देश में हर 12 साल बाद महाकुंभ और 6 साल के अंतराल में अर्धकुंभ होता है जहां देश भर से लाखों-करोड़ों लोग और साधु-संतों का हुजूम उमड़ता है। इस दौरान यहां हर बार शरीर पर भभूत लगाए, नाचते-गाते नागा साधु हर किसी के आकर्षण का केंद्र होते हैं। आपने इन साधुओं को सिर्फ कुंभ के दौरान ही देखा होगा, उसके बाद ये कहां रहते हैं? कहां चले जाते हैं? बहुत कम लोग इनकी रहस्यमयी दुनिया के बारे में जानते हैं।
कौन होते हैं नागा साधु, कैसी जिंदगी जीते हैं, आइए आज आपके हर सवाल का जवाब देते हैं और लिए चलते हैं आपरो नागा साधुओं की इस अद्भुत दुनिया में।
कैसे तैयार होते हैं नागा साधु?
नागा साधु बनने के लिए किसी भी व्यक्ति को अखाड़ा जॉइन करना पड़ता है। अखाड़ों में उसके बारे में सारी जानकारी लेने के बाद उसकी दीक्षा शुरू की जाती है। यहां उनकी ब्रह्मचर्य की परीक्षा लेते हैं जहां उनको तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म का ज्ञान दिया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में करीब 1 से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। दूसरी प्रक्रिया में नागा अपना मुंडन करवाते हैं और पिंडदान करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद इनकी जिंदगी सिर्फ अखाड़ों में ही गुजरती है। सांसारिक जीवन से इनका कोई वास्ता नहीं रहता है।
पिंडदान की प्रक्रिया में नागा साधु बनने वाला व्यक्ति खुद को परिवार और समाज के लिए मृत मानते हुए अपने हाथों से अपना श्राद्ध करता है जिसके बाद उन्हें नया गुरु नया नाम और पहचान मिलती है।
मुर्दों की राख से नहाते हैं
नागा साधु बनने के बाद ये अपने शरीर पर भभूत की चादर ओढ़ते हैं। मुर्दों की राख को शुद्ध करके ये उसे अपने शरीर पर मलते हैं।
नागा साधु कहां रहते हैं?
नागा साधुओं के रहने को लेकर कई तरह की बातें चलती है। अधिकांश का यह मानना है कि नागा साधु हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। यहां गुफाओं में इनका साधना स्थान होता है।
नागा साधु खाते क्या हैं?
नागा साधु 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। नागा साधुओं को भिक्षा लेकर खाना होता है जिसके लिए उन्हें 7 घरों से भिक्षा लेनी होती है, अगर किसी घर से कुछ ना मिले तो ये भूखे ही रहते हैं।
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