Seeing revolutionary activities of Madanlal Dhingra his family broke relationship with him.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में ऐसे कई क्रांतिकारी हुए जिन्होंने अपना सब कुछ देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया था। उनमें से एक थे मदनलाल ढींगरा। आज 17 अगस्त को मदनलाल ढींगरा जी की 114वीं शहीदी है। उनका परिवार अंग्रेज सरकार का राजभक्त था, लेकिन ढींगरा के हृदय में देश के प्रति अटूट प्रेम था। वो भारत माता को आजाद करने के लिए अपने परिवार से अलग राष्ट्रभक्ति को अपनाकर देश के लिए शहीद हो गए थे। इस अवसर पर जानिए महान क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा के प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 फरवरी, 1883 में पंजाब प्रांत के अमृतसर में हुआ था। उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था। ढींगरा के पिता डॉ. दित्तामल ब्रिटिश सरकार के भक्त थे और रहन-सहन में पूरे तरह से अंग्रेज बने हुए थे। वह पंजाब सिविल में सर्जन पद पर नौकरी थे। लेकिन उनकी मां धार्मिक प्रवृति और भारतीय संस्कारों में पली बढ़ी थी, इसलिए मदनलाल पर उनके विचारों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। ढींगरा ने सन् 1900 में एमबी इंटर मीडिएट कॉलेज अमृतसर से स्कूली शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वह लाहौर स्थित गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने चले गए।
ढींगरा ने वर्ष 1904 में स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर इंग्लैंड से आयातित कॉलेज ब्लेजर के विरोध में छात्रों का नेतृत्व किया। इस कारण मदन लाल को कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। उस समय मदनलाल ढींगरा कॉलेज से मास्टर ऑफ आर्ट्स में अध्ययन कर रहे थे। जब परिवार में इस बात का पता चला तो परिवारवालों ने मदनलाल से रिश्ता तोड़ लिया।
जब मदनलाल ढींगरा पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्होंने विस्तृत रूस से भारतीय गरीबी और अकाल के बारे में पढ़ा और उन्होंने निश्चय किया कि वह देश की आजादी के लिए लड़ेंगे। ढींगरा ने अपनी आजीविका चलाने के लिए पहले क्लर्क के रूप में काम किया, फिर कालका में एक तांगा (गाड़ी) चलाया और बाद में एक कारखाने में मजदूरी भी की। इस दौरान उन्होंने संघ को संगठित करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
मदनलाल ढींगरा अपने बड़े भाई डॉ. बिहारी लाल की सलाह पर अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए और वहां वर्ष 1906 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में दाखिला लिया। इस दौरान मदनलाल लंदन स्थित इंडिया हाउस से जुड़ गए जो वर्ष 1905 में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित किया गया एक क्रांतिकारी संगठन था। यहीं पर उनकी मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर से हुई। वे उनसे काफी प्रभावित हुए। वहीं उन्होंने हथियार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
ब्रिटिश सरकार में भारतीय सेना का अवकाश प्राप्त अधिकारी कर्नल विलियम वायली लंदन में रहता था। वह लंदन में रह रहे भारतीय छात्रों की जासूसी करता था। वायली, मदनलाल ढींगरा के पिता के दोस्त हुआ करते थे और उसने मदन लाल के पिता को सलाह दी थी कि वह अपने पुत्र को इंडिया हाउस से दूर रहने की सलाह दे। इस पर मदनलाल के मन में उसके प्रति घृणा जाग्रत होने लगी।
इसी बीच लंदन में रह रहे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के जासूस कर्नल विलियम वायली की हत्या करने का निश्चय किया। इस काम का जिम्मा मदनलाल को सौंपा गया। इसके बाद उन्होंने इंडिया हाउस में रहकर बंदूक चलाने का प्रशिक्षण लिया। 1 जुलाई, 1909 को लंदन में हुए इंडियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने आए कर्नल वायली की मदनलाल ढींगरा ने गोली मारकर हत्या कर दी। गोली मारने के तुरंत बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
महान क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा को जब हत्या के मामले में कोर्ट में पेश किया गया था तो वायली की हत्या पर उन्होंने कहा कि उन्हें कर्नल वायली की हत्या का कोई दुख नहीं है। ढींगरा ने कहा था कि उन्होंने अमानवीय ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए अपनी भूमिका निभाईं। कोर्ट के फैसले के बाद ढींगरा को ब्रिटिश जेल में 17 अगस्त, 1909 को फांसी पर लटकाया गया। मदनलाल ढींगरा की स्मृति में भारत सरकार ने वर्ष 1992 में उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया।
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