फिल्में समाज को आइना दिखाने का काम करती हैं। समाज से जुड़ने की कोशिश में लगी रहती हैं। कुछ ऐसे मुद्दों को लोगों के सामने रखने की कोशिश करती हैं जिसमें समाज कई बार खुद को गलत पाता है।
ये तो रही फिल्मों की सार्थकता। लेकिन आजकल ऐसा नजर नहीं आता। इंटरटेनमेंट के नाम पर आपको क्या परोस दिया जाता है आप समझ भी नहीं पाते। तथ्यों की सार्थकता कहीं लुप्त हो जाती है।
भारत में क्रिटिसिज्म से हमेशा ही डरा जाता है। अब फिल्में भी इस डर से कहां दूर रहतीं। डर है कि बाल ठाकरे पर बन रही फिल्म भी कहीं इसमें फेल ना हो जाए। ट्रेलर देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि तथ्यों को कैसे पेश किया जाएगा।
बाल ठाकरे अपने वक्त के कट्टर और ठोस छवि वाले नेता थे। शिव सेना के संस्थापक के रूप में उनको जाना जाता है। इस बात को कभी नकारा नहीं जा सकता है कि बाल ठाकरे एक मजबूत छवि वाले नेता थे।
लेकिन छवि के आगे सही और गलत को भी परखा जा सकता है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी बाल ठाकरे के रोल में नजर आ रहे हैं। ये परख पर्दे पर दिख पाती है या यह भी किसी बड़ी छवि वाले नेता की गलतियों की सफाई हमें देंगी। महिमामंडन तो अपने आप में एक खेल है। अक्सर फिल्मों का सहारा इसके लिए लिया जाता है।
मूवी का ट्रेलर सभी के सामने आ चुका है। अपने दुश्मनों से निपटने के लिए हिंसा हमेशा से ही ठाकरे का हथियार रहा था।
1966 में बाल ठाकरे ने शिव सेना का संस्थापन किया था और साल 1970 में शिव सेना के सदस्यों द्वारा एक ट्रेड यूनियन लीडर कृष्णा देसाई की हत्या कर दी गई। इस मामले में 16 शिव सैनिकों को दोषी पाया गया था।
क्या फिल्म में इसके लिए शिव सेना को जिम्मेदार ठहराया जाएगा? बाल ठाकरे उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा को उकसाया। इसी के साथ संस्कृति के नाम पर बाल ठाकरे ने वेलेनटाइन्स डे जैसे कार्यक्रमों की तरफ भी कड़ा रुख अपनाया।
1993 बाल ठाकरे ने टाइम पत्रिका को एक इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है अगर भारतीय मुसलमानों के साथ नाजी जर्मनी के यहूदियों जैसा व्यवहार अगर किया जाता है।
बात 1969 की है जब बाल ठाकरे को महाराष्ट्र कर्नाटक बॉर्डर मुद्दे को लेकर गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद दंगे छिड़ गए। दंगों में 69 लोग मारे गए और 250 घायल हुए। इसके अलावा 151 पुलिस वालों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी।
स्थिति तब और भी ज्यादा खतरनाक हो गई जब राज्य सरकार ने जेल में बंद बाल ठाकरे से गुजारिश की कि वे अपने आदमियों को रोकने के लिए कहें। इसको फिल्म में संगठन की हार के रूप में दिखाया जाता है या ठाकरे की छवि के आगे हिंसा को भी नकार दिया जाएगा।
कम्यूनिस्टों के खिलाफ भी बाल ठाकरे ने हमेशा जहर उगला। उनके काल में महाराष्ट्र में गुंडई काफी ज्यादा रही। ऐसे में क्या इस सभी को फिल्म में एक गौरव के रूप में दिखाया जाएगा? महाराष्ट्र के बाहर के लोगों से घृणा के उनके भाषणों में नजर आती थी।
खैर ध्यान देने वाली बात है कि मूवी के राइटर हैं संजय राउत। तो इस फिल्म को एक प्रचार फिल्म के रूप में आराम से देखा जा सकता है। निष्पक्षता की उम्मीद ना की जा सकती है और ना ही हमें करनी चाहिए। फिल्म के मेकर्स का कहना है कि फिल्म में बाल ठाकरे की पूरी कहानी जानने को मिलेगी लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है आप मूवी आने के बाद खुद देख लीजिएगा।
शिव सेना की नींव बाल ठाकरे ने रखी थी और शिव सेना वही है जिसने गैर मराठी लोगों को महाराष्ट्र से बाहर भगाने का काम किया था। बहुत से मुद्दे और भी हैं जिनका यहां मैं जिक्र नहीं कर रहा हूं। कुल मिलाकर देखना दिलचस्प होगा कि फिल्म में प्रचार की सीमाओं को कहां तक पहुंचाया जाता है।
ट्रेलर में इन सभी मुद्दों का जिक्र मिलता है लेकिन मिला कैसे वो मायने रखता है। जिस तरह से ट्रेलर में इन मुद्दों को दिखाया गया है उससे साफ पता चलता है कि फिल्म एक भक्त की कल्पना है। फिल्म को देखने जाएं तो एक बार फिर से याद कर लीजिएगा कि संजय राउत शिव सेना के जुझारू और कट्टर नेता हैं।
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