Shivaji was successful in getting out of Aurangzeb's captivity on the strength of his courage and intelligence.
हिंद स्वराज के संस्थापक, प्रतापी योद्धा एवं श्रेष्ठ रणनीतिकार छत्रपति शिवाजी महाराज की आज 3 अप्रैल को 343वीं पुण्यतिथि है। मध्यकालीन भारत में शिवाजी ने स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने अपना औपचारिक राज्यारोहण वर्ष 1674 में रायगढ़ दुर्ग में करवाया और छत्रपति ‘सम्राट’ की उपाधि धारण की। इस खास अवसर पर जानिए वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
छत्रपति शिवाजी भोसले का जन्म 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के पुणे जिले स्थित जुन्नार शहर के नजदीक शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोसले और माता जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ) थी। शिवाजी के पिता शाहजी पहले अहमदनगर की सेवा में थे, लेकिन शाहजहां द्वारा जीत लेने के बाद वह बीजापुर के दरबार में सेवा में चले गए थे। शाहजी ने अपनी पूना की जागीर शिवाजी को सौंप दी। उनका लालन-पालन माताजी जीजाबाई की देखरेख में हुआ। उन्हें युद्ध कला और प्रशासन के बारे में जानकारी उनके संरक्षक दादोजी कोंडदेव से प्राप्त हुई थी। शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु रामदास थे। शिवाजी का विवाह 1640 ई. में साईबाई निम्बालकर के साथ हुआ था।
छत्रपति शिवाजी ने अपने नेतृत्व में पहला किला वर्ष 1646 में तोरण दुर्ग जीता था। उन्होंने बीजापुर सुल्तान से रायगढ़, चाकन, इन्द्रपुर, सिंहगढ़ और पुरंदर का दुर्ग भी जीत लिया था। शिवाजी ने 1656 ई. में रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाई। बीजापुर के शासक ने अपने सेनापति अफजल खां को शिवाजी को कैद रखने या मार डालने के लिए भेजा, किंतु शिवाजी ने बड़ी चतुराई से अफजल खां को मौत के घाट उतार दिया।
छत्रपति शिवाजी और मुगलों के बीच पहली मुठभेड़ वर्ष 1656-57 में हुई थी। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु के बाद वहां अराजकता उत्पन्न हो गई, इसका लाभ उठाते हुए मुगल बादशाह औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। उधर, शिवाजी ने भी जुन्नार नगर पर आक्रमण कर मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और 200 घोड़ों पर कब्जा कर लिया। औरंगजेब ने शिवाजी पर शिकंजा कसने के लिए अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्ता खां ने अपनी 1,50,000 सैनिकों के साथ चाकन के दुर्ग पर अधिकार किया और मावल में खूब लूटपाट की।
इस लूट का बदला लेने के लिए शिवाजी ने ठान ली और अपने 350 मावलों के साथ उन्होंने शाइस्ता खां पर हमला बोल दिया। किले पर अचानक हुए हमले में शाइस्ता खां बचकर भागने में सफल तो हुआ, लेकिन उसे अपने हाथ की चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। बाद में औरंगजेब ने आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी से निपटने के लिए दक्षिण का सूबेदार बना दिया।
मिर्जा राजा सवाई जयसिंह ने छत्रपति शिवाजी से निपटने के लिए नीति बनाई, जिसके तहत शिवाजी को चारों तरफ से घेरा जाना था। वर्ष 1665 में शिवाजी को उन्होंने पुरंदर में घेर लिया। इस पर उनके बीच पुरंदर की संधि हुई। इस संधि के तहत शिवाजी को 23 किले मुगलों को देने पड़े। शिवाजी के पुत्र शंभाजी को मुगल दरबार में भेजा जाना था। उसे 5 हजार की मनसब दी गई।
बाद में शिवाजी को व्यक्तिगत रूप से मिलने आगरा बुलाया, लेकिन वहां उचित सम्मान नहीं मिलने से वह नाराज हो गए और भरे दरबार में अपना रोष दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। इससे नाराज औरंगजेब ने उन्हें आगरा के किले में कैद कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों का पहरा लगा दिया, लेकिन अपने साहस और बुद्धिमता के दम पर वो चकमा देकर वहां से निकलने में सफल रहे।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने 5 जून, 1674 को अपना राज्याभिषेक रायगढ़ के किले में करवाया था, जिसे काशी के पंडित गंगाभट्ट ने पूरे विधि-विधान से संपन्न करवाया। इस अवसर पर शिवाजी ने ‘छत्रपति’, ‘हैंदव धर्मोद्धारक’ की उपाधि धारण की।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन में मुगलों के साथ काफी संघर्ष किया और कई मौकों पर उन्हें करारी मात दी। मुगलों के लिए शिवाजी से निपटना कभी भी आसान नहीं रहा। शिवाजी ने एक मजबूत मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। इस महान भारतीय योद्धा का निधन 3 अप्रैल, 1680 को हुआ। लेकिन कई सदियों बाद आज भी भारतीय उन्हें उनके पराक्रम और साहस के लिए याद करते हैं।
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