पिछले कुछ समय से भारत विश्वस्तर पर खेल की दुनिया में नए कीर्तिमान रच रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत के कई खिलाड़ियों ने इतिहास रच देश का नाम गौरवान्वित किया है। खेलों के प्रति युवाओं के बढ़ते रूझान को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिट इंडिया अभियान शुरू किया है। इस अभियान की शुरूआत 28 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस पर की गई है। इस मुहिम की शुरूआत करते हुए पीएम ने कहा, फिट इंडिया अभियान स्वस्थ भारत की दिशा में एक अहम कदम है। बॉडी फिट है तो माइंड हिट है। फिटनेस के लिए इन्वेस्टमेंट तो जीरो है लेकिन इसमें रिटर्न 100 प्रतिशत है।
दरअसल टेक्नोलॉजी ने आज के दौर में बच्चों को उम्र से पहले बड़ा बनाने का काम किया है। टेक्नोलॉजी के बढ़ते विस्तार में बचपन गुम सा हो गया है। सितौलिया, गिल्ली डंडा जैसे खेलों की जगह अब मोबाइल, प्ले स्टेशन, ऑनलाइन गेम्स ने ले ली।
एक दौर वो था जब बच्चे दादी-नानी के जमानें से चले आ रहे खेलों से बचपन संवारते थे। गिल्ली डंडा, सांप सिढ़ी, अक्कड़, बक्कड़, चोर सिपाही जैसे खेल बच्चों को खूब भाते थे। इन खेलों को लोगों ने बचपन में खूब खेलें हैं। जब भी इन देसी खेलों का जिक्र होता है तो मानो लोगों के सामने बचपन की सारी यादें रील की तरह आंखों के सामने आ जाती है। मगर आज के दौर में कहां बच्चे गलियां इन खेलों से लदे मिलते हैं। ये खेल अब महज यादों या किताबों में ही सिमट कर रह गए हैं। आइए अपनी आने वाली पीढ़ी को दें इन खेलों के बारे में जानकारी।
ये मौका है बचपन की यादों को ताजा करने का। जी हां लंगड़ी टांग इन्हीं देसी खेलों में से एक है जो हर घर के आंगन में खेला गया है। इस खेल में आंगन, घर की छत या मैदान में चॉक या ईट की मदद से नौ खाने बनाए जाते हैं। बीच के गोले में क्रॉस का निशान लगाया जाता है। अब मिट्टी से बनी चीजों को फोड़कर एक छोटे आकार का गोल गुप्पल बनाया जाता है। जिसे पहले खाने से लेकर क्रॉस वाले खाने तक एक पैर के सहारे खिसकाया जाता है। खिलाड़ी और गुप्पल के क्रॉस वाले खाने में पहुंचने पर वह दोनों पैर रख विश्राम कर सकता है फिर वापस गुप्पल को पैर से तेजी से नौ खानों से बाहर फेंकना होता है। खिलाड़ी को क्रॉस वाले खाने से फांदकर उस गुप्पल को पैर से टच करना होता है। तभी खिलाड़ी इसे जीतता है। ऐसा नहीं करने पर दूसरे खिलाड़ी को मौका दिया जाता है। इस खेल में दो या दो से अधिक बच्चे खेल सकते हैं।
ग्रामीण इलाकों का सबसे लोकप्रिय खेल है गिल्ली डंडा। इस खेल को खेलने में जितने मजे हैं उतना ही खतरा भी। जरी सी चूक किसी की आंख के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। इस खेल को लकड़ी के एक छोटे टुकड़े जिसे गिल्ली बोलते है और डंडे के साथ खेला जाता है। गिल्ली को डंडे के सहारे जोर से मारा जाता है। उसी के आधार पर खेल में प्वाइंट्स डिसाइड होते हैं।
यह शहरों में खेले जाने वाल बिलियर्डस का देसी अवतार है। जिसे ग्रामीण अंचलों में बच्चे अपने अपने तरीकों से खेलते हैं। गांवों के साथ साथ यह शहर की गलियों में भी लोकप्रिय है। यह खेल कुछ कांच की छोटी-बड़ी गोलियों के साथ खेला जाता है। जिसमें उंगलियों के सहारे कांच की गोली पर दूसरी कांच की गोली पर निशाना लगाया जाता है। वहीं जमीन में गढ्ढा बनाकर उसमें गोलियां डाली जाती है सबसे ज्यादा गोलियां डालने पर जीत उसकी होती है। लेकिन आज के दौर में ये खेल बहुत कम देखने को मिलता है।
इस खेल को ज्यादातर लड़कियों द्दारा खेला जाता है। जिसमें दो बच्चे हाथों को आपस में जोड़कर चेन बनाते थे और बाकि बच्चों को इसके अंदर से गुजरना होता था। इस खेल में गाया जाता था पोसंपा भई पोसंपा, लाल किले में क्या हुआ, सौ रूपए की घड़ी चुराई, अब तो जेल में जाना पड़ेगा, जेल की रोटी खानी पडे़गी। इसके खत्म होने के बाद चैन बंद कर दी जाती थी। चैन के अंदर आने वाले बच्चे को आउट माना जाता था।
जी हां गावों में यह इसी नाम से जाना जाता है। इसे पिट्ठू खेल भी कहते है। इस खेल में दो टीमें होती है। इसमें 7 पत्थरों और कपड़े की बनी बॉल या सॉफ्ट बॉल का इस्तेमाल किया जाता है। पत्थरों को एक के ऊपर एक जमाया जाता है और एक निश्चित दूरी बनाकर बॉल से हिट किया जाता है। पहले एक टीम का आदमी पत्थर गिराता है जिन्हें उसी की टीम के खिलाड़ी दुबारा जमाते है। दूसरी टीम को इन खिलाड़ियों की टीम को बॉल से मारा जाता है। बॉल छू जाने पर वह टीम बाहर हो जाती है।
ये लड़कियों का सबसे पसंदीदा खेल है। जिसमें गोल-गोल छोटे पत्थरों को उछाला जाता है। दरअसल इसे खेलते वक्त पत्थर को हवा में उछाला जाता है उसके नीचे आने से पहले दूसरे पत्थर को पकड़कर उसे कैच किया जाता है। इस खेल से हाथों की अच्छी खासी कसरत हो जाती है।
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