आंखों में एक आकर्षक अंदाज लिए लंबे बाल, जिनमें निहायत ही दिलचस्प सादगी, इसके साथ ही दिल को छू देने वाली मुस्कुराहट, क्या आपने कभी सोचा है कि किसी एक शख़्स की तारीफ़ में इतनी बातें कही जा सकती है, लेकिन एक शख्स ऐसा था जिनका नाम था जनाब अली सरदार जाफ़री। शायर सरदार जाफ़री की आज 110वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास अवसर पर जानिए उनकी जिंदगी के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
तमाम खूबियों के मालिक जनाब अली सरदार जाफरी ने उत्तरप्रदेश में गोंडा ज़िले के बलरामपुर में 29 नवंबर, 1913 के दिन अपनी आँखें खोलीं। घर के माहौल में बचपन के दिनों से ही मर्सिया हवा में घुली थी, जो आगे जाकर सरदार जाफ़री के ज़ेहन-ओ-दिल में बस गई और वो ख़ुद भी मर्सिए कहने लगे, जो मरते दम तक कहते रहे।
शायर अली सरदार जाफ़री की शुरुआती पढ़ाई बलरामपुर में हुईं, लेकिन फिर आगे की पढ़ाई के लिए वो वर्ष 1933 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए। कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़ने के आरोप में वर्ष 1936 से उन्हें इस यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया। इसके बाद वर्ष 1938 में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन कॉलेज का रुख किया। अंग्रेजी साहित्य में पढ़ाई करने के लिए फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी गए, जहां राजनीति विज्ञान विषय की छात्रा सुल्ताना से उन्हें मोहब्बत हो गईं, जिसके बाद उन्हीं से अली सरदार जाफरी की शादी भी हुईं।
कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में
लब-ए-बहार से निकली हुई दुआ तुम हो
अली सरदार जाफ़री शुरू से ही खिलाफ़त स्वभाव के रहे। उनकी कविताओं और शायरियों में जोश मलीहाबादी, जिगर मुरादाबादी और फ़िराक़ गोरखपुरी की तस्वीर देखी जा सकती थी। उन्होंने कॉलेज के दौरान जंग के ऊपर कई ग़ज़लें लिखीं। कई बार जेल भी गए और बलरामपुर में नज़रबंद होकर भी जिंदगी के कई दिन काटे। उनका मानना था कि किसी भी शायर की शायरी में दिल का लहू घुला हुआ होना चाहिए।
शायर अली सरदार जाफ़री सिगरेट पीने के आदी थे। एक बुझने को होती कि दूसरी में चिंगारी लगा दी जाती थी। हालांकि, वर्ष 1968 में वे इसे छोड़ पाने में कामयाब हुए, लेकिन शराब के जाम कभी उनके होठों से दूर नहीं गए।
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है
अली सरदार जाफरी को कुछ लोग एक कवि के रूप में ही जानते हैं। लेकिन वो एक कवि होने के साथ-साथ नाटककार, कहानीकार, फिल्म निर्माता, क्रांतिकारी, चिंतक व सामाजिक कार्यकर्ता होने का दमखम भी रखते थे।साहित्यिक इतिहास में उनकी किताबों का अहम योगदान है। उनकी लिखी दो डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘कबीर’ व ‘इकबाल और आजादी’ लोगों को काफी पसंद आईं।
मक़तल-ए-शौक़ के आदाब निराले हैं बहुत
दिल भी क़ातिल को दिया करते हैं सर से पहले
शायर जाफ़री के बाअदब हुनर को पूरी दुनिया ने सराहा। उन्हें देश-विदेश में कई सम्मान मिले। अली सरदार जाफरी को वर्ष 1965 में सोवियत लैंड नेहरु अवार्ड, वर्ष 1967 में पद्मश्री, वर्ष 1978 में पाकिस्तान सरकार द्वारा इक़बाल गोल्ड मेडल सम्मान, वर्ष 1979 में उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी अवार्ड, वर्ष 1983 में ‘एशिया जाग उठा’ के लिए कुमारन आसन अवार्ड, वर्ष 1986 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी द्वारा डी. लिट् जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान से नवाज़ा गया।
अली सरदार जाफ़री 86 साल की उम्र में 1 अगस्त, 2000 को ज़िंदगी भर कमज़ोर और दबे तबकों के लोगों के लिए लिखते-लिखते इस दुनिया से रुख़सत हो गए। जिसने ताउम्र हर दूसरे की मुस्कुराहट का ख्याल रखा, अब उन मुस्कुराहटों की वजह कहीं ना कहीं अली सरदार जाफ़री हैं।
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