हल्दीराम का नाम सुनते ही आपके दिमाग में तुरंत बीकानेरी भुजिया और नमकीन की दूसरी वैरायटी आ जाती है। यह प्रोडक्ट है ही ऐसा की एक बार खान शुरू करते हैं तो रूकने का मन ही नहीं करता। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि यह इतना चटपटा और लाजवाब कैसे है? तो आइए आपको इस भुजिया की चटपटी जर्नी के बारे में बताते हैं। हल्दीराम का इतिहास बताने से पहले आपको एक बात और बता दें कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्नैक्स फूड कंपनी केलॉग्स भुजिया से कारोबार की शुरुआत करने वाली दिग्गज भारतीय फर्म हल्दीराम में निवेश करने की तैयारी में है।
दुनिया भर में पहचान बना चुके हल्दीराम के भुजिया की खास बात इसका कुरकुरा और स्वादिष्ट होना है। इस भुजिया के कारोबार की शुरुआत बीकानेर से 1937 में हुई थी। इसे गंगा भीसेन अग्रवाल ने शुरू किया था। गंगाजी को उनकी मां और लोग प्यार से हल्दीराम कहते थे। यही कारण है कि इस प्रोडक्ट का नाम हल्दीराम रखा गया। गंगाजी ने भुजिया की यह रेसिपी अपनी एक आंटी से सीखी थी। एक बार उन्होंने बीकानेर में एक फैमिली के स्टॉल पर यह भुजिया रेसिपी ट्राय की, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया।
हल्दीराम की बनाई भुजिया जब लोगों को पसंद आई तो उन्होंने इसे बड़े स्तर पर शुरू करने की योजना बनाई। उन्होंने एक दुकान खोली, जिसमें यह भुजिया बेचना शुरू किया। यह भुजिया आम तौर पर मिलने वाली भुजिया से पतली और चटपटी थी इसलिए यह जल्द ही लोगों के बीच फेमस हो गई। हल्दीराम ने इस भुजिया का नाम बीकानेर के डूंगर सिंह के नाम पर ‘डूंगर सेव’ रखा। कुछ ही समय में उनकी यह भुजिया ब्रैंड के रूप में स्थापित हो गई।
बीकानेर में तो हल्दीराम की भुजिया के चर्चे जोर शोर से होने लगे थे। इस कारोबार को आगे ले जाने का किस्सा भी मजेदार है। दरअसल हल्दीराम अपने एक रिश्तेदार की शादी में शरीक होने कोलकाता गए थे। तब उन्हें आइडिया आया कि क्यों ना यहां भी भुजिया की एक दुकान खोली जाए। बस, इस आइडिया के साथ उन्होंने वहां एक दुकान खोली और वह चल निकली। हालांकि हल्दीराम की पहली पीढ़ी उनके इस कारोबार का ज्यादा विस्तार नहीं कर सकी लेकिन उनकी दूसरी पीढ़ी यानी की उनके पोतों ने इस कारोबार को और विस्तार दिया। 1970 में नागपुर और 1982 में दिल्ली तक ले गए।
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