिला। टॉम को हिन्दी और उर्दू दोनों भाषा काफी पसंद थी, वह उर्दू शायरी के शौकीन भी थे। टॉम ने वर्ष 1977 में कैरोल एवंस से शादी की और इनके एक बेटा और एक बेटी हैं।
राजेश खन्ना की फिल्म ‘आराधना’ को देखकर वह इतना प्रभावित हुए कि इन्होंने बॉलीवुड फिल्मों में करियर बनाने का निर्णय लिया। अपनी इस जिद को पूरा करने के लिए इन्होंने फिल्म एंड इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे (FTII) में दाखिला लिया। यहां पर इन्होंने दो वर्ष तक अभिनय की बारीकियां सीखी और इन्हें नसीरुद्दीन, शबाना आजमी और बेजमीन गिलानी जैसे सहपाठी मिले।
एफटीआईआई से स्नातक करने के बाद अल्टर बॉम्बे चले गए और यहां चेतन आनंद द्वारा निर्देशित और देव आनंद अभिनीत फिल्म ‘साहेब बहादुर’ में उन्हें पहला ब्रेक मिला। हालांकि उनकी पहली रिलीज फिल्म वर्ष 1976 में रामानंद सागर निर्देशित ‘चरस’ थी। इसके बाद इन्होंने ‘राम भरोसे’, ‘हम किसी से कम नहीं’ और ‘परवरिश’ में अभिनय का मौका मिला।
टॉम अल्टर ने सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में बेहतर अभिनय किया। फिल्म ‘क्रांति’ में ब्रिटिश ऑफिसर की भूमिका के लिए उन्हें याद किया जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल पर बनी फिल्म ‘सरदार’ में इन्होंने लार्ड माउंटबेटन का किरदार निभाया। टॉम अल्टर सिर्फ एक अभिनेता ही नहीं बल्कि एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने इनके अलावा ‘कर्मा’, ‘जूनून’, ‘आशिकी’, ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘हवाएं’, ‘धुंध द फोग’, ‘भारत-भाग्य विधाता’ जैसी कई हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों के बीच छाप छोड़ी है। उन्हें वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
टॉम अल्टर को स्किन कैंसर था, जिसके कारण 29 सितंबर, 2017 को मुंबई स्थित आवास पर उनकी मृत्यु हो गई।
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