फिल्म- केदारनाथ
निर्देशक- अभिषेक कपूर
स्टारकास्ट- सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान, पूजा गौर, नितीश भारद्वाज
रेटिंग्स- 3
बॉलीवुड में इन दिनों स्टार किड्स की एंट्री का दौर चल रहा है। जाह्नवी कपूर के बाद छोटे नवाब सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान भी अब बॉलीवुड में डेब्यू कर चुकी हैं। डायरेक्टर अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म केदारनाथ में सारा के साथ सुशांत सिंह राजपूत लीड रोल में हैं। शूटिंग शुरू होने के साथ ही कई तरह के विवादों में फंस चुकी केदारनाथ सभी कठिनाइयों को पार कर आखिरकार रिलीज़ हो चुकी है, तो आइए जानते हैं कि ये फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी या नहीं?
उत्तराखंड में आई भयंकर त्रासदी के इर्द—गिर्द बुनी गई केदारनाथ की कहानी भी बॉलीवुड की आम लव स्टोरीज़ की तरह ही है। एक लड़का और लड़की मिलते हैं, दोनों में प्यार होता है, फिर घरवालों का इनकार और सभी परेशानियों से उबर कर कैसे वो प्यार अंजाम तक पहुचंता है, यही सब आपको फिल्म केदारनाथ में भी देखने को मिलेगा। इसी बीच साल 2013 में आए प्रलय को भी जोड़ा गया है।
केदारनाथ की कहानी एक हिन्दू पंडित की जिद्दी, खुशमिज़ाज़ और अल्हड़ बेटी मंदाकिनी उर्फ़ मुक्कु (सारा अली खान) से शुरू होती है, जिसे एक मुस्लिम पिट्ठू मंसूर (सुशांत सिंह राजपूत) से प्यार हो जाता है। दो अलग धर्म के लोगों का प्यार लोगों को पसंद नहीं आता और फिर सभी इन दोनों को अलग करने की कोशिशों में लग जाते हैं। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब मंदाकिनी और मंसूर के प्यार को तोड़ने के लिए पंडितों और पिट्ठुओं के बीच जंग छिड़ जाती है और इसी बीच कुदरत भी अपना कहर बरपा देती है।
एक्टिंग की अगर बात करें तो अपनी पहली ही फिल्म में सारा अली खान सभी के बीच छा गई। सबकी उम्मीदों के अनुसार उन्होंने फिल्म में बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन किया है। वो असल जिंदगी में जितनी खुशमिजाज और बेबाक हैं, फिल्म में भी उनका ऐसा ही खास अंदाज़ देखने को मिला है, जो काफी नेचुरल लग रहा है। वहीं सुशांत सिंह राजपूत को देखकर ऐसा लगता है कि वो बस सारा अली खान को सपोर्ट करने के लिए ही फिल्म में हैं। हालांकि सुशांत काफी अच्छे एक्टर हैं पर इस किरदार में उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था।
डायरेक्टर अभिषेक कपूर ने फिल्म में हर बेहतरीन विज़न का इस्तेमाल करते हुए इसे पूरी तरह से पहाड़ी दृश्य और वहां की लाइफस्टाइल में ढालने की कोशिश की है। फिल्म में डायरेक्शन के साथ—साथ इसकी फोटोग्राफी भी काफी अच्छी है, लेकिन जितनी मजबूत कहानी का साथ उन्हें रॉक ऑन या काय पो छे में मिला था, वैसा यहां नहीं है।
संगीत किसी भी फिल्म की जान होती है, लेकिन इस फिल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी अगर किसी को कहा जा सकता है तो वो है इसका संगीत। अपने संगीत से अमित त्रिवेदी ने अक्सर लोगों को झूमने पर मज़बूर किया है, लेकिन लगता है कि अनुराग कश्यप का सिनेमा करते-करते वह हिंदुस्तानी मिट्टी से जुड़ा संगीत भूल चुके हैं। ये पहाड़ी क्षेत्र की कहानी है लेकिन किसी भी गाने में इसकी झलक देखने को नहीं मिलती। अरिजीत सिंह की आवाज़ में भी फिल्म में दो गाने काफिराना और जां निसार सुनने को मिलेंगें, लेकिन वो भी औसत ही हैं।
अगर आप एक नई हीरोइन और उसकी एक्टिंग को देखने में रूचि रखते हैं तो आप ये फिल्म देखने जरूर जा सकते हैं, लेकिन आप को अगर ये उम्मीद हैं कि वहां आपको कोई नई और बेहतरीन कहानी या कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जो आपने अब तक नहीं देखा है, तो फिर आपकी उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। ऐसे में आप अपने कीमती पैसे बचाते हुए इस फिल्म के किसी विडियो स्ट्रीमिंग एप पर आने का इंतज़ार कर सकते हैं।
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