बॉलीवुड की सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने भारतीय हिंदी सिनेमा को गुल सरीके वो नगमें दिए, जो आज भी संगीत प्रेमियों की रूह को तर कर देते हैं। इस जोड़ी के शंकर का पूरा नाम शंकर सिंह रघुवंशी और जय किशन का पूरा नाम जयकिशन दयाभाई पांचाल था। शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने करीब दो दशक तक बॉलीवुड को अपने एक से बढ़कर सुपरहिट गाने दिए। इस जोड़ी का संगीत बॉलीवुड लीजेंड राज कपूर को इतना भाया कि उनकी 19 फिल्मों में शंकर-जयकिशन ने म्यूजिक दिया। इन दोनों की जोड़ी द्वारा तैयार की गई धुनों को मोहम्मद रफ़ी साहब ने सबसे ज्यादा आवाज़ दीं। उन्होंने शंकर-जयकिशन के संगीत पर 363 गाने रिकॉर्ड किए थे। आज 15 अक्टूबर को इन दोनों में से एक शंकर सिंह रघुवंशी की 100वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास मौके पर जानिए उनके म्यूजिक डायरेक्टर शंकर सिंह के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
शंकर सिंह रघुवंशी का जन्म 15 अक्टूबर, 1922 को मध्य प्रदेश में हुआ था। उनके पिता राम सिंह रघुवंशी मूल रूप से मध्य प्रदेश के रहवासी थे, लेकिन वे काम के सिलसिले में हैदराबाद में बस गए थे। शंकर को बचपन से कुश्ती लड़ने का बड़ा शौक़ था। उनका कसरती बदन बचपन के इसी शौक़ का नतीजा था। शंकर सिंह बचपन में अपने घर के पास के एक शिव मंदिर में पूजा-अर्चना के समय जाया करते थे। इस दौरान तबला वादक का वादन उन्हें बहुत आकर्षित करता था। यहां से उनमें तबला बजाने की लगन दिनों प्रतिदिन बढ़ती गई। आगे जब महफ़िलों में तबला बजाते हुए उस्ताद नसीर खान की नज़र उन पर पड़ी तो शंकर को उन्होंने अपना चेला बना लिया था।
शंकर सिंह रघुवंशी के बारे में कहा जाता है कि एक बार वे हैदराबाद में किसी गली से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने पास से तबले की आवाज़ सुनीं और इसे सुनकर शंकर एक तवायफ़ के कोठे पर जा पहुंचे थे। दरअसल, तबला वादक को गलत बजाते सुनकर वे वहां पहुंचे और उसे टोक दिया। जब बात बढ़ी तो शंकर ने इस सफ़ाई से बजाकर अपनी क़ाबिलियत का परिचय दिया तो वहां उनकी वाह-वाही हो उठी।
मुंबई आने के बाद में शंकर अपनी कला को और निखारने के लिए एक नाट्य मंडली में शामिल हो गये, जिसके संचालक मास्टर सत्यनारायण हुआ करते थे। इसी के साथ शंकर सिंह पृथ्वी थियेटर में 75 रुपए महीने पर तबला वादक के रूप में नौकरी भी करने लगे। इसी के साथ उन्हें वहां थियेटर में छोटी-मोटी रोल मिल जाया करते थे। पृथ्वी थिएटर में काम करते हुए उन्होंने तबले के साथ-साथ सितार बजाना भी सीख लिया था।
शंकर सिंह रघुवंशी मुंबई में संगीत के साथ-साथ नियमित कसरत भी किया करते थे। वे जिस व्यायामशाला में कसरत किया करते थे वह पृथ्वी थियेटर से थोड़ी दूरी पर हुआ करती थी। यहां शंकर की मुलाक़ात दत्ताराम हुई। दत्ताराम तबले और ढोलक में माहिर माने जाते थे। इसके बाद शंकर सिंह दत्ताराम से तबला और ढोलक के बारीक़ हुनर सीखने लगे। कुछ समय बाद शंकर के वादन से काफी प्रभावित हुए दत्ताराम उन्हें फिल्मों में काम दिलाने के लिए दादर ले गए। उन्होंने यहां शंकर की मुलाक़ात गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट से कराई।
जिस वक़्त शंकर और दत्ताराम इस मुलाक़ात के लिए चंद्रवदन भट्ट के यहां पहुंचे थे, उसी समय वहां फिल्मों में काम की तलाश में जयकिशन भी पहुंचे थे। जब अंदर बुलाने के इंतज़ार में दोनों साथ ही बाहर बैठे हुए थे, इस दौरान दोनों की आपसी बात-चीत से पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाने में माहिर है। यहां से दोनों की दोस्ती आगे बढ़ी और शंकर ने जयकिशन को पृथ्वी थियेटर में नौकरी दिलवा दी। उस वक़्त पृथ्वी थियटर को एक अच्छे हारमोनियम मास्टर की जरुरत भी थी। यहां से दोनों साथ मिल कर काम करने लगे और आगे दोनों की दोस्ती इतनी बढ़ी कि पक्के दोस्त बन गए। ये बात अलग है कि यह जोड़ी एक बार आगे ज़ुदा भी हो गई थी।
लीजेंड एक्टर राज कपूर जब अपनी पहली फिल्म के लिए पृथ्वी थियेटर पहुंचे, उस दौरान उनकी शंकर-जयकिशन से मुलाक़ात हुई। राज कपूर ने अपनी डेब्यू फिल्म के संगीत के लिए पृथ्वी थियेटर्स के संगीतकार राम गांगुली को चुना। राम गांगुली के साथ उनके सहायक संगीतकार के रूप में शंकर-जयकिशन ने भी उस फिल्म में काम किया था। जब राज कपूर ने शंकर सिंह की तैयार की ‘अंबुआ का पेड़ है.. वही मुडेर है, मेरे बालमा.. अब काहे की देर है’ वाली धुन सुनीं, जिसे शंकर ने खुद लिखा और संगीतबद्ध किया था, यहीं से राज उनकी प्रतिभा के कायल हो गए।
इसके बाद राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘बरसात’ के लिए संगीत देने का काम शंकर-जयकिशन की जोड़ी को दिया। इस फिल्म का एक गाना ‘जिया बेकरार है, छायी बहार है आजा मेरे बलमा तेरा इंतज़ार हैं’ काफ़ी हिट हुआ था। शंकर-जयकिशन की जोड़ी इस फिल्म में सुपर हिट म्यूजिक दिया। इसके बाद इन दोनों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कई अवॉर्ड अपने नाम किए। इन दोनों की जोड़ी को 9 बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
शंकर-जयकिशन की इस प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी ने लगभग दो दशक तक संगीत जगत पर राज किया। इन दोनों ही जोड़ी साल 1971 तक कायम रही। 12 सितंबर, 1971 को जयकिशन के निधन के साथ दोनों की जोड़ी हमेशा के लिए बिखर गई। इसके बाद शंकर सिंह ने भी काम करना बंद कर दिया था। अपने जोड़ीदार के निधन के करीब 16 साल बाद 26 अप्रैल, 1987 को शंकर सिंह रघुवंशी का भी निधन हो गया। इस तरह भारतीय हिंदी संगीत की यह महान जोड़ी हमेशा के लिए अलविदा कह गई, लेकिन आज भी इनका संगीत लोगों के दिलों में बसता है।
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