इतिहास में वो दिन आज भी इंसानियत को शर्मसार कर देता है। 6 अगस्त 1945 का दिन पूरी दुनिया कभी याद करना भी नहीं चाहती और भूल भी नहीं सकती। उसके बारे में पढ़कर, लिखकर या देखकर आज भी रूह कांप जाती है और शक होता है कि क्या हम सच में इंसान हैं?
उस वक्त विश्व युद्ध 2 अपने चरम पर था। पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था। इसी सब के बीच अमेरिका ने अपने “एनोला गे” नाम के अमेरिकी बॉम्बर प्लेन से जापान के हिरोशिमा पर दुनिया का पहला एटम बम गिरा दिया और पल भर में वहां दहशत ने सब कुछ निगल लिया। बम गिरने के कुछ ही मिनटों में 80,000 लोग मर गए और 40,000 लोग घायल हो गए थे।
हैवानियत यहीं नहीं रूकी, एक और बम गिराया गया 2 दिन बाद 9 अगस्त को अमेरिका ने नागासाकी पर भी एटम बम गिरा दिया और तब जाकर जापान ने सरेंडर किया। हिरोशिमा औऱ नागासाकी हमले में जली हुई लाशों और बंजर जमीन में बदल गया। लोग चिल्लाने लगे, कुछ लोगों को चिल्लाने तक का मौका नहीं मिला। बच्चे बूढ़े सब इसकी चपेट में आ गए। लोगों के शरीर जल रहे थे गल चुके थे।
नागासाकी अमेरिका का पहला टारगेट नहीं था। हमला कोकुरा पर होना था। कोकुरा ने बादलों को ढ़क रखा था और 9 अगस्त 1945 के उस विनाशकारी दिन से यह बच गया। जब बी-29 सुपरफ़ास्ट बॉम्बर प्लेन ‘बक्सकार’ (मेजर चार्ल्स स्वीनी द्वारा ऑपरेट किया जा रहा था) कोकुरा पहुंचा तो शहर बादल से ढका हुआ था। प्लेन शहर के तीन चक्कर लगा चुका था। ईंधन की कमी थी और फिर उन्होंने नागासाकी को निशाना बनाना तय किया।
दो बम विस्फोटों के कारण हुई तबाही का अंदाजा कोई लगा नहीं सका। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के आदेश के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका ने दो बम गिराए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे 1941 में जापानियों द्वारा पर्ल हार्बर बम विस्फोट का बदला बताया था।
अगर जापान 14 अगस्त को भी सरेंडर नहीं करता तो अमेरिका ने 19 अगस्त को एक और शहर पर परमाणु बम गिराने की योजना तक बना ली थी। परमाणु बम से जोरदार धमाका हुआ और 3900 डिग्री सेल्सियस तापमान जितनी गर्मी पूरे शहर में फैल गई। इसका असर ये हुआ कि 1005 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली गर्म आंधी पैदा हुई। बम में 6.4 किलोग्राम प्लूैटोनियम इस्तेमाल किया गया था। रेडिएशन का असर आज भी लोगों पर दिखाई देता है।
जापान हार नहीं मान रहा था और जंग जारी रख रहा था और अमेरिका ने जवाब में ये कार्यवाही कर दी। इसलिए हम सभी को समझने की जरूरत है कि जंग कभी कोई मसले का हल नहीं है। जंग तो खुद एक मसला है, एक समस्या है। कुछ लोग जो टीवी न्यूज और सोशल मीडिया पर जंग को लेकर ख्याल बुन रहे हैं उन्हें नहीं पता जंग की कीमत किस किस को चुकानी होती है। सैनिकों से लेकर आम नागरिक तक इसकी चपेट में आता है।
जंग शुरू होने के बाद कहां जाती है किसी को पता नहीं। वर्ल्ड वॉर 1 भी एक इंसान की मौत पर शुरू हुआ था। वर्ल्ड वॉर 2 कैसे शांत हुआ ये हमने आपको बताया ही अभी। हिरोशिमा और नागासाकी में आज भी उस दहशत के निशान हैं, लोगों में अभी तक रेडिएशन फैला हुआ है। युद्ध कोई खेल नहीं है जो टीवी स्टूडियो में आप देख रहे हो वो टीआरपी की भूख है, विज्ञापन की भूख है। ये सब फर्जी नेशनलिस्ट हैं जिन्हें जंग की कीमत का अंदाजा तक नहीं।
तो समझदार बनिए। पान पुड़िया की दुकान पर खड़े होकर जंग जंग चिल्लाना बहुत आसान है। हरजाना आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ता है। खैर जो लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान पर एटम बम गिरा दो उन्हें हिरोशिमा और नागासाकी में हुए हमले को पढ़ना चाहिए, बार बार समझना चाहिए और ये भी दिमाग में रखना चाहिए कि उस वक्त जापान के पास ये हथियार नहीं था।
लेकिन पाकिस्तान और भारत दोनों के पास ही ये “खिलौना” है जिससे शायद कोई भी खेलना नहीं चाहेगा। सोच कर देखिए किसी शहर की आबादी 3 लाख 50 हजार थी हमले के कुछ मिनटों बाद आदी आबादी झटके में मर जाती है। इस पर साहिर लुधियानवी की ये नज्म़ जरूर पढ़ी जानी चाहिए।
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमने आलम का ख़ून है आख़िरबम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती हैटैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती हैइसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।
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