भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिवीर व ‘युगांतर’ पत्रिका के संपादक भूपेंद्रनाथ दत्त की आज 4 सितंबर को 143वीं जयंती है। भूपेंद्रनाथ एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी होने के साथ ही समाजशास्त्री व मानवविज्ञानी भी थे। वह स्वामी विवेकानंद के छोटे भाई थे। भूपेंद्रनाथ दत्त दो बार ‘अखिल भारतीय श्रमिक संघ’ के अध्यक्ष भी रहे। उनका युवा काल में क्रांतिकारी संगठन युगांतर से जुड़ाव हुआ। वह अपनी गिरफ्तारी तक ‘युगांतर पत्रिका’ के संपादक रहे थे। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
क्रांतिकारी भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 को बंगाल के कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी था। महान चिंतक व दार्शनिक स्वामी विवेकानंद उनके बड़े भाई थे। भूपेंद्रनाथ के पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील हुआ करते थे। भूपेंद्र की आरंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में हुईं। यहां से उन्होंने प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की।
वह युवा अवस्था में ही केशव चंद्र सेन और देबेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म समाज में शामिल हो गए थे। यहां पर उनकी मुलाकात शिवनाथ शास्त्री से हुई, जिनसे वह काफी प्रभावित हुए। भूपेंद्रनाथ दत्त ने हिंदू समाज में व्याप्त जात-पांत, छुआछूत, ऊंच-नीच और महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाई थी।
भूपेंद्रनाथ दत्त ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और वर्ष 1902 में प्रमथनाथ मित्र द्वारा गठित ‘बंगाल रिवोल्यूशनरी सोसाइटी’ में शामिल हो गए थे। वर्ष 1906 में वह ‘युगांतर’ पत्रिका के संपादक बने। यह अखबार बंगाल की क्रांतिकारी संगठन ‘युगांतर’ का मुख्यपत्र था। इस दौरान वह महर्षि अरबिंदो और बरिंद्र घोष के सहयोगी बन गए। दत्त को उनके उग्र लेखों की वजह से ब्रिटिश पुलिस ने उन पर देशद्रोह का आरोप लगाकर वर्ष 1907 में गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें एक साल का कारावास दिया गया। वर्ष 1908 में उन्हें रिहाई हो गई थी। जेल से छूटने पर भूपेंद्र को फिर से ‘अलीपुर बम कांड’ में फंसाने की कोशिश की गईं, लेकिन वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। इस दौरान वह कुछ समय के लिए ‘इंडिया हाउस’ में रहे थे।
उन्होंने यूएसए की ब्राउन यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में मास्टर्स डिग्री हासिल की। इस दौरान वह कैलिफोर्निया में गदर पार्टी से जुड़ गए। यहां पर उन्होंने समाजवाद और साम्यवाद के बारे में विस्तार से अध्ययन किया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दत्त जर्मनी चले गए थे। वहां रह कर उन्होंने क्रांतिकारी और राजनीतिक गतिविधियों की शुरुआत कीं। वर्ष 1916 में दत्त बर्लिन में भारतीय स्वतंत्रता समिति के सचिव बने। वर्ष 1918 तक वह इस संगठन के सचिव बने रहे। उन्होंने वर्ष 1920 में जर्मन मानवविज्ञान सोसाइटी और 1924 में जर्मन एशियाटिक सोसाइटी की सदस्यता ली।
वर्ष 1921 में भूपेंद्रनाथ दत्त ने साम्यवादी सम्मेलन कॉमिन्टर्न में भाग लेने के लिए मास्को गए। उन्होंने वर्ष 1923 में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय से नृविज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1921 में दत्ता कॉमिन्टर्न में शामिल होने के लिए मास्को गए। मनबेंद्र नाथ रॉय और बीरेंद्रनाथ दासगुप्ता भी इस साल के कॉमिन्टर्न में शामिल हुए। इस दौरान व्लादिमीर लेनिन ने समकालीन भारत की राजनीतिक स्थिति पर एक शोध-पत्र प्रस्तुत किया। दत्त ने वर्ष 1923 में जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय से नृविज्ञान (मानवशास्त्र) में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
इसके बाद दत्त ने भारत लौटकर कांग्रेस में शामिल होने का निश्चय किया। भूपेंद्रनाथ वर्ष 1927-28 में बंगाल की क्षेत्रीय कांग्रेस और वर्ष 1929 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। उन्होंने वर्ष 1930 में कराची में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में किसानों के लिए एक मौलिक अधिकार का प्रस्ताव रखा और इसे जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस समिति ने स्वीकार कर लिया था। दत्त ने दो अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलनों की अध्यक्षता की थी। बाद में राजनीतिक गतिविधियों के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
क्रांतिवीर भूपेंद्रनाथ दत्त ने समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति आदि विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें लिखीं। वह एक भाषाविद् थे। उन्होंने बंगाली, हिंदी, अंग्रेजी, जर्मन और ईरानी भाषा में कई पुस्तकें लिखी थी। दत्त ने अपने भाई स्वामी विवेकानंद जी के जीवन और कीर्ति पर अंग्रेजी पुस्तक ‘स्वामी विवेकानंद: पैट्रिऑट-प्रोफेट’ व हिंदू रीति-रिवाज पर ‘डायलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुअलिज्म’ तथा राजनीति पर ‘स्टडीज इन इंडियन सोशल पॉलिटी’ लिखीं।
क्रांतिकारी भूपेंद्रनाथ दत्त का निधन 26 दिसंबर, 1961 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ।
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