जेट एयरवेज देश की सबसे पुरानी निजी विमानन कंपनी के हालात आज बद से बदतर हो गए हैं। इस विमानन कंपनी को उस व्यक्ति ने खड़ा किया जो कभी ट्रैवल एजेंसी में खाड़ी देशों की उड़ानों के टिकट बुक करने का काम करता था और धीरे—धीरे एविएशन सेक्टर की बड़ी कंपनी स्थापित की। पर वह वक्त की मांग को समझ न सका और इंडिगो से 1 रूपये महंगे टिकट की लड़ाई में जेट एयरवेज को अर्श से फर्श पर ला दिया साथ ही चेयरमैन पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। जिसका खामियाजा जेट के कर्मचारियों को भी भुगतना पड़ा।
टिकट बुक करने से जेट एयरवेज की स्थापना तक का सफर
जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल का जन्म पंजाब के पटियाला जिले में हुआ था। वे 1967 में दिल्ली आकर बस गए थे। उनका एक गरीब परिवार से थे और उनके लिए दो वक्त की रोटी की जुगाड़ करना भी बड़ा मुश्किल भरा था। उन्होंने वहीं कनॉट प्लेस से संचालित होने वाली एक ट्रैवल एजेंसी में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया जिसे उनके चचेरे नाना चला रहे थे। उन्हें वेतन के रूप में प्रति माह करीब 300 रुपये दिये गये।
उन्होंने पर खाड़ी देशों की उड़ानों की टिकट बुक करने के साथ ही एविएशन सेक्टर की जानकारी भी होने लगी। कुछ समय बाद जब वे एविएशन सेक्टर में परिपक्व हो गये तो उन्होंने ट्रैवल इंडस्ट्री में अपने पांव फैलाने शुरू किए। इस दौरान उनके साथ काम करने वालों से अच्छे संबंध थे और धीरे—धीरे उनके दोस्तों की संख्या लगातार बढ़ती गई। इन्हीं दोस्त में कई विदेशी एयरलाइंस में कार्यरत थे। उन्हें टिकट की व्यवस्था से लेकर लीज पर एयरक्राफ्ट लेने तक की अच्छी समझ हो गई।
1973 में जेट एयर ट्रैवल एजेंसी खोली
नरेश गोयल ने 1973 में अपनी ही ‘जेट एयर’ ट्रैवल एजेंसी की शुरूआत की। इस नाम को लेकर उन्हें कई बार लोगों के उपहास का सामाना करना पड़ा, पर ये मजाक उनका हौंसला कमजोर नहीं कर सके।
1993 ई. में उन्होंने ट्रेवल एजेंसी को बंद कर ‘जेट एयरवेज’ की नींव रखी। शुरूआती दौर में उनके पास केवल दो विमानों, बोइंग 737 और बोइंग 300 ही थे। इसका प्रयोग वो चार्टेड फ्लाइट के तौर पर देखते थे। तब जेट ने ऊंची उड़ान भरी जब ज्यादातर प्राइवेट कंपनियां दिवालिया होकर धराशायी हो रही थीं।
वर्ष 2002 में जेट एयरवेज ने मार्केट शेयर में एयर इंडिया को भी पीछे कर दिया।
जेट एयरवेज वर्ष 2002 से लेकर के 2011 तक काफी मुनाफे में रहा था। इस बीच उसने शेयर मार्केट में आईपीओ लांच किया और 2007 में सहारा एयरलाइन को 2250 करोड़ रुपये में खरीद लिया। इससे उसको 27 विमान, 12 फीसदी मार्केट शेयर और कई सारे अंतरराष्ट्रीय रूट भी मिले।
2013 में एतिहाद ने जेट एयरवेज में 24 फीसदी हिस्सेदारी भी खरीद ली थी।
इंडिगो से प्रतिस्पर्धा बनी घाटे का सौदा
जेट एयरवेज की वर्तमान हालात के पीछे कारण कोई बड़ा कर्ज नहीं था, बल्कि अपनी प्रतिद्वंदी से 1 रुपए की लड़ाई में बर्बाद हुई। सिर्फ 1 रुपए ने एयरलाइन को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया।
दरअसल, बात आज से चार साल पहले 2015 की है। जेट एयरवेज का इंडिगो से किराये को लेकर प्रतिस्पर्धा करने के कारण जेट एयरवेज को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
जेट का किराया इंडिगो के मुकाबले एक रुपया प्रति किलोमीटर ज्यादा था। 2015 में जेट एयरवेज इंडिगो के सस्ते टिकट बेचने के ऑफर को बर्दाश्त नहीं कर पाई। जेट एयरवेज को इंडिगो के मुकाबले हर सीट पर प्रति किलोमीटर सिर्फ 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी।
टिकटों पर यात्रियों को बड़ी छूट दी, 2016 के शुरुआती नौ महीनों में इंडिगो को रेवेन्यू में प्रति किलोमीटर 90 पैसे का नुकसान भी उठाना पड़ा। यही वो वक्त था जब जेट एयरवेज को 1 रुपए की लड़ाई लड़नी थी। अगर जेट एयरवेज ने समय रहते 1 रुपए प्रति किलोमीटर की दर से टिकट सस्ता किया होता तो इंडिगो उसे मात नहीं दे पाती।
कंपनी के बस इसके बाद से हालात काफी बिगड़ने लगे थे। नवंबर 2018 से लेकर के अब तक जेट एयरवेज का शेयर गिरता गया। कंपनी को नवंबर में तीसरी बार तिमाही नतीजों में नुकसान उठाना पड़ा। 22 नवंबर 218 को कंपनी स्वतंत्र निदेशक रंजन मथाई ने इस्तीफा दे दिया था। तब से ही कर्मचारियों को वेतन मिलने में देरी होने लगी थी।
25 मार्च को जेट एयरवेज के चेयरमैन पद से नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनिता को इस्तीफा देना पड़ा।
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