Artist Safdar Hashmi became a victim of political attack while playing street theater.
‘पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है, पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है..’ यह गीत है मशहूर मार्क्सवादी नाटककार, कलाकार, निर्देशक और गीतकार सफ़दर हाशमी का। थियेटर की दुनिया में ये नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं। सफ़दर को नुक्कड़ नाटक के साथ उनके गहरे जुड़ाव के लिए जाना जाता है। उनका भारत के राजनीतिक थिएटर में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह जन नाट्य मंच और दिल्ली में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के संस्थापक-सदस्य थे। आज 12 अप्रैल को सफदर हाशमी की 69वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें…
सफ़दर हाशमी का जन्म 12 अप्रैल, 1954 को दिल्ली में हनीफ और कौमर आज़ाद हाशमी के घर में हुआ था। उनका शुरुआती जीवन अलीगढ़ और दिल्ली में गुजरा। सफदर की स्कूली शिक्षा दिल्ली में हुई और दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अंग्रेज़ी में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में एमए किया। इसी दौरान वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) की सांस्कृतिक यूनिट से जुड़ गए और इप्टा से भी संपर्क हुआ। उल्लेखनीय है कि एसएफआई राजनीतिक दल कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) की ही एक स्टूडेंट इकाई है।
1 जनवरी, 1989 को साहिबाबाद के झंडापुर गांव में ग़ाज़ियाबाद नगरपालिका चुनाव के दौरान नुक्कड़ नाटक ‘हल्ला बोल’ का प्रदर्शन किया जा रहा था, तभी कांग्रेस से जुड़े कुछ लोगों ने हमला कर दिया। इस हमले में सफ़दर हाशमी बुरी तरह से जख्मी हुए। हादसे में उनके सिर पर गंभीर चोटें आई थी। इसके ‘दो दिन बाद 2 जनवरी, 1989 को उन्होंने दम तोड़ दिया। इस घटना के करीब 14 साल बाद ग़ाज़ियाबाद की एक अदालत ने 10 लोगों को हत्या के मामले में आरोपी करार देते हुए आजीवन कारावास और 25-25 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। इसमें कांग्रेस पार्टी के सदस्य मुकेश शर्मा का भी नाम शामिल था।
किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की
एक-एक पल की।
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
सुनोगे नहीं क्या
किताबों की बातें?
किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़िया दीखे चहचहाती,
कि इनमें मिलें खेतियाँ लहलहाती।
किताबों में झरने मिलें गुनगुनाते,
बड़े खूब परियों के किस्से सुनाते।
किताबों में साईंस की आवाज़ है,
किताबों में रॉकेट का राज़ है।
हर इक इल्म की इनमें भरमार है,
किताबों का अपना ही संसार है।
क्या तुम इसमें जाना नहीं चाहोगे?
जो इनमें है, पाना नहीं चाहोगे?
किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!
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