Teejan Bai became the famous Pandavani folk singer by singing stories narrated by her maternal grandfather.
‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित मशहूर लोक गायिका डॉ. तीजन बाई का 24 अप्रैल को 67वां जन्मदिन है। एक छोटे गांव से निकलकर ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित होने वाली इस लोक गायिका के जीवन के संघर्ष की कहानी दिलचस्प है। छत्तीसगढ़ की प्राचीन पंडवानी कला को दुनिया से परिचय कराने वाली तीजन बाई की इसको बढ़ावा देने में विशेष भूमिका रही है। उन्हें लोक गायन की मशहूर पंडवानी कला में महारत हासिल है। पंडवानी छत्तीसगढ़ में सुनाई जाने वाली महाभारत से जुड़े किस्सों से संबंधित एक गायन विधा है। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
तीजन बाई का जन्म 24 अप्रैल, 1956 को छत्तीसगढ़ राज्य के भिलाई जिले स्थित गनियारी गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम सुखवती और पिता का नाम चुनुक लाल पारधी था। तीजन छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति वर्ग के पारधी समाज से आती हैं। तीजन के नाना ब्रज लाल ने इन्हें छत्तीसगढ़ की प्राचीन गायन पंडवानी कला को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। नाना इन्हें महाभारत की कहानियां गाते सुनाते और धीरे-धीरे ये कहानियां तीजन बाई को याद हो गई। इनकी लगन और प्रतिभा को देखते हुए उमेद सिंह देशमुख ने इन्हें पंडवानी कला सिखाई।
तीजन ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस दौर में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं, जिसे वेदमती शैली के नाम से भी जाना जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गायन करते थे। तीजन बाई को छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की कापालिक शैली की पहली महिला कलाकार के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने देश-विदेश में अपनी इस कला जीवित रखा है और अब वे उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रही है। तीजन इन दिनों भिलाई में रहते हुए कई बालिकाओं को पंडवानी कला का प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
लोक गायन कलाकार तीजन बाई की शादी महज 12 साल की बेहद कम उम्र में कर दी गई थी। तीजन को इनके पारधी समाज द्वारा समाज से निष्काषित कर दिया गया था। इसकी वजह यह थी कि ये एक महिला होकर पंडवानी गायिकी की विधा में बेहद रुचि रखती थीं। इस तरह से बचपन से ही उनका संघर्ष शुरू हो गया था। तब वे एक झोपड़ी बनाकर अपनी जिंदगी जीने पर मज़बूर हो गई थी।
फिर एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और बस यहीं से तीजन बाई का जीवन एकदम से बदल गया। गौरतलब है कि इसके बाद तीजन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का जलवा दिखाया।
‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से पहले तीजन बाई को वर्ष 1988 में ‘पद्मश्री’, 1995 में श्री संगीत कला अकादमी पुरस्कार 2003 में डॉक्टरेट की डिग्री, 2003 में ‘पद्म भूषण’ 2016 में एम.एस. सुब्बालक्ष्मी शताब्दी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। सबसे रोचक बात यह है कि तीजन ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनकी उपलब्धि को देखते हुए बिलासपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
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