सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विवादास्पद राफेल डीस की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया और तर्क दिया कि न्यायिक समीक्षा के लिए उनका दायरा सीमित है और साथ में ही यह कहा कि इस डील में कोई संदेह नहीं नजर आता।
इस बीच बीजेपी सरकार इसके बारे में कह रही है उन्हें क्लीन चिट मिल चुकी है। लेकिन बीजेपी में फैली इस खुशी के बीच कुछ है जो अटपटा—सा लगता है। सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले पर अगर हम पूरी नजर डालें तो 25 वें पैराग्राफ में कुछ चीजें हैं जो किसी को समझ नहीं आती।
इस पैराग्राफ में कहा गया है कि संसद की लोक लेखा समिति( पब्लिक आकाउंमट कमेटी) ने राफेल डील पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया,सीएजी) की रिपोर्ट की जांच की थी।
शुक्रवार की रात देर तक, न तो सरकार और न ही किसी और ने राफेल सौदे पर किसी भी सीएजी रिपोर्ट के बारे में बात की थी और ना ही पीएसी को सौंपी गई थी जिसका प्राथमिक कार्य संसद में पेश किए जाने के बाद सीएजी रिपोर्टों की जांच करना है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशीय बैंच द्वारा दिए गए फैसले के पैराग्राफ 25 में कहा गया है कि हमारे सामने रखी गई सामग्री से पता चलता है कि सरकार ने विमान के मूल मूल्य के अलावा किसी भी तरह का मूल्य विवरण का खुलासा नहीं किया है। यहां तक कि संसद में मूल्य निर्धारण विवरण की संवेदनशीलता दोनों देशों के बीच समझौते का उल्लंघन करने के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है।
मूल्य निर्धारण विवरण हालांकि CAG के साथ साझा किए गए हैं और सीएजी की रिपोर्ट पब्लिक ऑडिटर जनरल द्वारा जांच की गई है। रिपोर्ट का केवल एक पुनर्निर्मित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया था और सार्वजनिक डोमेन में है। देर रात तक, इस बात की कोई स्पष्टता नहीं थी कि कोर्ट ने सीएजी की किस रिपोर्ट का जिक्र किया था।
अधिकारियों ने कहा कि राफेल सौदे पर अभी तक कोई सीएजी रिपोर्ट नहीं आई है। यह बजट सत्र की शुरुआत से पहले जनवरी के एंड में ही पेश किए जाने की उम्मीद है। सीएजी के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि राफले सौदे पर अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं आई है।
यदि एक सीएजी रिपोर्ट सरकार तक पहुंच गई थी और संसद में दिखाने से पहले पहले अदालत के साथ इसको शेयर किया गया है तो यह विधायिका और कार्यकारी से जुड़े कई गंभीर प्रश्न इससे उठ सकते हैं।
सरकार के खातों के सर्वोच्च लेखा परीक्षक के रूप में सीएजी राष्ट्रपति को रिपोर्ट करता है, केंद्र में नहीं। 2015 और 2017 के बीच गृह सचिव राजीव महर्षि वर्तमान सीएजी हैं।
नियमों के अनुसार कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी जो उन्हें संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखेगा।
रिपोर्ट उसके बाद पीएसी में जाती है। सीएजी रिपोर्ट से समिति चुनिंदा अंश चुनती है जो गहन परीक्षा के लिए ऑडिट पैराग्राफ के रूप में जानी जाती हैं और सदन में अपनी रिपोर्ट जमा करती है।
शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के पैराग्राफ 25 के संदर्भ के बारे में पूछे जाने पर सीएजी के अधिकारी हैरान हुए।
इन सीएजी अधिकारियों के अनुसार, यहां तक कि “एक्जिट क़ॉन्फ्रेन्स” अभी तक निर्धारित नहीं की गई है। ऑडिट रिपोर्ट पूरी होने से पहले सीएजी को “एक्जिट कॉन्फ्रेंस” करनी होती है जो मंत्रालय या विभाग से संबंधित अंतिम तर्क करने और सहायक दस्तावेज प्रदान करने की अनुमति देता है।
एक्जिट कॉन्फ्रेंस के बाद सीएजी के लिए राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजने में कम से कम एक महीने लगते हैं। रिपोर्ट का अनुवाद और प्रिंट करने के लिए इस महीने की आवश्यकता होती है।
पिछले महीने, कई रिटायर्ड ब्युरोक्रिट्स ने राफेल सौदे और नोटबंदी पर सीएजी रिपोर्ट दाखिल करने में “अनिश्चित और अनचाही देरी” पर सवाल उठाया था।
राफेल डील पर कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस ने प्रेस कान्फ्रेंस की। वहां पर राहुल गांधी के साथ PAC के चैयरमैन मिल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा कि वह पीएसी के सदस्यों से आग्रह करेंगे कि अटॉर्नी जनरल और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को बुलाकर पूछा जाए कि राफेल मामले में कैग की रिपोर्ट कब और कहां आई है। आगे खड़गे ने कहा कि सीएजी में वह रिपोर्ट नहीं है। पीएसी ने ऐसी किसी भी रिपोर्ट की जांच नहीं की है। यह अजीब है।
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