हाल ही मीटू मूवमेंट की जो हवा चली उसने इंडस्ट्री के भी कई जाने—माने चेहरों को घेर लिया। उन्हीं में से एक थे टेलीविजन के संस्कारी बापूजी कहे जाने वाले एक्टर आलोक नाथ। राइटर-डायरेक्टर विंता नंदा के साथ कथित बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे आलोकनाथ को कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। इस मामले में कोर्ट ने आलोक नाथ को अग्रिम जमानत देते हुए 15 पेज का ऑर्डर जारी किया है।
सेशन कोर्ट ने कहा है कि इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोपी को गलत तरीके से इस अपराध में फंसाया गया है। यह बात ध्यान देने वाली है कि नंदा को पूरी घटना के बारे में पता है लेकिन उन्हें यह बात याद नहीं कि यह घटना किस महीने और किस तारीख को घटी। जो भी तथ्य सामने आए हैं उस आधार पर यह संभावना हो सकती है कि आरोपी को गलत तरीके से इस क्राइम में खींचा गया हो।
वहीं घटना के 20 साल बाद एफआईआर दर्ज कराने पर कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 376 (रेप) और 377 (अप्राकृतिक यौन अपराध) के लिए केस दर्ज कराने की कोई समय-सीमा नहीं है, लेकिन इस मामले में ऐसे भी कोई रिकॉर्ड नहीं हैं जो साबित कर सकें कि आरोपी आलोकनाथ ने नंदा को केस दर्ज न कराने को लेकर धमकाया हो। बता दें कि नंदा ने अक्टूबर 2018 में आलोकनाथ पर आरोप लगाए थे कि 19 साल पहले उन्होंने उनके साथ रेप किया था।
साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा है कि चूंकि आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों ही शादी-शुदा (अलग-अलग) हैं इसलिए पीड़िता का मेडिकल टेस्ट कराने का कोई मतलब नहीं है। इसके अलावा घटना शिकायतकर्ता के घर पर हुई ऐसे में आरोपी द्वारा सबूत मिटाने की भी कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने आलोकनाथ को राहत देते कहा कि इस मामले की जांच के लिए आलोकनाथ के कस्टोडियल इंटरोगेशन की जरूरत नहीं है।
देर से एफआईआर दर्ज कराने को लेकर विंता का कहना था कि उन्होंने इस बारे में अपने दोस्तों से सलाह ली थी, लेकिन उन्होंने कहा कि आलोकनाथ एक बड़े ऐक्टर हैं, तो उनकी ‘कहानी’ पर कोई भी यकीन नहीं करेगा। कोर्ट ने शिकायतकर्ता की दो एफआईआर कॉपियों में भी भिन्नता पाई। इस पर नंदा के वकील ने कहा कि पहला एफआईआर सिर्फ एक कवर लेटर था जिसके साथ 8 अक्टूबर 2018 का फेसबुक पोस्ट भी अटैच किया गया था।
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