हिंदी-उर्दू शायर व मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। आज 25 अक्टूबर को साहिर साहब की 43वीं डेथ एनिवर्सरी है। साहिर का असल नाम अब्दुल हयी साहिर है। उनके पिता बहुत धनी और अय्याश हुआ करते थे, जिन्होंने 10 महिलाओं से शादी की थी। बचपन में ही साहिर के माता-पिता का अलगाव हो जाने के कारण उन्हें अपनी माता के साथ रहना पड़ा। इसलिए उन्हें बहुत गुरबत में दिन बिताए। साहिर के प्यार के चर्चे खूब मशहूर रहे, लेकिन वह जीवनभर अकेले ही रहे और शादी नहीं कीं। दुनिया से विदा लेने के दशकों बाद उनके गीत, नज़्में और ग़ज़लें आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। इस अवसर पर जानिए साहिर लुधियानवी के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
ख्यातनाम शख्सियत साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च, 1921 को पंजाब के लुधियाना में एक जमींदार परिवार में हुआ था। हालांकि, उनकी कर्मस्थली लाहौर और मुंबई रहीं। कम उम्र में ही साहिर ने जीविका चलाने के लिए कई तरह की छोटी-छोटी नौकरियां भी कीं। यह बात अलग है कि बाद में वे इतनी बड़ी शख्सियत बन गए कि अब तो उनका नाम भी बड़े अदब के साथ लिया जाता है।
साहिर लुधियानवी ने अपनी 10वीं तक की पढ़ाई लुधियाना के खालसा स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद वह लाहौर चले गए जहां उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई इस शहर के सरकारी कॉलेज से पूरी की। इस दौरान ही साहिर कॉलेज के कार्यक्रमों में अपनी नज्में पढ़कर सुनाने लगे, जिससे उन्हें काफ़ी शोहरत मिलने लगीं। साथ में उनकी आशिक़ी के भी चर्चे दिन-ब-दिन होने लगे थे। यहां तक कि इस मामले में उन्हें कॉलेज से बाहर तक कर दिया गया था। साल 1943 में साहिर लाहौर आ गए और उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह ‘तल्खियां’ छपवायी। अपने इस कविता संग्रह के प्रकाशन के बाद से ही उन्हें ख्याति प्राप्त होने लग गई थी।
साहिर ने प्रसिद्ध उर्दू पत्र ‘अदब-ए-लतीफ़’, ‘शाहकार’ (लाहौर) और द्वैमासिक पत्रिका ‘सवेरा’ के सम्पादक बनकर काम किया। साहिर लुधियानवी के सवेरा पत्रिका में लिखे एक लेख को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया गया था। उनके विचार साम्यवादी थे। वर्ष 1949 में वे लाहौर से दिल्ली आ गए। इसके बाद कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे सपनों के शहर मुंबई (तब बंबई) पहुंचे जहां पर साहिर उर्दू पत्रिका ‘शाहराह’ और ‘प्रीतलड़ी’ के सम्पादक बने।
यहां रहते हुए साहिर ने फिल्म ‘आजादी की राह पर’ (1949) के लिए पहली बार गीत लिखा, लेकिन फिल्म पर्दे पर सफ़ल नहीं रही। इस फिल्म के लिए साहिर ने गीत लिखा था ‘बदल रही है ज़िंदग़ी।’ साहिर लुधियानवी को फिल्म ‘नौजवान’ से प्रसिद्धि मिलीं। इस फिल्म के संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे। फिल्म नौजवान का गाना ‘ठंडी हवाएं लहरा के आएं’ को लोगों ने दिल खोलकर पसंद किया।
19 फ़रवरी, 1957 को रिलीज गुरु दत्त की ‘प्यासा’ साहिर लुधियानवी के फिल्मी कॅरियर की अहम फिल्म साबित हुई। इसके बारे में एक किस्सा ये है कि जब मुंबई के मिनर्वा टॉकीज में यह फिल्म दिखाई जा रही थी, तब जैसे ही फिल्म में साहिर का लिखा गाना ‘जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं’ बजना शुरु हुआ.. सभी दर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और गाने की समाप्ति तक ताली बजाते रहे। बाद में सिने दर्शकों की मांग पर इस गाने को 3 बार और दिखाया गया। साहिर का लिखा ये गाना आज भी कई मौकों पर खूब बजता है और लोगों उतनी ही दीवानगी के साथ सुनते हैं।
साहिर लुधियानवी और जावेद अख्तर बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे। इसे दोनों के शायरी और गीतों की दुनिया के कारण जुड़ाव समझ लो या आपसी अच्छी समझ। उनके जवां दिनों का एक किस्सा काफ़ी मशहूर है कि एक बार जावेद अख्तर ने घर छोड़ दिया और जहां उन्हें जगह मिलती वहीं रहने लग जाते थे। एक दिन जावेद अपने दोस्त साहिर के घर पहुंचे। वे कई दिन से नहाए नहीं थे, इसलिए बाथरूम में जाकर नहाने लगे। जब वह बाहर निकले तो देखा टेबल पर सौ रुपए रखे हुए थे। साहिर ने अपने दोस्त से कहा, जावेद ये रुपए रख लो। उन दिनों सौ रुपए वाकई में बड़ी रकम हुआ करती थी।
जावेद ने मजबूरी के अपने उन दिनों में ये रुपए अपनी जेब में रख लिए। बाद में जब भी साहिर लुधियानवी उनसे अपने सौ रुपए मांगते तो जावेद अख्तर मजाक में कहते कि तुम्हारे पैसे तो मैं खा गया अब वापस नहीं दूंगा। दोनों के बीच इसी तरह प्यार भरी नोंक-झोंक चलती रहती थी। एक दिन साहिर अपने डॉक्टर से मिलने उनके घर पर ही गए थे। वहीं दिल का दौरा पड़ने से साहिर का मात्र 59 साल की उम्र में 25 अक्टूबर, 1980 को निधन हो गया। इस तरह महान शायर गीतकार ने दुनिया को अलविदा कहा।
उस डॉक्टर ने साहिर के दोस्त जावेद अख्तर को फोन किया। जावेद डॉक्टर के घर पहुंचे और टैक्सी में साहिर के शव को लेकर उनके घर तक आए। बाद में जावेद अख्तर को याद आया कि टैक्सी वाले को तो पैसा दिया ही नहीं। टैक्सी वाला भी मैय्यत उठने के इंतजार में घर के बाहर चुपचाप रुका रहा। जावेद उस टैक्सी वाले के पास गए और उसे किराए के तौर पर 100 रुपए दिए। इस दौरान जावेद रोते हुए बोले, ‘साहिर मरते-मरते अपने पैसे ले ही गया।’
बड़ी दिलचस्प बात है कि साहिर लुधियानवी पहले ऐसे भारतीय गीतकार थे, जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी। उनके प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया कि आकाशवाणी पर बजने वाले गानों के प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के अलावा गीतकारों के नाम का भी उल्लेख किया जाने लगा। इससे पहले तक गानों के प्रसारण वक़्त सिर्फ़ सिंगर व म्यूजिशियन का नाम ही उद्घोषित किया जाता था।
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