हलचल

पुलवामा: आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही पर हावी होती राजनीति!

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकवादी हमले के बाद हम एक बार फिर आतंकवाद पर चर्चा कर रहे हैं। हमले के बाद सभी पक्षों के बीच हुई एक मीटिंग में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि वे सभी सरकार का समर्थन करेंगे और इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करेंगे। यह सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन क्या यह वास्तव में सच है?

पुलवामा आतंकी हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर, आतंकवाद को लेकर इस देश में पिछले कुछ समय में इतनी राजनीति हुई है तो क्या आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं?

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सरकार द्वारा आतंक से निपटना

अगर हम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के बारे में बात करते हैं तो 13 दिसंबर 2001 को संसद का हमला ध्यान में आता है। इस समय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA सत्ता में थी।

आतंकवाद को समाप्त करने और पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कई चर्चाएं हुईं लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों और अन्य भारी आबादी वाले शहरों में हमले जारी रहे।

मुंबई में 26 नवंबर 2008 के हमले के बाद क्या हुआ था। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सत्ता में थी। आतंकी हमले ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया और इसने पाकिस्तान को बेनकाब कर दिया।

हालांकि, दिल्ली से हैदराबाद और पुणे से बेंगलुरु तक हमले जारी रहे। यूपीए या एनडीए के शासन में रहें, हर सरकार को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इंटेलिजेंस की विभिन्नता, आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाना आदि। इसके बजाय मुद्दों को राजनीतिक लाभ के लिए उड़ा दिया गया था।

सीमा पार से घुसपैठ को रोकना सरकार और भारतीय सेना दोनों के लिए प्रमुख चिंता का विषय है। हाइटेक बॉर्डर फेंसिंग से लेकर लेजर वॉल सुविधा पर कई चर्चाएं हुई हैं लेकिन घुसपैठ की समस्या का समाधान नहीं हुआ है।

घुसपैठ: सबसे बड़ी चुनौती

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से घुसपैठ की घटनाएं बढ़ रही हैं: 2016 में 119, 2017 में 136 और 2018 में ये 143 तक थीं।

2008 के मुंबई हमले से पहले हमें इंटेलिजेंस से इनपुट मिले थे। खबरों के मुताबिक तत्कालीन लश्कर-ए-तैयबा के टेक्नोलॉजी प्रमुख जरार शाह ने आतंकवादियों को Google अर्थ का इस्तेमाल उनके पॉइन्ट्स तक पहुंचाया था।

ब्रिटेन इस पर नजर रखे हुए था। इंडियन इंटेलिजेंस के पास भी इस पर इनपुट थे लेकिन कुछ भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका।

पुलवामा हमला: एक खुफिया विफलता

पीएम मोदी की राष्ट्रीय सुरक्षा में विशेष रुचि देखकर यह महसूस किया गया कि इंटेलिजेंस एजेंसियों का कुशलता से उपयोग किया जाएगा। मोदी ने आईबी के पूर्व प्रमुख अजीत डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। आतंकवाद को रोकने के लिए किए गए प्रयास किए गए।

हालांकि ये प्रयास तकनीकी से अधिक राजनीतिक थे। पुलवामा हमले से पहले इंटेलिजेंस की विफलता की चर्चाएं थीं। कहा जा रहा है कि 8 फरवरी को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने CRPF को पत्र लिखकर घाटी में एक IED होने की सूचना दी थी।

लेकिन क्या डिमोनेटाइजेशन से टेरर फंडिंग नहीं रूकी?

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2016 में पीएम मोदी ने कहा था कि नोटबंदी से आतंकी फंडिंग खत्म हो जाएगी। यह भी चर्चा चल रही है कि भारत अगले वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की बैठक में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में डालने पर जोर देगा।

एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय निकाय है जो दुनिया भर में आतंक के वित्तपोषण का सर्वेक्षण करता है। इसका मतलब है कि हम स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान से आतंकी फंडिंग बंद नहीं हुई है।

मुद्दा यह है कि हमारे देश में राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा राजनीति अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है फिर चाहे किसी की भी सरकार हो।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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