असम में पिछले काफी समय से विदेशी लोगों का पता लगाने के लिए NRC मुद्दा गरमाया हुआ है। NRC नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस यानि एक ऐसा रजिस्टर जो इसलिए बनाया जा रहा है ताकि यह पता लग सके कि कौन असम का मूल नागरिक है और कौन बाहरी है। यह सारा काम सिटीजनशिप एक्ट के तहत किया जा रहा है।
सरकार ने इसके लिए एक तारीख मुकर्रर की है जिसके मुताबिक 25 मार्च, 1971 से पहले जो लोग असम में थे या पैदा हुए उनको इसका सबूत सरकार को देना है। ये तो हुई असम की बात अब बात करते हैं मोहम्मद सनाउल्लाह की जो इस एक्ट की मार पड़ने वाले अभी तक के सबसे दुर्भाग्यशाली व्यक्ति हैं।
कौन है मोहम्मद सनाउल्लाह ?
मोहम्मद सनाउल्लाह का काम ही उनकी पहचान है, जी हां, भारतीय सेना में पूर्व सूबेदार और करगिल युद्ध में देश की पैरवी करने वाले सनाउल्लाह ने 30 साल तक आर्मी में अलग-अलग विभागों में नौकरी की।
52 साल के सनाउल्लाह को साल 2014 में उनके काम के लिए राष्ट्रपति ने सम्मानित भी किया। आर्मी से रिटायर होने के बाद भी उनमें देश और अपने राज्य के लिए काम करने की ललक कम नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने असम सीमा पुलिस में सब-इंस्पेक्टर और बॉर्डर विंग में भी नौकरी की।
पुलिस ने सनाउल्लाह को जेल में क्यों डाल दिया ?
दरअसल असम में सिटीजनशिप के लिए जब सभी से सबूत मांगे जा रहे थे तो सनाउल्लाह ये सबूत पेश नहीं कर पाए। पुलिस ने उन्हें विदेशी माना और जेल में डाल दिया।
मामले का बैकग्राउंड कुछ ऐसा है कि दरअसल, रिटायरमेंट के बाद जब सनाउल्लाह ने बॉर्डर विंग में नौकरी जॉइन की तो वहां के कुछ अधिकारियों ने उन्हें संदिग्ध अवैध विदेशी मानकर उनके खिलाफ केस दर्ज करा दिया।
जिसके बाद जांच हुई और 23 मई 2019 को सनाउल्लाह यह केस हार गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। असम में कई ऐसी संस्थाएं हैं जो यह तय करती है कि कौन विदेशी है और कौन नहीं ?
हालांकि अब 8 जून को गुवाहाटी हाइकोर्ट ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया है और अब गुवाहाटी हाइकोर्ट ने सनाउल्लाह मामले में केंद्र सरकार,असम सरकार और NRC अधिकारियों को नोटिस जारी किया है।
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