लोकसभा चुनाव अब बस थोड़े ही दिनों के फासले पर खड़े हैं। राजनीतिक पार्टियों में हलचल अपने चरम पर है। 7 चरणों में लोकसभा चुनाव पूरे होंगे जो कि 11 अप्रैल को शुरू होने जा रहे हैं।
राजस्थान में हाल ही विधानसभा चुनाव भी हुए जिसमें कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था। राजनीतिक पार्टियां टिकटों के हेर फेर में लगी हुई हैं। ऐसा ही कुछ राजस्थान के दो बड़े दिग्गज राजनेताओं में देखा जा रहा है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी फिलहाल चिंता का सामना कर रहे हैं। चिंता ऐसे कि दोनों ही बड़े नेताओं के पास राज्य की जिम्मेदारी के साथ साथ अपने अपने बेटों के भविष्य की भी चिंता है। अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लोकसभा चुनावों के जरिए अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरूआत करने जा रहे हैं।
वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत सिंह झालावाड़-बारां सीट से भाजपा के टिकट पर पिछले तीन बार से सांसद बनते आ रहे हैं। इससे पहले इस सीट पर वसुंधरा राजे तीन बार सांसद रह चुकी हैं।
अब वसुंधरा राजे के सामने समस्या यही है कि वे शीर्ष नेतृत्व के साथ कतना तालमेल बिठा पाती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ वसुंधरा की खींच तान दिखती ही आई है। जिसमें अक्सर वसुंधरा अपनी बात मनवाती ही आई हैं लेकिन विधानसभा चुनाव की हार के बाद पार्टी ने वसुंधरा को उपाध्यक्ष बनाकर केंद्र में बुला लिया। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी वसुंधरा को यह चुनाव लड़ने पर मजबूर भी कर सकती है।
ऐसे में बेटे दुष्यंत सिंह का भविष्य खतरे में पड़ सकता है साथ ही साथ वसुंधरा राजे के हाथ से भी राजस्थान की सत्ता खिसक सकती है। इस दोहरे खतरे से वसुंधरा राजे को फिलहाल बचना है। ऐसे में वे पार्टी के सामने चुनाव लड़ने की एक शर्त भी रख सकती है जिसमें झालावाड़ में खाली पड़ी उपचुनाव की सीट पर वे दुष्यंता का नाम दर्ज करवा सकती हैं।
अब अगर झालावाड़ सीट से दुष्यंत को मौका मिलता भी है तो भी वहां पर उनकी जीत आसान नहीं होने वाली। हालांकि विधानसभा में वसुंधरा ने वहां से जीत हासिल की थी लेकिन स्थानीय लोग वसुंधरा से ज्यादा दुष्यंत से नाराजगी रखते हैं।
झालावाड़-बारां में वसुंधरा का अधिपत्य रहा है फिर भी दुष्यंत ने वहां पर कोई बड़ी साख हासिल नहीं की है। ऐसे में चुनाव में यही दुष्यंत पर भारी पड़ सकता है।
ऐसे तो प्रदेश कांग्रेस में पहले से ही पद संभाले हुए हैं लेकिन अब मुख्यमंत्री के बेटे वैभव लोकसभा के लिए तैयारी कर रहे हैं। सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पिता के पास होने के कारण इसका फायदा वैभव को मिल सकता है लेकिन इसका नुकसान भी नजर आ सकता है।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर काफी घमासान हुआ। अब जब कुर्सी गहलोत के पास है तो जाहिर है कि वे अपने बेटे को प्रोजेक्ट करेंगे ही। ऐसे में सचिन पायलट जूनियर गहलोत को अपने प्रतिद्वंदी के तौर पर देखते हैं।
सचिन पायलट ने हाल ही एक बयान भी दिया था जिसमें कहा गया था कि लोकसभा चुनावों में उनके परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा। ऐसे में कयास लगाया जा सकता है कि सचिन का निशाना किसकी ओर था।
एक मुद्दा परिवारवाद का भी है जिसको लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भी बुरी तरह से घेरा जाता रहा है। ऐसे में वैभव गहलोत पर ऐसे गंभीर सवाल खड़े होंगे। परिवारवाद का सवाल दुष्यंत सिंह पर भी खड़ा हो सकता है लेकिन यह विरोध उतना प्रभावी नहीं होगा क्योंकि वे पहले से ही सक्रिय राजनीति में बने हुए हैं।
गहलोत के सामने टिकट से ज्यादा बड़ी समस्या फिलहाल वैभव के लिए सुरक्षित सीट खोजना है। एक बड़ी चीज यह भी है कि अशोक गहलोत जैसे दिग्गज नेता के बेटे के रूप में वैभव के पास भी बड़ी चुनौती होगी। बहरहाल चुनावों में ये समीकरण देखने लायक होंगे।
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