आज तकनीक का युग है और बहुत से डिजिटल काम अब हम स्मार्टफोन से ही निपटा देते हैं। पर इससे हमारे शरीर को ज्यादा हानि नहीं पहुंचती है, पर घंटों तक मोबाइल पर समय गुजारना हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक है। आज का युवा मोबाइल का उपयोग के दौरान सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा समय दे रहा है जोकि एक नई बीमारी को दावत देने से कम नहीं है।
जी हां, एक सर्वे में यह पाया गया है कि महंगे मोबाइल का उपयोग करने वाले युवाओं में नोमोफोबिया नामक बीमारी बढ़ रही है। एडोब के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि लगभग तीन युवा मोबाइल उपभोक्ता लगातार एक साथ एक से अधिक उपकरणों का उपयोग करते हैं और अपने 90 फीसदी कार्य दिवस उपकरणों के साथ बिताते हैं।
इस अध्ययन के निष्कर्ष से यह भी संकेत मिलते है कि 50 फीसदी उपभोक्ता मोबाइल पर कार्य करने के साथ ही कंप्यूटर पर भी काम शुरू कर देते हैं। यदि उपभोक्ता ज्यादा समय तक मोबाइल फोन का उपयोग करते है तो उनकी गर्दन में दर्द, आंखों में सूखापन, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम और अनिद्रा आदि समस्याओं से पीड़ित हो सकता है। यही नहीं आजकल 20 से 30 वर्ष की आयु के लगभग 60 फीसदी युवाओं को अपना मोबाइल फोन खोने का डर बना रहता है, जिसे नोमोफोबिया कहा जाता है।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ.के.के. अग्रवाल कहते हैं, “हमारे फोन और कंप्यूटर पर आने वाले नोटिफिकेशन, कंपन और अन्य अलर्ट हमें लगातार उनकी ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं। यह उसी तरह के तंत्रिका-मार्गों को ट्रिगर करने जैसा होता है, जैसा किसी शिकारी द्वारा एक आसन्न हमले के दौरान या कुछ खतरे का सामना करने पर होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारा मस्तिष्क लगातार सक्रिय और सतर्क रहता है, लेकिन असामान्य तरह से।”
डॉ. अग्रवाल ने यह भी बताया कि “हम लगातार उस गतिविधि की तलाश करते हैं, और इसके अभाव में बेचैन, उत्तेजित और अकेला महसूस करते हैं। कभी-कभी हाथ से पकड़ी स्क्रीन पर नीचे देखने या लैपटॉप का उपयोग करते समय गर्दन को बाहर निकालने से रीढ़ पर बहुत दबाव पड़ता है। हम प्रतिदिन विभिन्न उपकरणों पर जितने घंटे बिताते हैं, वह हमें गर्दन, कंधे, पीठ, कोहनी, कलाई और अंगूठे के लंबे और पुराने दर्द सहित कई समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाता है।”
डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा, “गैजेट्स के माध्यम से सूचनाओं की इतनी अलग-अलग धाराओं तक पहुंच पाना मस्तिष्क के ग्रेमैटर डेंसिटी को कम करता है, जो पहचानने और भावनात्मक नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। इस डिजिटल युग में, अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है मॉडरेशन, यानी तकनीक का समझदारी से उपयोग होना चाहिए। हम में से अधिकांश उन उपकरणों के गुलाम बन गए हैं जो वास्तव में हमें मुक्त करने और जीवन का अनुभव करने और लोगों के साथ रहने के लिए अधिक समय देने के लिए बने थे। हम अपने बच्चों को भी उसी रास्ते पर ले जा रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि आज के समय में 30 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमें स्मार्टफोन अभिभावक और बच्चों के बीच संघर्ष का एक कारण बनते हैं। इस लत के कारण घर के बच्चे देर से उठते हैं और अंत में कई बार स्कूल नहीं जाते हैं। अधिकतर लोग रात्रि के समय सोने से पहले बिस्तर पर लेटे हुए स्मार्टफोन पर 30 से 60 मिनट का समय बिताते हैं।
स्मार्टफोन की लत से बचने के लिए इन बातों का रखें ध्यान
इलेक्ट्रॉनिक कर्फ्यू
इसका अर्थ यह है कि सोने से आधा घंटे पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट या स्मार्टफोन का उपयोग करने से बचें।
फेसबुक से बनाए दूरी
कोशिश करें कि हर तीन महीने में 7 दिन के लिए फेसबुक प्रयोग न करें।
सोशल मीडिया फास्ट
सप्ताह में कम से कम एक पूरे दिन सोशल मीडिया से दूरी बनाएं रखें। साथ ही मोबाइल को तब ही काम ले जब आप घर से बाहर गये हों।
कम्प्यूटर का उपयोग एक दिन में तीन घंटे से अधिक न करें।
मोबाइल पर आप एक दिन में दो घंटे से ज्यादा न करें। अगर करते हैं तो इसे सीमित करने की कोशिश करें।
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