वैश्विक महामारी कोरोना संकट के बीच आयोजित किया जा रहा राज्यसभा का मानसून सत्र आज बुधवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है। राज्यसभा का यह मानसून सत्र निर्धारित समय से आठ दिन पहले स्थगित किया गया। कोरोना महामारी के कारण छोटी अवधि का होने के बावजूद सत्र के दौरान 25 विधेयकों को पारित किया गया। इस दौरान सदन में हंगामे और अशोभनीय आचरण के कारण आठ विपक्षी सदस्यों को भी निलंबित कर दिया गया था। कोरोना के बीच यह सत्र कई मामलों में ऐतिहासिक रहा।
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि राज्यसभा का यह सत्र कुछ मामलों में ऐतिहासिक रहा, क्योंकि इस दौरान उच्च सदन के सदस्यों को बैठने की नई व्यवस्था के तहत पांच अन्य स्थानों पर बैठाया गया। ऐसा उच्च सदन के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। इसके अलावा सदन ने पहली बार लगातार दस दिनों तक काम किया। शनिवार और रविवार को सदन में अवकाश नहीं रहा। उन्होंने कहा कि सत्र के दौरान 25 विधेयकों को पारित किया गया या लौटा दिया गया। इसके साथ छह विधेयकों को पेश किया गया। सत्र के दौरान पारित किए गए विधेयकों में कृषि क्षेत्र से संबंधित 3 महत्वपूर्ण विधेयक, महामारी संशोधन विधेयक, विदेशी अभिदाय विनियमन संशोधन विधेयक, जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक शामिल हैं।
सभापति नायडू ने कहा कि पिछले चार सत्रों के दौरान उच्च सदन में कामकाज का कुल प्रतिशत 96.13 फीसदी रहा है। उन्होंने पिछले दो दिनों से सदन के कामकाज में कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों द्वारा भाग नहीं लिए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। नायडू ने कहा कि राज्यसभा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि उपसभापति को हटाये जाने का नोटिस दिया गया। उन्होंने इसे खारिज कर दिया, क्योंकि वह नियमों के अनुरूप नहीं था। सभापति ने इसके बाद सदन में हुई घटनाओं को पीड़ादायक बताया।
इसके अलावा संसद ने बुधवार को तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दी। इनके तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को निकालने की अनुमति होगी। राज्यसभा ने ध्वनि मत से औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा पर शेष तीन श्रम संहिताओं को पारित किया। इस दौरान आठ सांसदों के निष्कासन के विरोध में कांग्रेस, वामपंथी और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राज्यसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया।
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केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने तीनों श्रम सुधार विधेयकों पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा कि श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है। उन्होंने यह भी बताया कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है। गंगवार ने कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए, क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं।
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