Shameful tweet by Pak minister Fawad Chaudhry for Chandrayaan-2 losing contact with ISRO.
शायर मिर्ज़ा अज़ीम बेग का लिखा एक शेर ‘गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल (बच्चा) क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।’ यह शेर आतंकिस्तान (पाकिस्तान) पर एकदम सटीक बैठता है। इस्लाम के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज में चांद का टुकड़ा दिखता है, लेकिन चांद पर पहुंचना उसके बस की बात नहीं है। और चला हमारे 95 प्रतिशत सफ़ल चंद्रयान-2 पर नकारात्मक टिप्पणी करने। बेशर्मी की हद पार करना जैसे हर पाकिस्तानी की रग-रग में भरा है। पाक समय-समय पर किसी न किसी माध्यम से बेशर्मी जाहिर करता रहता है।
इसरो के चंद्रयान-2 मिशन का संपर्क विक्रम लैंडर से टूटा तो, पाकिस्तान की कथित आर्मी कंट्रोल्ड इमरान सरकार के बड़बोले मंत्री अपना आपा खो बैठे और बेशर्म होकर ट्विटर पर अपनी फ़जीहत कराने चल पड़े। जैसे ही हमारे चंद्रयान-2 से इसरो का संपर्क टूटा, इसकी बेचैनी दुश्मन मुल्क को होने लगी।
इमरान सरकार के मंत्री फवाद चौधरी की जुबान लड़खड़ाने लगी। पाकिस्तान के इस विज्ञान और तकनीकी मंत्री को भले ही साइंस का ककहरा नहीं पता, लेकिन दुनिया के सबसे कठिन मिशन चंद्रयान-2 पर टिप्पणी करने ऐसे चल आए जैसे वो पैदा ही इसके लिए हुए थे। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘जो काम नहीं आता, पंगा नहीं लेते ना.. डियर एंडिया।’
अब फवाद चौधरी को कौन बताए कि चंद्रयान-2 पर टिप्पणी करने से पहले इंडिया की अंग्रेजी लिखना तो सीख लें। जनाब के अंग्रेजी ज्ञान का आलम तो देखिए.. इंडिया को एंडिया लिख डाला। फ़िर इस पाकिस्तानी मंत्री की सोशल मीडिया पर ख़ूब लानत-मलानत हुई। फवाद की बेशर्मी यहीं नहीं रुकी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस वक़्त इसरो के चेयरमैन पी. सिवन और उनकी टीम की हौसला-अफ़जाई कर रहे थे, उसी वक़्त पाकिस्तान के इस मंत्री ने एक और ट्वीट कर लिखा, ‘मोदीजी सैटेलाइट कम्युनिकेशन पर ऐसे भाषण दे रहे हैं जैसे कि वह राजनेता की बजाय अंतरिक्ष यात्री हों।’ अब इसे कौन समझाए कि ये हमारी सनातन संस्कृति के संस्कार हैं। आपकी तरह थोड़ी ना है जहां इमोशंस का दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं।
पाकिस्तान ने भारत से पहले सन् 1961 में अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरु किया था। उसने इस वर्ष अपना पाकिस्तान स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमिशन बनाया था। जबकि भारत ने इसके बनाया 8 साल बाद 1969 में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो की नींव रखीं।
पाकिस्तान ने अपना पहला सेटेलाइट साल 1990 में छोड़ा और उसमें भी दूसरे देश से काफ़ी मदद मांगनी पड़ी, लेकिन भारत ने इसरो के निर्माण के छह साल के भीतर अपना पहला सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेज दिया थ। सन् में स्थापित हुए इसरो ने वर्ष 1975 में अपना पहला सेटेलाइट आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा था।
Read More: विज्ञान में विफलता नहीं होती, केवल प्रयोग और प्रयास होते हैं: पीएम नरेन्द्र मोदी
हिंदुस्तान वो वाहिद मुल्क है जिसने हमेशा से ही अपने वैज्ञानिकों को सम्मान और तरजीह दी है। इसरो का प्रमुख किसी महान वैज्ञानिक को बनाया जाता है, वहीं वहीं पाकिस्तान अपने स्पेस कमिशन का मुखिया सेना के किसी अधिकारी को बनाता आया है।
इससे यह साफ़ हो जाता है कि पाकिस्तान का अंतरिक्ष विज्ञान भी आतंकवादियों की फौज से ज्यादा कुछ नहीं है। उसका तो खुदा भी कुछ नहीं कर सकता। अल्लाह ने चाहा तो.. पाक के आतंकी आपस में ही अंतरिक्ष मिशन-मिशन खेलेंगे! जो पाकिस्तान जैसी टेरर फैक्ट्री का असल परिचय भी है।
रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्तान हार्दिक पांड्या…
अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…
कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…
Leave a Comment