भारतीय जनता पार्टी ने नई दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में अपने पदाधिकारियों, राज्य नेताओं, महासचिवों और अन्य कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई है। इस गहमागहमी से लग रहा है सत्तारूढ़ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के उत्तराधिकारी के सस्पेंस को जल्द से जल्द खत्म करने के मूड में है।
पार्टी अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने संसदीय चुनावों, राज्य चुनावों, नगर निकाय चुनावों और पंचायत चुनावों में लगातार जीत के साथ देश के बड़े हिस्से में भाजपा का झंडा लहराया। बीजेपी न केवल गुजरात जैसे अपने कुछ गढ़ों को बनाए रखने में कामयाब रही बल्कि पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में भी एंट्री ली।
हालांकि, बीते 5 सालों की अपनी शानदार सफलता की कहानी के बावजूद बीजेपी के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं। आइए एक नजर डालते हैं कि अगले भाजपा अध्यक्ष के सामने कौनसे चैलेंज होंगे।
1. विधानसभा चुनाव
पश्चिम बंगाल
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के एक जमाने में रहे वामपंथी गढ़ में अपनी पकड़ बना ली है, जहां अब तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी मुखिया है।
2019 के लोकसभा चुनाव के साथ, बीजेपी राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 जीतने में कामयाब रही।
बंगाल में भाजपा की भारी सफलता को अब 2021 के विधानसभा चुनावों में फिर से दोहराने के लिए पार्टी ने जमीनी तौर पर काम शुरू कर दिया है।
जम्मू और कश्मीर
महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद से लगभग एक साल से जम्मू-कश्मीर राज्य में एक निर्वाचित सरकार नहीं है।
यहाँ क्षेत्रीय दल जून 2018 में सरकार भंग होने के बाद से फिर से चुनाव कराने की माँग कर रहे हैं। जहां भाजपा जम्मू क्षेत्र में पैर पसार चुकी है तो कश्मीर अभी भी पहुंच से बाहर है।
दिल्ली
दिल्ली में 2020 में चुनाव होंगे। 2019 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस को पछाड़ते हुए राजधानी की सभी सात लोकसभा सीटों को कब्जा किया।
हालांकि, पार्टी ने 2014 में देश में एक बड़ी जीत हासिल की थी लेकिन अगले साल विधानसभा चुनावों में केवल तीन सीटों पर ही सिमट गई थी। AAP ने 67 सीटें जीतकर सरकार बनाई।
सहयोगी दलों को खुश रखना
अमित शाह ने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से एनडीए के सहयोगियों के साथ काफी तालमेल से कई काम किए। हालांकि इस दौरान बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के चंद्रबाबू नायडू और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी जैसे कुछ सहयोगियों को खो दिया।
इस बीच, शिवसेना जैसे सहयोगियों ने भाजपा पर राम मंदिर का वादा पूरा करने के लिए भाजपा पर दबाव बनाया। महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों के साथ, शिवसेना और राम मंदिर मुद्दे से निपटना नए पार्टी अध्यक्ष के लिए बड़ा काम साबित हो सकता है।
3. अमित शाह वाला अंदाज बनाए रखना
अमित शाह ने भाजपा के अतीत को ना देखते हुए पार्टी को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। 2019 के लोकसभा चुनाव में, पार्टी 543 सीटों में से 303 जीतने में कामयाब रही। उसे सत्ता में रहने के लिए अपने एनडीए सहयोगियों की जरूरत नहीं हुई। इस सफलता दर को बनाए रखना और बेहतर करना केंद्र में अपना दूसरा कार्यकाल भाजपा के लिए महत्वपूर्ण चुनौती होगी। पार्टी को आने वाले चुनावों में इनकंबेंसी फैक्टर से भी निपटना होगा।
4. दक्षिण में पार्टी को मजबूत बनाना
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल के हालिया लोकसभा चुनावों में, देश और पड़ोसी कर्नाटक में मजबूत मोदी लहर के बावजूद भाजपा ने बहुत खराब प्रदर्शन किया।
आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में भाजपा ने कुछ भी नहीं जीता। तेलंगाना में, यह मुश्किल से चार सीटों को जीतने में कामयाब रही।
5. लीडर्स पर लगाम
पार्टी ने इस बार मेनका गांधी और अनंत कुमार हेगड़े जैसे अपने कुछ विवादास्पद नेताओं के बयानों को पार्टी ने बिना किसी नुकसान के चुनाव से पहले ही हैंडल कर लिया। वहीं कुछ अन्य जैसे गिरिराज सिंह और साध्वी प्रज्ञा पार्टी के लिए नए सिरदर्द साबित हो सकते हैं जिनसे निपटना भी एक चुनौती भरा काम है।
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