लैंगिक असमानता पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है जिसे कम करने के लिए 2015 में दुनिया के 193 देशों ने एक साझा पहल की जिसके अनुसार सभी ने 17 क्षेत्रों (लैंगिक असमानता, गरीबी, जलवायु परिवर्तन आदि) में विकास के कामों के लिए कई लक्ष्य निर्धारित किए। इन्हें एसडीजी (टिकाऊ विकास लक्ष्य) कहा गया। टिकाऊ विकास लक्ष्य मतलब जिन क्षेत्रों में कुछ साल काम करके परिस्थितियों में सुधार किया जा सके।
एसडीसी में लैंगिक असमानता को दूर या कम करने के लिए 2030 तक का लक्ष्य रखा गया. सभी देशों ने इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए प्रण लिया और एड़ी-चोटी का जोर लगाने की बात कही। आपको लग रहा होगा हम 2030 से पहले इस बारे में क्यों बात कर रहे हैं, तो आइए बताते हैं।
दरअसल जिन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पिछले 4 साल में जो प्रयास हुए उनकी हाल में एक रिपोर्ट आई जिसे पहला एसडीजी जेंडर इंडेक्स कहते हैं। इंडेक्स से पता चलता है कि लैंगिक असमानता के क्षेत्र में एक भी देश अपने लक्ष्य तक तो पहुंचना दूर आसपास भी नहीं है। भारत इसमें 95वें स्थान पर है।
2.8 अरब महिला और लड़कियां है शामिल
लैंगिक असमानता को कम करने के लिए जो 193 देश शामिल हुए उनमें 2.8 अरब महिलाएं और लड़कियां है। पहले इंडेक्स को देखने के बाद आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि कितनी बड़ी संख्या में महिला और लड़कियों का भविष्य खतरे में है।
इंडेक्स तैयार करने के लिए शामिल देशों को लैंगिक असमानता के मामले पर शून्य से लेकर सौ तक अंक दिए गए हैं। 90 या इससे ज्यादा हासिल करने वाले को अच्छी प्रोग्रेस में तो 59 या उससे कम अंक वाले देशों को चिंताजनक हालत माना गया है। 21 देशों को 80 या उससे अधिक अंक तो 21 देशों को 50 से भी कम अंक मिले हैं।
गौरतलब है कि संसद में महिलाओं की ना के बराबर मौजूदगी, सैलेरी में अंतर और घरेलू हिंसाओं के मामलों में आज भी सभी देश कुछ अच्छा होने की दिशा में हाथ-पांव मार रहे हैं।
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