देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ (PVC) से सम्मानित शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की 9 सितंबर को 48वीं जयंती है। हिमाचल प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल पिता गिरधारी लाल बत्रा और पेशे से अध्यापिका मां कमल कान्ता बत्रा की विक्रम तीसरी संतान थे। विक्रम की स्कूली पढ़ाई डीएवी और केवी पालमपुर में हुई थी। कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा को बहादुरी के कारण ही उन्हें भारतीय सेना ने ‘शेरशाह’ तो पाकिस्तानी सेना ने ‘शेरखान’ नाम दिया था। उनके जीवन पर बॉलीवुड फिल्म ‘शेरशाह’ भी बन चुकी है, जिसको लोगों का खूब प्यार मिला व काफी पसंद भी किया गया। इस खास मौके पर जानिए कैप्टन बत्रा के बारे में कुछ अनसुने किस्से…
विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले स्थित घुग्गर गांव में हुआ था। कैप्टन विक्रम बत्रा शुरुआत से ही मेधावी छात्र रहे। उन्होंने वर्ष 1992 में 12वीं की बोर्ड एग्जाम में 82 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। इसके बाद उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ में मेडिकल साइंसेज में बीएससी डिग्री करने के लिए प्रवेश लिया। कॉलेज के पहले साल में वह एनसीसी की एयरविंग में शामिल हो गए थे। कॉलेज शिक्षा के दौरान विक्रम बत्रा यूथ सर्विस क्लब के अध्यक्ष हुआ करते थे। साल 1994 में कैप्टन बत्रा रिपब्लिक डे परेड में बतौर एनसीसी कैडेट शामिल हुए थे। इसके बाद उन्होंने घर आकर अपने माता-पिता से आर्मी ज्वॉइन करने की बात कही।
वर्ष 1995 में कॉलेज के दौरान ही विक्रम बत्रा मर्चेंट नेवी में सलेक्ट हो गए थे। लेकिन उनका मन बदल गया और उन्होंने मर्चेंट नेवी ज्वॉइन नहीं की। कैप्टन बत्रा ने अपनी मां को बताया कि जीवन में पैसा सब-कुछ नहीं है। मैं अपनी मातृभूमि के लिए कुछ बड़ा करना चाहता हूं। यह वह साल था जब उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से अपनी बेचलर डिग्री पूरी कर ली थी। साल 1995-96 में कैप्टन बत्रा ने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ में इंग्लिश कोर्स में एमए करने के लिए एडमिशन ले लिया था। इसके साथ ही वह कम्बाइंड डिफेंस सर्विसेज (CDS) परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।
विक्रम बत्रा मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान यूनिवर्सिटी में इवनिंग क्लासेज अटेंड करते थे। जबकि दिन में वह चंडीगढ़ की एक ट्रेवलिंग एजेंसी में ब्रांच मैनेजर के तौर पर पार्ट-टाइम काम करते थे। उन्होंने अपने पिता को इस बारे में बताते हुए कहा था कि वह घरवालों पर बोझ नहीं बनाना चाहते। साल 1996 में विक्रम बत्रा ने सीडीएस परीक्षा पास कर ली थी। इसके बाद वह सर्विसेज सलेक्शन बोर्ड (SSB) इंटरव्यू के लिए इलाहाबाद गए और सलेक्ट हो गए।
मास्टर्स डिग्री का पहला साल पूरी करने के बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी की पढ़ाई बीच में छोड़ आर्मी ज्वॉइन कर ली। इसके बाद बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में 19 माह का कड़ा प्रशिक्षण प्राप्त किया और 6 दिसंबर, 1997 को 13 जेएंडके राइफल्स में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल कर लिए गए।
साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को ढेर कर प्वांइट 5140 चोटी वापस हासिल कर ली थी। ये बड़ा इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था। वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां दाग रहे थे। विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में यह शब्द गूंजने लगा था।
इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ भी कहा जाने लगा। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसे जीतते ही विक्रम बत्रा अगले प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जो सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर भी पड़ता था।
7 जुलाई, 1999 को एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन बिक्रम बत्रा शहीद हो गए। इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘आप हट जाओ साहब। आपके परिवार और बीवी-बच्चे हैं।’ मेरी अभी शादी नहीं हुई है। सिर की तरफ़ से मैं उठाउंगा। आप पैर की तरफ़ से पकड़िएगा।’ ये कह कर 25 वर्षीय कैप्टन विक्रम आगे चले गए और जैसे ही वो उनको उठा रहे थे, उनको गोली लगी और वो वहीं शहीद हो गए। कारगिल के पांच सबसे इंपॉर्टेंट पॉइंट जीतने में कैप्टन विक्रम बत्रा की अहम भूमिका रही थीं।
कैप्टन विक्रम बत्रा परमवीर चक्र (26 जनवरी, 2000) पाने वाले आखिरी भारतीय जवान हैं। उन्होंने शहीद होने से पहले अपने बहुत से साथियों को बचाया था। उनके बारे में उस वक़्त इंडियन आर्मी चीफ जनरल वेदप्रकाश मलिक शोक प्रकट करते हुए कहा कि विक्रम इतने प्रतिभाशाली थे कि अगर वो जिंदा वापस आता, तो इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता। कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से भारत में ही नहीं बल्कि दुश्मन मुल्क पाकिस्तान में भी मशहूर हैं। पाकिस्तानी सेना ने कैप्टन बत्रा का युद्ध कौशल और पराक्रम देखकर उन्हें ‘शेरशाह’ नाम दिया था। वहीं, भारतीय सेना कोड वर्ड में उन्हें ‘शेरशाह’ कहा करती थी।
कैप्टन विक्रम बत्रा की चंडीगढ़ में एक गर्लफ़्रेंड थीं। उनका नाम हैं डिंपल चीमा। इस समय उनकी उम्र करीब 48 साल है। डिंपल पंजाब सरकार के एक स्कूल में कक्षा 6 से 10 के बच्चों को समाज विज्ञान और अंग्रेज़ी पढ़ाती हैं। पिछले 20 सालों में कोई भी ऐसा दिन नहीं बीता जब उन्होंने कैप्टन विक्रम को याद नहीं किया हो। डिंपल ने अपने प्यार शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की याद में आज तक शादी नहीं की है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, ‘एक बार नाडा साहेब गुरुद्वारे में परिक्रमा के बाद विक्रम ने मुझसे कहा था, ‘बधाई हो मिसेज बत्रा। हमने चार फेरे ले लिए हैं और आपके सिख धर्म के अनुसार अब हम पति और पत्नी हैं।’
डिंपल और विक्रम कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे। अगर विक्रम कारगिल से सही सलामत वापस लौटे होते तो उन दोनों की शादी हो गई होती। कैप्टन बत्रा की शहादत के बाद डिंपल के पास उनकी एक दोस्त का फ़ोन आया कि विक्रम बुरी तरह से घायल हो गए हैं और उन्हें उनके माता-पिता को फ़ोन करना चाहिए। जब वो पालमपुर पहुंचीं तो उन्होंने ताबूत में विक्रम के पार्थिव शरीर को देखा। वो जानबूझकर उसके पास नहीं गईं, क्योंकि वहां पर मीडिया के बहुत से लोग मौजूद थे।’ उसके बाद वो चंडीगढ़ लौट आईं और उन्होंने तय किया कि वो किसी से शादी करने की बजाय अपनी पूरी ज़िंदगी विक्रम की यादों में बसर करेंगी।
कारगिल पर जाने से पहले विक्रम ठीक साढ़े सात बजे गर्लफ़्रेंड डिंपल चीमा को फ़ोन किया करते थे, चाहे वो देश के किसी भी कोने में हों। डिंपल ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘आज भी जब मैं कभी घड़ी की तरफ़ देखती हूं और उसमें साढ़े सात बजे हों तो मेरे दिल की एक धड़कन मिस हो जाती है।’
गौरतलब है कि साल 2003 में कारगिल पर बनी फिल्म ‘एलओसी: कारगिल’ में कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया था। 2021 में कैप्टन बत्रा की ज़िंदगी पर एक और फिल्म रिलीज़ हुई, जिसमें उनका रोल सिद्धार्थ मल्होत्रा ने प्ले किया। इस बायोपिक का नाम उनके उपनाम ‘शेरशाह’ पर रखा गया। ओटीटी पर रिलीज़ हुई इस फिल्म को मूवी क्रिटिक्स से लेकर दर्शकों ने खूब सराहा है।
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