ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के लिए प्राचीनकाल से ही काफी प्रयास किए जा रहे हैं। अब तक मंगल, चांद और अन्य ग्रहों व उपग्रहों के रहस्यों से वैज्ञानिकोंं ने कई पर्दे उठाएं हैं। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) मिलकर सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए सोलर ऑर्बिटर को सोमवार को लॉन्च किया गया।
सोलर ऑर्बिटर को सूर्य तक पहुंचने में करीब 7 साल का समय लगेगा। इस दौरान यह करीब 4 करोड़ 18 लाख किलोमीटर की यात्रा तय करेगा। इस ऑर्बिटर को 10 फरवरी को फ्लोरिडा के केप कैनेवरल स्पेस सेंटर से ‘यूनाइटेड लॉन्च अलायंस एटलस—5’ नामक रॉकेट की मदद से लॉन्च किया गया। इस ऑर्बिटर से वैज्ञानिकों को काफी उम्मीद है।
सोलर ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट में 10 उपकरण हैं। इसमें हाई रिजोल्यूशन वाले छह कैमरे भी शामिल हैं। यह ऑर्बिटर सूर्य के ध्रुवों की पहली बार तस्वीरें लेगा। इसके जरिए पहली बार वैज्ञानिकों को ध्रुवों की जानकारी प्राप्त हो सकेगी। यह मिशन बहुत अहम है क्योंकि इसके पहले कोई भी यान या कोई भी ऑर्बिटर सूरज की इतने नजदीक नहीं पहुंचा और न ही तस्वीरें नहीं ले सका। इसकी मदद से वैज्ञानिक उन सवालों के जवाब ढूढ़ं सकेंगे, जिनका जवाब फिलहाल हमारे पास नहीं है। इसके साथ ही यह सूरज की सतह पर मौजूदा आवेशित कणों, हवा के प्रवाह, सूर्य के भीतर चुंबकीय क्षेत्र और इससे बनने वाले हेलिओस्फियर की जांच भी करेगा।
इस ऑर्बिटर को पृथ्वी और शुक्र की कक्षा से ऊपर ऐसी जगह स्थापित किया जाएगा जहां से सूर्य के दोनों ध्रुवों का नजारा दिख सके। सूर्य के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की तस्वीरों को कैद करने के लिए इस ऑर्बिटर को एक्लिप्टिक प्लेन से बाहर निकला जाएगा। जब यह अपने गंतव्य पर पहुंचेगा उसके बाद वैज्ञानिक इसे 24 डिग्री तक घुमा देंगे। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इससे मिली जानकारी से हमारी सोच में भी बदलाव जरूर आएगा।
सूर्य का तापमान बहुत अधिक होता है, इसकी बाहरी सतह का तापमान 5,778 केल्विन (5,505 °C, 9,941 °F) होता है। सूरज के पास जाना अंसभव है, तो फिर क्या ऑर्बिटर जल कर राख नहीं होगा। इस ऑर्बिटर को ऐसे ही अधिक तापमान को सह सकने के अनुकूल बनाया गया है। इसे जलने से बचाने के लिए एक खास तरह की शील्ड को लगाया गया है। इसके लिए इस शील्ड पर कैल्शियम फॉस्फेट की कोटिंग की गई है। इस तरह की कोटिंग को हजारों साल पहले मानव ने गुफाओं में बनाए भित्ति चित्रों को बनाने में इस्तेमाल किया था।
इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि सूरज पृथ्वी और अन्य ग्रहों के मौसम पर क्या प्रभाव डालता है। इसके अलावा यह भी मालूम हो सकेगा कि अंतरिक्ष यात्रियों, उपग्रहों, रेडियो और जीपीएस जैसी रोजमर्रा की तकनीक सूरज की वजह से किस कदर प्रभावित होती हैं।
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