भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी और भारत के लिए पहला देशी बम बनाने वाले क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त की आज 113वीं जयंती है। बटुकेश्वर ने आजादी की लड़ाई के दौरान भगत सिंह के साथ 8 अप्रैल, 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में बम विस्फोट किया और उनके साथ गिरफ्तार हुए। बाद में उन्होंने उम्र कैद और कालापानी की सजा पाई थी। देश की आजादी के बाद उन्हें रिहा तो कर दिया गया, लेकिन क्रांतिकारियों जैसा सम्मान नहीं मिल सका। इस खास अवसर पर जानिए भारतीय क्रांतिवीर बटुकेश्वर दत्त के प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुने किस्से…
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर, 1910 को बंगाल के बर्दमान जिले के ओरी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नाम गोष्ठ बिहारी दत्त था जो कानपुर में नौकरी करते थे। वर्ष 1925 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी दौरान उनके माता और पिता का देहांत हो गया। उनकी महान क्रांतिकारियों भगत सिंह व चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात हुई। वह भी क्रांतिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सदस्य बन गए।
क्रांतिकारी बटुकेश्वर ने बम बनाना सीख लिया और क्रांतिकारियों द्वारा आगरा में स्थापित बम फैक्ट्री में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिल कर ‘काकोरी’ ट्रेन को लूटा और लाहौर में पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या में भाग लिया था।
बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह और चंद्रशेखर जैसे क्रांतिकारियों ने भारतीय जनता पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ शस्त्रों के माध्यम से मुक्ति प्राप्त करने के लिए तत्पर थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली स्थित केन्द्रीय असेंबली में भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर ने बम विस्फोट कर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किए जा रहे अत्याचारों और तानाशाही का विरोध किया। इस धमाके में कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि पर्चों फेंक कर अपनी बात को सरकार तक पहुंचाया।
असेंबली में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया। बम धमाके के बाद दोनों वहां से भागे नहीं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उन दोनों पर मुकदमा चला और 12 जून 1929 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद उन्हें लाहौर फोर्ट जेल में भेज दिया गया। यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर ‘लाहौर ने षड़यंत्र’ का मुकदमा चलाया गया।
जब पूरे देश में साइमन कमीशन का विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था तब लाहौर में लाला लाजपत राय पर अंग्रेजों ने लाठियों से प्रहार किया। जिससे उनकी कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गई। इसके लिए अंग्रेज अफसर सांडर्स जिम्मेदार था। इन क्रांतिकारियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। बाद में इन क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई, साथ ही बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।
लाहौर में उन्होंने भगत सिंह और यतींद्र नाथ के साथ जेल में 144 दिनों की हड़ताल की। इस दौरान यतींद्र नाथ की मौत हो गई थी। बाद में वर्ष 1937 में उन्हें सेल्यूलर जेल से बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाया गया और वर्ष 1938 में रिहा कर दिया। काला पानी की सजा काटने के दौरान उन्हें गंभीर बीमारी हो गई। उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और वर्ष 1945 में रिहा किए गए। बटुकेश्वर ने आजादी के बाद नवंबर 1947 में अंजली दत्त से शादी की और पटना में रहने लगे।
आजादी के बाद बटुकेश्वर दत्त को सरकार की ओर कोई सम्मान नहीं दिया गया। उन्होंने गरीबी में जीवन यापन किया। उन्होंने पटना की सड़कों पर सिगरेट की डीलरशिप और टूरिस्ट गाइड का काम करके जीवन यापन किया। उनकी पत्नी मिडिल स्कूल में नौकरी करती थीं, जिससे उनका घर चला। एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे, तब उन्होंने भी इसके लिए आवेदन किया था। इस परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने पेश हुए तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र लाने के लिए कहा।
हालांकि, बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर जी से माफ़ी मांगी थी। बाद में बटुकेश्वर दत्त को सम्मान के रूप में 1950 के दशक में एक बार चार महीने के लिए विधान परिषद में सदस्य मनोनीत किया गया।
बटुकेश्वर दत्त का देहांत 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हो गया था। मृत्यु के बाद इनकी इच्छा के अनुसार इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी मित्रों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं।
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