आधुनिक समय के सबसे प्रभावशाली गुरुओं में से एक व आजीवन विवादों से घिरे रहे गुरु ओशो उर्फ आचार्य रजनीश की आज 92वीं जयंती है। उनका जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन में हुआ था। ओशो का बचपन का नाम चंद्र मोहन जैन था। बाद में वह आचार्य रजनीश और फिर आगे चलकर गुरु ‘ओशो’ के नाम से मशहूर हुए। उनके आधुनिक और क्रांतिकारी विचार ही शायद उनकी एक अलग पहचान की वजह भी है। इस खा़स अवसर पर जानिए गुरु ओशो के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
ओशो के दुनियाभर में हैं लाखों फॉलोअर्स
रायसेन जिले के कुचवाड़ा में जन्मे चंद्र मोहन यानि ओशो ने डीएन जैन कॉलेज से वर्ष 1955 में फिलोसोफी में स्नातक डिग्री पूरी कीं। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1957 में सागर यूनिवर्सिटी से अच्छे अंकों के साथ फिलोसोफी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त कीं। इसके तुरंत बाद ही उन्हें रायपुर संस्कृत कॉलेज में टीचिंग शुरू कर दी थी। लेकिन जल्द ही कॉलेज के उप-कुलपति ने ओशो के ट्रांसफर की मांग कर दी, क्योंकि वह अपने छात्रों की नैतिकता, चरित्र और धर्म के लिए उन्हें खतरा मानता था।
उन्होंने वर्ष 1958 में जबलपुर यूनिवर्सिटी में फिलोसोफी लेक्चरर के रूप में पढ़ाना शुरु कर दिया था। वर्ष 1960 में उन्हें प्रमोट करते हुए प्रोफेसर बना दिया गया। आगे चलकर वो एक पब्लिक स्पीकर बने, जिसका उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुसरण किया। 1960 के दशक तक उन्हें आचार्य रजनीश के रूप में जाना गया, 70 के दशक के दौरान वो गुरु श्री रजनीश हुए, वर्ष 1989 में वो आम जनता के बीच ‘ओशो’ के रूप में जाने गए।
वक्ता के रूप में पूरे भारत की यात्रा की
ओशो ने वर्ष 1966 में विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया और एक गुरु व पब्लिक स्पीकर बन गए। एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में उन्होंने पूरे भारत की यात्रा भी कीं। समाजवाद और संस्थागत धर्मों की उनकी मुखर आलोचना और कामुकता के प्रति अधिक खुले रवैये ने उन्हें हमेशा विवादों में रखा।
1981 में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए थे ओशो
वर्ष 1970 में कुछ समय के लिए बंबई (जो आज का मुंबई) में बसने के बाद, ओशो ने एक आध्यात्मिक गुरु की भूमिका निभाई और शिष्यों को दीक्षा देना शुरू कर दिया, जिन्हें नव-संन्यासी के रूप में जाना जाता था।
उन्होंने वर्ष 1974 में पुणे में घूमते हुए एक आश्रम की स्थापना कीं, जिसने पश्चिमी देशों के लोगों को बड़ी मात्रा में अपनी ओर आकर्षित किया। ओशो वर्ष 1981 में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए और उनके अनुयायियों ने एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्थापना कीं, जिसे बाद में ओरेगन राज्य में ‘रजनीशपुरम’ के रूप में जाना गया।
वर्ष 1985 में ओरेगन कम्यून तब खत्म हो गया, जब खुद ओशो ने ही खुलासा किया कि कम्यून में आगजनी, हत्या का प्रयास, ड्रग तस्करी आदि सहित कई गंभीर अपराध हुए हैं। कुछ ही समय बाद उन्हें अमेरिकी प्रशासन ने नियमों के उल्लंघनों के आरोप में गिरफ्तार किया और अमेरिका से निर्वासित कर दिया। कई देशों की यात्रा करने के बाद वह पुणे लौट आए, जहां 19 जनवरी, 1990 को ओशो का निधन हो गया।
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