Shrilal Shukla played an important role in freeing literature from romantic follies.
हिंदी के प्रमुख साहित्यकार व प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल की 28 अक्टूबर को 12वीं पुण्यतिथि है। शुक्ल साहब समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिए विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। इन्होंने वर्ष 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की व वर्ष 1949 में राज्य सिविल सेवा में चयनित होकर नौकरी करने लगे। वर्ष 1983 में शुक्ल भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त हुए।
‘राग दरबारी’ सहित इनका समूचा साहित्य किसी न किसी रूप में उपन्यास, कहानी, व्यंग्य व आलोचना को अभिनव अन्तः दृष्टि प्रदान करता है। श्रीलाल शुक्ल व्यंग्य के जरिए बड़ी-बड़ी बात कह दिया करते थे। साहित्य को रूमानी मूर्खताओं से मुक्त करने में इनकी भूमिका की अब शायद ज्यादा याद आएगी। इस अवसर पर जानिए इनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसम्बर, 1925 को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले स्थित अतरौली में हुआ था। शुक्ल का व्यक्तित्व अपने आप में मिसाल था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान थे। श्रीलाल शुक्ल संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। ‘कथाक्रम’ समारोह समिति के वह अध्यक्ष रहे। श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, लेकिन उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा।
उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे। लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली ‘राग दरबारी’ जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी।
‘राग दरबारी’ एक ऐसा उपन्यास है जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। यह उपन्यास एक आदर्श स्टूडेंट की कहानी कहता है, जो सामाजिक, राजनीतिक बुराइयों में अपने विश्वविद्यालय में मिली आदर्श शिक्षा के मूल्यों को स्थापित करने के लिए संघर्ष करता है। शुरू से अंत तक इतने निस्संग, सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है।
‘राग दरबारी’ का लेखन वर्ष 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अंतिम रूप में वर्ष 1967 में समाप्त हुआ। वर्ष 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। वर्ष 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई।
उपन्यास ‘राग दरबारी’ व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। ‘राग दरबारी’ की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है, जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और को-आपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल-फूल रही हैं।
‘स्वर्णग्राम और वर्षा’ का उल्लेख इसलिए किया जाता है क्योंकि इस व्यंग्य लेख से श्रीलाल जी ने ठहरी हुई शाब्दिक समझ और सामाजिक दृष्टि के खिलाफ हल्ला सा बोल दिया था। यह उनका प्रस्थान बिन्दु था, जहां से चलकर वे अविश्वसनीय मंजिलों तक पहुंचे। इस लेख से पता चलता है कि ‘प्रसृण मसृण’ और ‘सुबुक सुबुक’ वादी लेखन के प्रति उनके मन में कितना क्षोभ था। जीवन के प्रति उस दृष्टिकोण से गहरा असंतोष भी जिसके लिए यथार्थ शब्द का अर्थ विचित्र भावुकता से होकर गुजरता था।
‘सूनी घाटी का सूरज’ और ‘अज्ञातवास’ उपन्यास से इस असंतोष की झलक मिलने लगती है। ‘अंगद का पांव’ से उनकी अद्भुत व्यंग्य क्षमता की खबर लगती है। श्रीलाल शुक्ल का जाना एक गहरी उदासी का सबब है। श्रीलाल जी अपनी उपस्थिति भर से समय के उस हिस्से को बदल देते थे। उनके व्यक्तित्व के बहुत से पहलू हैं या कई रंग हैं। उनके जीवनकाल में ही कुछ लोगों ने उन पर भांति-भांति के संस्मरण लिखे हैं।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल को हिन्दी साहित्य में कथा व व्यंग्य लेखन के लिए जाना जाता है। वर्ष 1969 में श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। लेकिन इसके बाद ज्ञानपीठ के लिए 42 साल तक इंतज़ार करना पड़ा। इस बीच उन्हें बिरला फ़ाउन्डेशन का ‘व्यास सम्मान’, ‘यश भारती’ और ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार भी मिले। लंबे समय से बीमार चल रहे शुक्ल को 18 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी. एल. जोशी ने अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। वह भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक व भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की मानद फैलोशिप से भी सम्मानित थे।
ज्ञानपीठ पुरस्कार व पद्म भूषण से सम्मानित तथा ‘राग दरबारी’ जैसा कालजयी व्यंग्य उपन्यास लिखने वाले मशहूर व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल को 16 अक्टूबर को पार्किंसन बीमारी के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 28 अक्टूबर, 2011 को सुबह सहारा अस्पताल में श्रीलाल शुक्ल का 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
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