हिंदी के प्रसिद्ध छायावादी साहित्यकार सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की आज 127वीं जयंती है। निराला को जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा आदि के साथ हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख स्तंभों में गिना जाता हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी एक कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और कहानीकार थे, परंतु उन्हें कवि के रूप में ज्यादा ख्याति प्राप्त हुईं। इस खास अवसर पर जानिए अपने समय के मशहूर साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
साहित्यकार सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी, 1896 को बंगाल के मिदनीपुर जिले के महिषादल नामक रियासत में हुआ था। उनका परिवार मूलत: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ा कोला गांव के निवासी थे। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी सिपाही के तौर पर महिषादल में तैनात थे। निराला ने हाई स्कूल तक की पढ़ाई बांग्ला में की थी। बाद में उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत जैसी भाषाओं का अध्ययन घर पर किया।
सूर्यकान्त त्रिपाठी को बचपन से ही रामचरितमानस बहुत प्रिय थी। वह रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से काफी प्रभावित हुए थे। निराला स्वच्छंद प्रकृति के थे और उनकी स्कूल में पढ़ने में रुचि कम थी। वह घूमने, खेलने में अधिक व्यस्त रहते थे। उनका विवाह 15 वर्ष की आयु में मनोहर देवी से हुआ।
उनकी पत्नी शिक्षित थी और उनके आग्रह पर निराला ने हिंदी भाषा सीखीं व बांग्ला के बजाय हिंदी में साहित्य रचना शुरू की। परंतु प्रथम विश्व युद्ध के बाद फैली महामारी में निराला को अपनी पत्नी सहित चाचा, भाई और भाभी को खो दिया। इससे उन पर संयुक्त परिवार का भार आ गया। उनके एक पुत्री भी थी। इस संकट के क्षणों में निराला अकेले पड़ गए। उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर थी ऐसे में उन्होंने कई प्रकाशकों के यहां पर प्रूफ रीडर के रूप में काम किया। उन्होंने ‘समन्वय’ का भी सम्पादन कार्य भी किया।
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने महिषादल में नौकरी की। बाद में उन्होंने कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया। अगस्त 1923 से वह ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में कार्य करने लगे। इसके बाद उनकी लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में नियुक्ति हुई। निराला इस संस्था की मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक जुड़े रहे। वे वर्ष 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रहकर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद करते रहे।
निराला की पहली कविता ‘जन्मभूमि’ प्रभा नामक मासिक पत्र में जून, 1920 को प्रकाशित हुई। वहीं, उनका पहला कविता संग्रह 1923 में ‘अनामिका’ नाम से और पहला निबंध बंग भाषा का उच्चारण अक्टूबर, 1920 में ‘सरस्वमी’ मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। कवि निराला अपने समकालीन अन्य कवियों से यथार्थ को प्रमुखता से लिखा है। वे हिंदी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। उन्होंने गरीब और शोषित वर्ग के प्रति हो रहे अन्याय पर लिखा है। निराला एक तरह से विद्रोही कवि थे।
काव्य—संग्रह
अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), अनामिका (द्वितीय), तुलसीदास (1939), कुकुरमुत्ता (1942), अणिमा (1943), बेला (1946), नए पत्ते (1946), परिमल, अर्चना (1950), आराधना (1953), गीत गुंज (1954), गीतिका, सांध्य काकली, अपरा (संचयन), रागविराग, असंकलित रचनाएँ।
उपन्यास
अप्सरा (1931), अलका (1933), प्रभावती (1936), निरुपमा (1936), कुल्ली भाट (1938-39), बिल्लेसुर बकरिहा (1942), चोटी की पकड़ (1946), भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, काले कारनामे (1950) {अपूर्ण}, चमेली (अपूर्ण), इन्दुलेखा (अपूर्ण)
कहानी—संग्रह
लिली (1934), सखी (1935), सुकुल की बीवी (1941), चतुरी चमार (1945) सखी’ संग्रह का ही नये नाम से पुनर्प्रकाशन, देवी (1948) पूर्व प्रकाशित संग्रहों से संचयन, एकमात्र नयी कहानी ‘जान की !’
निबन्ध-आलोचना
रवीन्द्र कविता कानन (1929), प्रबन्ध पद्म (1934), प्रबल्ध प्रतिमा (1940), चाबुक (1942), चयन (1957), संग्रह (1963),
संचयन
दो शरण, निराला संचयन (सं. दूधनाथ सिंह), निराला रचनावली।
पुराण कथा
महाभारत (1939), रामायण की अन्तर्कथाएं (1956)
हिंदी के छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का निधन 15 अक्टूबर, 1961 को इलाहाबाद में हुआ।
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