जब हम तीसरी क्लास में शुक्ला सर के लेक्चर में बातें करते थे तो सर, कहते चुपचाप 1 घंटे क्लास के पीछे “कोने में” जाकर बैठ जाओ ! अब स्कूल का यह किस्सा आज क्यों याद आया इसके पीछे की वजह बेहद ही दिलचस्प है। उस वजह का नाम है सुप्रीम कोर्ट। अब आप सोच रहे होंगे क्लास और सुप्रीम कोर्ट का क्या कनेक्शन हो सकता है? चलिए पूरा माजरा समझाते हैं।
आज सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व अंतरिम डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को तलब किया। मामला था मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में सीबीआई के जांच अधिकारी का तबादला करना। पूरी कार्यवाही के बाद कोर्ट ने जो फैसला सुनाया उसे सुनकर वहां मौजूद हर कोई हैरान था।
एम नागेश्वर राव ने क्या किया ?
दरअसल मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में सीबीआई जांच चल रही है। जिसके लिए सीबीआई के अधिकारी नियुक्त किए हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच कर रहे अधिकारी एके शर्मा का तबादला नहीं करने के आदेश जारी किए थे जिसकी अवहेलना करते हुए एम नागेश्वर राव ने जांच अधिकारी का तबादला कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया ?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में खुद संज्ञान लिया और नागेश्वर राव पर अवमानना का केस ठोक कर तलब होने का फरमान जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने से पहले नागेश्वर राव से पूछा कि “आपको क्या सजा दें? हम आपको 30 दिनों तक जेल में भी डास सकते हैं ! इस पर अटॉर्नी जनरल ने दया दिखाने की दरख्वासत की।
कोर्ट ने एम नागेश्वर राव को पर अवमानना के आरोप में एक लाख रूपये का जुर्माना और पूरे दिन कोर्ट चलने तक वहीं एक कोने में बैठे रहने की सजा सुनाई। हालांकि राव ने सुप्रीम कोर्ट हलफनामा दाखिल कर अपनी गलती को स्वीकार कर माफी मांग ली थी।
ये कोर्ट की अवमानना क्या होती है?
अवमानना को ही कंटेप्ट ऑफ कोर्ट कहा जाता है। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट दो तरह से लगाई जाती है। एक सिविल कंटेप्ट और दूसरा क्रिमिनल कंटेप्ट। आज सिर्फ सिविल कंटेप्ट की बात करते हैं, क्रिमिनल कंटेप्ट की फिर कभी की जाएगी।
सिविल कंटेप्ट-
जब किसी अदालती फैसले की अवहेलना की जाती है तो सिविल कंटेप्ट होता है। जब अदालत किसी मामले में आदेश जारी कर दे और उसका तय समय में पालन ना हों या उसकी अवहेलना होती रहे तो मामला सिविल कंटेप्ट का बनता है।
सिविल कंटेप्ट के मामले में या तो पीड़ित पक्ष अदालत को इस बारे में बताता है कि आपके आदेश की अवहेलना हो रही है या फिर अदालत खुद संज्ञान लेती है।
मामला बनने के बाद अदालत उस शख्स को नोटिस जारी करती है जिस पर अदालत के आदेश को पालन करने की जिम्मेदारी थी। अदालत उससे पूछती है कि क्यों ना आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए। नोटिस के बाद दूसरे पक्ष से जवाब मांगा जाता है। उस जवाब से अदालत संतुष्ट हो जाए तो मामला खत्म हो जाता है और अगर नहीं तो फिर कार्रवाई शुरू होती है।
अदालत में पेश होने के बाद दोषी अपनी सफाई देता है। अगर वह मामले में बिना शर्त माफी मांग लें तो भी यह अदालत पर होता है कि वो माफ करें या सजा दें। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के मामलों में अधिकतम 6 महीनों की जेल भी हो सकती है।
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