रांगेय राघव हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार, कहानीकार व निबंधकार थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार रांगेय राघव की आज 12 सितंबर को 61वीं पुण्यतिथि है। विलक्षण प्रतिभा के धनी रांघेय राघव मूल रूप से तमिल भाषी थे, परंतु उन्हें हिंदी में विशेष योग्यता हासिल थीं। रांगेय मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद के बाद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक लेखक माने गए। वह मूलतः मानवीय सरोकारों के लेखक थे। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
उपन्यासकार रांगेय राघव का जन्म 17 जनवरी, 1923 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में हुआ। राघव का मूल नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक क्षेत्र में ‘रांगेय राघव’ नाम रखा। उनके पिता रंगाचार्य और माता कनकवल्ली थी। इनके पूर्वज करीब 300 साल पहले जयपुर और भरतपुर के गांवों में निवास करने लगे थे।
उनकी पढ़ाई आगरा में संपन्न हुई थी। उन्होंने वर्ष 1944 में सेंट जॉन्स कॉलेज से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1949 में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। इनकी शादी सुलोचना से हुई थी, जो जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर रही।
रांगेय राघव ने 13 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य शुरू किया और 39 वर्ष की उम्र तक किया। हिंदी, अंग्रेजी, ब्रज और संस्कृत भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी, साथ ही दक्षिण भारतीय भाषाओं तमिल और तेलुगू का भी उन्हें ज्ञान था। वह 39 वर्ष की उम्र तक जीवित रहे, इस बीच उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, रिपोर्ताज सहित आलोचना आदि विधाओं पर पुस्तकें लिखी थी।
जब उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया था तब पूरे देश में आजादी के लिए संघर्ष जारी था, ऐसे में उनके लेखन में प्रगतिशील विचारों का समावेश मिलता है। वर्ष 1942 में उन्होंने बंगाल में पड़े अकाल की रिपोर्ट ‘तूफानों के बीच’ लिखी जो काफी चर्चित रही। रांगेय राघव ने जर्मन और फ्रांसीसी भाषाओं के कई साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। उनके द्वारा विलियम शेक्सपीयर की रचनाओं का हिंदी अनुवाद किया जो हूबहू मूल रचनाओं जैसा था इसलिए उन्हें ‘हिंदी के शेक्सपीयर’ की संज्ञा दे दी गई।
रचनाकार रांगेय राघव ने अपनी रचनाओं की विषय वस्तु के रूप में आम जन जीवन का समूचा चित्रण किया है। वह लेखन के किसी वाद में नहीं बंधे। उन्होंने अपने ऊपर मढ़े जा रहे मार्क्सवाद, प्रगतिवाद और यथार्थवाद का विरोध किया। उनका कहना था कि उन्होंने न तो प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का आश्रय लिया और न ही प्रगतिवाद के चोले में अपने को यांत्रिक बनाया। वह मूलतः मानवीय सरोकारों के लेखक हैं।
उनके साहित्य लेखन में मानवीय जीवन की दु:ख, दर्द, पीड़ा और उस चेतना की, जिसके भरोसे वह संघर्ष करता है, अंधकार से जूझता है, उसे ही सत्य माना, और उसी को आधार बनाकर उन्होंने लिखा। रांगेय राघव प्रेमचंद के बाद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक लेखक माने गए।
उनके द्वारा अनेक कहानियां लिखी गई, जिनमें प्रमुख हैं— देवदासी, समुद्र के फेन, जीवन के दाने, इंसान पैदा हुआ, पांच गधे, साम्राज्य का वैभव, अधूरी मूरत, ऐयाश मुर्दे, एक छोड़ एक, धर्म संकट, गदल आदि प्रमुख है।
मुर्दों का टीला (1948), कब तक पुकारूं (1957), हुजूर, रत्न की बात, राय और पर्बत, भारती का सपूत, विषाद मठ, सीधा-सादा रास्ता, लखिमा की आंखें, प्रतिदान, काका, अंधेरे के जुगनू (1953), लोई का ताना, उबाल, पराया, आंधी की नावें, धरती मेरा घर, अंधेरे की भूख, छोटी-सी बात, बोलते खंडहर, पक्षी और आकाश, बौने और घायल फूल, राह न रुकी, जब आवेगी काली घटा, पथ का पाप, कल्पना, प्रोफ़ेसर, दायरे, मेरी भाव बाधा हरो, पतझड़, धूनी का धुआं, यशोधरा जीत गई (1958), आखिरी आवाज़ (1962), देवकी का बेटा आदि प्रसिद्ध हैं।
राघव द्वारा लिखे गए नाटकों में स्वर्ग का यात्री, घरौंदा (1946), रामानुज और विरूदक प्रमुख है। उन्होंने आलोचना विधा में भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका, संगम और संघर्ष, प्रगतिशील साहित्य के मानदंड, काव्यदर्श और प्रगति, भारतीय परंपरा और इतिहास, महाकाव्य विवेचन, समीक्षा और आदर्श, तुलसी का कला शिल्प, काव्य कला और शास्त्र, आधुनिक हिन्दी कविता में विषय और शैली, भारतीय संत परंपरा और समाज, आधुनिक हिन्दी कविताओं में प्रेम और श्रृंगार, गोरखनाथ और उनका युग आदि लिखी।
रांगेय राघव ने अनेक रिपोर्ताज लिखें जिनमें से ‘तूफानों के बीच’ काफी चर्चित रहा। उनके द्वारा रचित कविता संग्रहों में पिघलते पत्थर, श्यामला, अजेय, खंडहर, मेधावी, राह के दीपक, पांचाली, रूप छाया आदि प्रमुख है।
रांगेय राघव को उनकी रचनाओं के लिए उनके छोटे से जीवनकाल में कई पुरस्कार व सम्मान मिले। उन्हें वर्ष 1951 में हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार मिला। उन्हें डालमिया पुरस्कार, उत्तरप्रदेश शासन, राजस्थान साहित्य अकादमी सम्मान मिले हैं। उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1966 में महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कहानीकार रांगेय राघव का देहांत 39 वर्ष की अवस्था में 12 सितंबर, 1962 को कैंसर होने से हुआ था।
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