चलता ओपिनियन

सैक्स,ड्रग्स एंड कुंभ: इस गलतफहमी को आज ही कर लें दूर

साल 2015 की बात है नासिक से खबर आई कि यहां कुंभ मेले से पहले कंडोम्स की कमी पड़ गई है। कंडोम का नाम सुनते ही लोगों में और विशेष तौर पर हिंदुओं में इस बात को लेकर काफी नाराजगी हुई क्योंकि विषय उनकी आस्था का था और कुंभ जैसे पवित्र माने जाने वाले मेले से ऐसी बातें निकलकर आने उन्हें सही नहीं लग रहा था। खैर खबर तो सही थी मगर इसका कुंभ से कोई लेना देना नहीं था। लेना देना तो उन लोगों से था जो ऐसे पवित्र आयोजन पर भी अपनी कुंठा को शांत नहीं कर पाते। नासिक में उस समय दो हजार से ज्यादा सैक्स वर्कर्स और काफी सारे वेश्यालय का चलना रिपोर्ट किया गया था जिससे वहां के प्रशासन ने एड्स जैसी बीमारी ना फैले इसलिए पहले से ही कंडोम्स की बड़ी खेप को सरकारी अस्पतालों और वेंडिंग मशीनों तक पहुंचा दिया।

अब आगे बढ़ते हैं कुंभ मेले में ड्रग्स की बात पर तो इस मेले में शामिल होने दुनियाभर से भांति भांति के लोग आते हैं मगर यहां जो सबसे ज्यादा खास होते हैं वो है गुमनामी की जिंदगी और पहाड़ों की गुफाओं से निकलकर आने वाले नागा साधू। नागा साधू कहते हैं कि वो सिर्फ उन्हीं चीजों का सेवन करते हैं जो आधुनिक दुनिया के लिए जहर के बराबर है मगर उनके लिए वो किसी अमृत से कम नहीं। हमेशा जंगलो और पहाड़ों पर जीवन बिताने वाले नागा साधूओं के पास एंटरटेनमेंट के लिए कोई वॉट्सएप, फेसबुक या यूट्यूब तो होता नहीं है और उनका एंटरटेनमेंट तो भगवान की भक्ति और ध्यान ही है ऐसे में वो अपने आपको बाहरी संसार के दिखावे से दूर रखने के लिए गांजे का सेवन करते हैं मगर बड़े बड़े अखाड़ों  के साधुओं ने ऐसे लोगों को नकली और कपटी साधू बताया है।

 

मेले के दौरान सड़क पर चिलम पीते हुए आसानी से नजर आ जाने वाले साधु दरअसल साधु के वेष में कोई और भी हो सकते हैं या आप उन्हें कोई तस्कर का नाम भी दे सकते हैं। पिछले कुंभ में नासिक पुलिस ने मेले से अवैध रूप से चरस गांजा बेच रहे कुछ ऐसे ही नकली साधुओं को गिरफ्तार भी किया था। ऐसी घटनाओं के बाद से कुंभ जैसे पवित्र मेले को लेकर लोगों में ऐसी भ्रांतियां फैलने लगी कि यहां ड्रग्स अफीम चरस गांजा और सैक्स की भी भरमार होती है जो कि है नहीं। इस बार कुंभ का मेला प्रयागराज में है यदि यही मेला बनारस में होता तो शायद यहां भी प्रशासन को कंडोम की भारी खेप जमा करके रखनी पड़ती। वजह साफ है कि बनारस में अंग्रेजों के जमाने से वेश्यालय जिन्हें तब कोठा कहा जाता था वो आज भी मौजूद है।

कई बार झूठी खबरों के माध्यम से भी कुंभ मेले को बदनाम करने की कोशिश की गई है मगर इसका सार जानने की इच्छा आजतक किसी में नहीं हुई। ये मेला हिंदूत्व की आस्था का प्रतीक होने के साथ साथ आपको कई चीजों से मुक्त होने के लिए भी बुलाता है जिसमें काम यानी कुंठा और सांसारिक बंधन यानी मोह माया से दूर होने मगर अब कई लोग तो यहां सिर्फ काम और माया के लालच में पहुंच जाते है जो कि उनकी सबसे बड़ी गलतफहमी है।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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