‘इंसान के पूर्वज बंदर थे’.. बचपन में साइंस की क्लास में हमने यह लाइन जरूर सुनी होगी और इस लाइन का जिक्र करते ही एक ही नाम जेहन में आता है वो है चार्ल्स डार्विन। जी हां, बंदरों के विकास से ही इंसान की प्रजाति बनी है, यह थ्योरी डार्विन के नाम से हर साइंस की किताब में छपी होगी। इंसानों के विकास को लेकर हमें इंटरनेट की दुनिया में भी बंदरों के साथ लगी फोटो वाले कई जोक्स और मीम्स मिल जाएंगे। 19 अप्रैल को महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन की 141वीं पुण्यतिथि है। इस खास अवसर पर आपको जो बताने जा रहे हैं, उसके बाद आपका खुद को देखने का नजरिया बदल जाएगा, क्योंकि बंदर से इंसान बने हैं या हमारे दादा, परदादा बंदर थे.. ये डार्विन ने कभी नहीं कहा।
चार्ल्स डार्विन एक महान वैज्ञानिक थे, इस बात में कोई दो राय नहीं है। इंसानी प्रजाति की बुनियाद तलाशने डार्विन 4.5 साल तक बीगल नाम के एक जहाज पर सवार होकर दुनिया में कई जगह घूमे। कई रोचक जगहों पर घूमने के बाद डार्विन ने अपने अनुभव को एक किताब में लिखा, जिसका नाम था ‘ओरिजिन ऑफ द स्पिशीज’। इस किताब में डार्विन ने बताया कि इंसानों के क्रमिक विकास की शुरूआत कुछ इस तरह से होती है कि जानवरों की प्रजातियों के विकास के समय कुछ जमीन पर बस गए तो कुछ पेड़ों पर जाकर रहने लगे। जहां वो रहे उसके हिसाब से ही उनके शरीर के अंग विकसित हो गए। लाखों सालों बाद यह अंतर काफी बढ़ गया और सभी जानवर अलग-अलग प्रजातियों में विकसित हो गए।
इसको अगर हम आसान भाषा में आपको समझाएं तो ऐसा समझ लीजिए कि किसी शहर के चिड़ियाघर में कोई चिंपैंजी रह रहा है तो उसके परदादा या दादा थे। उनका एक बेटा पेड़ पर जाकर रहने लगा तो एक जमीन पर काम करने लगा। तो इसका मतलब यह हुआ कि बंदर, ओरांग उटांग, चिंपैंजी यह सब इंसानों के पूर्वज नहीं, बल्कि यह कहा जा सकता है कि आदमियों और बंदरों के पूर्वज एक ही थे। इसके अलावा अफ्रीका में सालों पहले लंबी और छोटी गर्दन दोनों तरह के जिराफ पाए जाते थे, लेकिन जैसे-जैसे वहां की भौगोलिक स्थिति बदली तो छोटी गर्दन वाले जिराफ मरने लगे और लंबी गर्दन वाले बचे रह गए। लेकिन आगे चलकर डार्विन अपनी थ्योरी में जिराफ के मरने का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाए।
ब्रिटेन के वेल्स में पैदा हुए वैज्ञानिक अल्फ्रेड वॉलेस को चार्ल्स डार्विन की मानव विकास की थ्योरी में पार्टनर माना जाता है। वॉलेस ने भी डार्विन की तरह ही काफी समय तक दुनिया के चक्कर लगाए और काफी रिसर्च की। डार्विन की रिसर्च ‘थ्योरी ऑफ एवोल्यूशन’ को दुनिया के सामने रखने में प्रोत्साहित करने का क्रेडिट भी वेल्स को ही जाता है। हालांकि, आगे चलकर वॉलेस का नाम जीव विज्ञान की दुनिया में जाना गया तो मानव विकास के लिए आम जनता में डार्विन फेमस हुए।’ 19 अप्रैल, 1882 को वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का डाउन हाउस, यूके में निधन हो गया।
Read: न्यूटन के सिर पर कभी नहीं गिरा था सेब, ये है गुरुत्वाकर्षण खोज की कहानी का सच
रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्तान हार्दिक पांड्या…
अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…
कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…
Leave a Comment