कुश्ती यानि रेसलिंग दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से एक है और सबसे पुराना ओलंपिक खेल भी है। यह 708 ईसा पूर्व ग्रीस में आयोजित प्राचीन ओलंपिक खेलों का हिस्सा हुआ करता था। वर्ष 1896 में जब ओलंपिक की स्थापना हुई, तब कुश्ती को नौ खेलों में शामिल किया गया। माना जाता है कि कुश्ती की शुरुआत भारत में हुईं। पिछले एक दशक में भारतीय पहलवानों ने एशियाई और राष्ट्रीय गेम्स में काफी शानदार प्रदर्शन किया है। खिलाड़ियों की सफ़लता में कोच की भी कड़ी मेहनत होती है। भारत में प्राचीन काल से गुरुओं द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का अलग ही महत्व रहा है।
ऐसे ही एक द्रोणाचार्य हैं सतपाल सिंह, जिन्होंने ओलंपिक में मेडल जीतने और विश्व चैंपियन रेसलर बनाने में भारत की मदद की हैं। कुश्ती कोच व पूर्व मशहूर पहलवान सतपाल सिंह आज 1 फरवरी को अपना 68वां जन्मदिन मना रहे हैं। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
पहलवान सतपाल सिंह का जन्म 1 फरवरी, 1955 को दिल्ली के बवाना गांव में हुआ था। हालांकि, उनके पिता गांव के पहलवान थे, लेकिन वे नहीं चाहते थे कि सतपाल पहलवान बने। जैसा कि वह पढ़ाई में अच्छा थे और वर्ष 1968 में 50 रुपये की स्कॉलरशिप भी उन्हें मिल रही थी। उनके पिता चाहते थे कि वे अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान दें।
पहलवान सतपाल सिंह का कहना है कि एक दिन कुछ लड़कों ने स्कूल में उनके साथ झगड़ा और मार-पीट की इस पर उनकी मां ने सतपाल को पिता के साथ अखाड़े भेजना शुरू कर दिया। सतपाल के लिए यह पहला रेसलिंग स्कूल था जो गाँव के एक तालाब के पास था। एक साल बाद जैसे-जैसे वक्त बीतता चला गया, उनका आत्मविश्वास बढ़ता चला गया और दिल्ली में गुरु हनुमान अखाड़े में वे शामिल हो गए।
सतपाल सिंह 16 बार नेशनल हैवीवेट चैंपियन रह चुके हैं। सतपाल सिंह ने अपनी कुश्ती की शुरुआत महान कुश्ती कोच गुरु हनुमान के छात्र के रूप में की। अपने कॅरियर में 3000 से अधिक बड़े और छोटे मैच जीते हैं और अपने दिनों में उन्होंने एक दिन में 21 कुश्ती मैच तक खेले थे। तेहरान में एशियन गेम्स वर्ष 1974 में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
उन्होंने राष्ट्रमंडल खेल वर्ष 1974, 1978 और 1982 में सिल्वर मेडल जीते। बैंकॉक में एशियन गेम्स 1978 में सिल्वर मेडल जीता। दिल्ली में एशियाई खेलों साल 1982 में गोल्ड मेडल जीता। वर्ष 1979 और 1981 के राष्ट्रमंडल कुश्ती चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीते। सतपाल सिंह ने विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप के विभिन्न संस्करणों में भी भाग लिया। उनके कार्यालय के बाहर लगी नेम प्लेट में “महाबली” सतपाल सिंह लिखा हुआ है।
सतपाल ने वर्ष 1981 में बेलगाम में अपना सबसे लंबा मैच खेला। यह 40 मिनट तक चला। उनका सबसे छोटा गेम वाराणसी में पाकिस्तान के एक पहलवान के खिलाफ था जो केवल पांच सेकंड तक चला। सतपाल को भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार मिला।
1974 – अर्जुन पुरस्कार (कुश्ती)
1983 – पद्मश्री पुरस्कार
2009 – द्रोणाचार्य पुरस्कार
2015 – पद्म-भूषण पुरस्कार
कुश्ती से रिटायर होने के बाद दिग्गज पहलवान सतपाल सिंह ने उत्तरी दिल्ली में छत्रसाल अखाड़े का नए सिरे से निर्माण करवाया। इस अखाड़े में उन्होंने सुशील कुमार, अमित कुमार, योगेश्वर दत्त जैसे नामी पहलवानों को प्रशिक्षित किया। ऐसा कहा जाता है कि सतपाल सिंह अब भी प्रतिदिन सुबह 4 बजे छत्रसाल अखाड़ा पहुंचते हैं और उभरते हुए पहलवानों को ट्रेनिंग देते हैं।
आपको बता दें कि वर्ष 1919 में गुरु हनुमान द्वारा निर्मित अखाड़े ने देश के कुछ सर्वश्रेष्ठ पहलवानों को प्रशिक्षित किया। इनमें दारा सिंह, सतपाल सिंह, कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट सुभाष वर्मा शामिल हैं। साल 1999 में गुरु हनुमान का निधन हो गया था। 800 गज की छोटी जगह होने के बावजूद, बुनियादी ढांचे और धन की भारी कमी के बावजूद इस अखाड़े ने 15 से ज्यादा अर्जुन पुरस्कार विजेता, 1 ध्यानचंद अवॉर्ड, 7 द्रोणाचार्य, 3 पद्मश्री, 1 पद्मभूषण पुरस्कार विजेता पहलवान दिए हैं।
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