Suspension of 12 BJP MLAs in Maharashtra worse than expulsion: Supreme Court.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा की ओर से कथित दुर्व्यवहार के लिए 12 बीजेपी विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करने के लिए पांच जुलाई 2021 को पारित प्रस्ताव में हस्तक्षेप करने की ओर इशारा किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि निलंबन की अवधि अनुमेय सीमा से परे थी। न्यायाधीश एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि एक साल का निलंबन ‘निष्कासन से भी बदतर’ है क्योंकि उन निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व ही नहीं रह गया है। यदि निष्कासन होता है तो रिक्ति को भरने के लिए एक तंत्र है। एक साल के लिए निलंबन निर्वाचन क्षेत्र पर दंड के समान है।
उच्चतम अदालत की पीठ ने कहा कि संबंधित नियमों के अनुसार, विधानसभा के पास किसी सदस्य को 60 दिनों से अधिक निलंबित करने का कोई अधिकार नहीं है। इस संबंध में पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 190 (4) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि के लिए अनुपस्थित रहता है तो एक सीट खाली मानी जाएगी।
पीठ ने कहा, ‘यह निर्णय निष्कासन से भी बदतर है। कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। यह सदस्य को दंडित नहीं कर रहा है बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित कर रहा है।’
पीठ ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक की अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता है। ऐसा कहते हुए पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सी सुंदरम के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि न्यायालय विधानसभा द्वारा लगाए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकता है।
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