विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) का अनुमान है कि साल 2016 में 2,99,091 भारतीय ने सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाई है। इसे देखते हुए वाहन निर्माता फोर्ड (Ford) ने हाल ही में एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें भारत के 10 शहरों में लोगों के वाहन चलाने के व्यवहार का अध्ययन (Driving Survey) किया गया। इस अध्ययन में पाया कि कोलकाता और हैदराबाद के लोग भारत में सबसे ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाते हैं। वहीं, दिल्ली और मुंबई के लोग सबसे कम ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाते हैं। छोटे शहरों में लुधियाना के लोग सड़क पर ‘अधिक सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाते हैं, जबकि इंदौर के लोग ‘कम सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाते हैं।
फोर्ड इंडिया (Ford India) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अनुराग मेहरोत्रा ने कहा, “फोर्ड कारों में अधिक सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने से ड्राइवर और अधिक सुरक्षा के लिए प्रोत्साहित होते हैं। हम हर परिवार के लिए सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करते हैं।”
कंपनी ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाने के मामले में महानगरों में कोलकाता के वाहन चालकों ने सबसे अधिक 649 अंक हासिल किया, जबकि हैदराबाद में 635, चेन्नई में 491, बेंगलुरू में 483, मुंबई में 471 और दिल्ली में वाहन चालकों ने सबसे कम 413 अंक हासिल किए।
इस अध्ययन में छोटे शहरों में लुधियाना के वाहन चालकों ने 780, लखनऊ के 737, पुणे के 636 और इंदौर के वाहन चालकों ने ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाने के मामले में 588 अंक हासिल किए।
फोर्ड ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि यह एक भ्रम है कि पढ़े-लिखे भारतीय ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाते हैं, क्योंकि सर्वेक्षण के दौरान 51 फीसदी प्रतिभागियों को यह पता नहीं था कि सीट बेल्ट लगाना सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। सीट बेल्ट और एयर बैग वाहन चालक और यात्रियों की सुरक्षा में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अध्ययन में पाया गया कि जिनके छोटे बच्चे होते हैं, वे सड़कों पर ‘सभ्य’ तरीके से वाहन चलाने की कोशिश करते हैं, जबकि बच्चे के बड़े होने पर वे धीरे-धीरे लापरवाह हो जाते हैं। हालांकि जब बच्चे की उम्र किशोरावस्था की होती है तो वे अपने बच्चे का रोल मॉडल बनने के लिए अधिक ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाना शुरू कर देते हैं।
सर्वेक्षण में पाया गया कि भारतीय महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अधिक ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाती हैं। अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि जो अतीत में गंभीर दुर्घटना का शिकार हुए हैं या जिन्होंने अपने करीबी को सड़क दुर्घटना में खोया है वे औसत से 8 फीसदी अधिक ‘सभ्य’ तरीके से गाड़ी चलाते हैं।
वहीं, 22 फीसदी प्रतिभागियों में ‘चलता है’ रवैया पाया गया, जो ट्रैफिक पुलिस की अनुपस्थिति में लालबत्ती तोड़ते हैं, गलत तरीके से ओवरटेक करते हैं, गलत लेन में चलते हैं या अधिक स्पीड से गाड़ी चलाते हैं।
फोर्ड के अध्ययन में पाया गया कि मिलेनियल्स (18 से 34 साल के लोग) अन्य की तुलना में अधिक ‘सभ्य’ तरीके से वाहन चलाते हैं। 40 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे नेत्रहीन लोगों को रास्ता देने या सड़क पार करने में मदद के लिए गाड़ी नहीं रोकते/धीमी करते हैं, जबकि 5 से 2 लोगों का कहना था कि सड़क पर अगर वे किसी को मदद की जरूरत देखते हैं तो भी वे गाड़ी रोककर मदद नहीं करेंगे।
फोर्ड के सर्वेक्षण में 41 फीसदी लोगों का कहना था कि वे सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को अस्पताल पहुंचाने में मदद नहीं करेंगे, जबकि 40 फीसदी ने कहा कि किसी बुजुर्ग को सड़क पार करने के लिए वे अपनी गाड़ी धीमी नहीं करेंगे।
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