समाजवादी पार्टी के फाउंडर मुलायम सिंह यादव के भाई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) के प्रमुख शिवपाल सिंह यादव जल्द ही सपा में वापसी कर सकते हैं। दरअसल, यूपी विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने समाजवादी पार्टी को शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता रद्द करने के लिए दायर की गई याचिका को वापस लेने की इजाजत दे दी है। बता दें, नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने पिछले दिनों सपा की तरफ से विधानसभा अध्यक्ष से याचिका वापस लेने की अनुमति देने का आग्रह किया था। विधानसभा अध्यक्ष ने गुरुवार को इसकी मंजूरी दे दी। इसके बाद सत्ता के गलियारों में मुलायम परिवार में एका के कयास लगाए जा रहे हैं।
समाजवादी पार्टी ने 4 सितंबर 2019 को शिवपाल की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की याचिका दायर की थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष दीक्षित ने बताया कि याचिका का परीक्षण किया जा रहा था कि इसी बीच नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने 23 मार्च 2020 को यह कहते हुए कि याचिका प्रस्तुत करते वक्त कुछ महत्वपूर्ण अभिलेख और साक्ष्य संलग्न नहीं किए जा सके थे। इसलिए उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए। मुलायम परिवार में मतभेद के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के रूप में दो केंद्र बन गए थे।
बोलचाल न होने के बावजूद शिवपाल सिंह यादव ने वर्ष 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा था और जसवंत नगर से निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन बाद में अखिलेश यादव से खटपट इतनी बढ़ी कि शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) बना ली और पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार भी उतारे। भले ही नेता प्रतिपक्ष की तरफ से याचिका वापस लेने का कारण जरूरी साक्ष्य व अभिलेखों को संलग्न करना बताया गया हो, लेकिन की मानो तो मामला बस इतना भर नहीं है। सपा फाउंडर मुलायम शुरू से अपने परिवार में हुए इस बिखराव से काफी चिंतित व परेशान रहते हैं।
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जानकारी के अनुसार, शिवपाल यादव काफी दिनों से समाजवादियों के एक मंच पर आने की वकालत करते रहे हैं। पिछले दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी समाजवादियों के एक होने की जरूरत को स्वीकार किया था। बताया जाता है कि पिछले दिनों मुलायम सिंह के अस्वस्थ होने पर परिवार के सदस्य कई बार एक साथ बैठे तब ही इस बारे में भी बातचीत हुई। हिचक के बावजूद किसी न किसी रूप में एक दिखने और मुलायम की राजनीतिक पूंजी को संजोए व सुरक्षित रखने की जरूरत महसूस की गई। सपा की ओर से याचिका वापस लेने का मामला इसी का नतीजा माना जा रहा है।
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