नेल्सन मंडेला जिन्हें दुनिया शांति के दूत, अफ्रीका के ‘गांधी’ और ना जाने कितने नामों से जानते हैं। आज दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की छठी पुण्यतिथि है। नेल्सन मंडेला ने अपना पूरा जीवन शांति स्थापना, रंग-भेद की लड़ाई, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता में लगा दिया। वे अपनी अतिंम सांस तक लोगों के लिए हर संभव सतत प्रयासों में लगे रहे। आज महान शख्सियत नेल्सन मंडेला इस दुनिया में नहीं है लेकिन जहां भी अमन और चैन की बात होती है वहां मंडेला का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
अफ्रीका का गांधी कहा जाता था
नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका में ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में हुआ था। गांव के लोग बचपन में प्यार से इन्हें मदीबा कहते थे। मंडेला शुरू से ही गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे और इन्हीं से प्रेरणा लेकर वो रंगभेद के खिलाफ शुरू से ही काम करने लग गए थे। कुछ समय बाद अफ्रीका के लोग उन्हें ही वहां का गांधी कहने लगे। किसी इंसान को जीवित रहते हुए संयुक्त राष्ट्र की तरफ से उसके जन्मदिन को ‘मंडेला दिवस’ घोषित करना अपने आप में गर्व की बात थी।
जिंदगी के 27 साल जेल में काटे
मंडेला ने लोगों के सम्मान की लड़ाई और अधिकारों के लिए अपनी जिंदगी के 27 साल जेल में काटे। जेल से निकलने के बाद मंडेला 1990 में दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने और साल 1994 से 1999 तक वो पद पर बने रहे। नेल्सन मंडेला के रंगभेद के खिलाफ अभियान ने पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया। भारत सरकार ने 1990 में मंडेला को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा।
आपको बता दें कि मंडेला भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी नागरिक थे। साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया। मंडेला काफी समय बीमारी से जूझते रहे आखिरकार 5 दिसंबर, 2013 को 95 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
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