C. Rajagopalachari left the Congress after having ideological differences with Pandit Nehru and formed a separate party.
स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी और आज़ाद भारत के प्रथम गवर्नर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की आज 143वीं जयंती है। सी. राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को तमिलनाडु में कृष्णागिरी जिले की होसुर तालुका के थोरापल्ली गांव में एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत होसुर के सरकारी स्कूल से की थी। कॉलेज के लिए वो फिर बैंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज गए जहां से ग्रेजुएशन कर उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से लॉ की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। उन्हें लोग प्यार से ‘राजाजी’ के नाम से बुलाते थे। सी राजगोपालाचारी एक समय कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं में गिने जाते थे और महात्मा गांधी के काफी करीबी भी रहे। इस में मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
राजगोपालचारी कॉलेज के दिनों से ही समाज में फैले जात-पात के आडंबर के खिलाफ मुखर होकर बोलते रहे। जहां मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर मनाही थी, वहां उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए डटकर विरोध किया। इसके अलावा उन्होंने किसानों के लिए वर्ष 1938 में एग्रीकल्चर डेट रिलीफ एक्ट कानून के लिए भी अभियान चलाया।
राजनीति के लक्षण चक्रवर्ती राजगोपालाचारी में कॉलेज के दिनों से ही दिखने लगे थे। वर्ष 1904 में वो कांग्रेस में शामिल होकर राजनीति में उतरे। वर्ष 1946 में बनी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में उनको उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गईं। इसके अलावा आजादी मिलने के बाद सी. राजगोपालाचारी को भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाया गया। अपने करियर में वो वर्ष 1952 में मद्रास के मुख्यमंत्री भी बने।
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर राजनीति के जरिए देश सेवा के लिए आगे चलकर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से वर्ष 1954 में सम्मानित किया गया। हालांकि, कांग्रेस में काफी समय तक काम करने के बाद उनके नेहरू से कुछ वैचारिक मतभेद भी देखे जाने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। आगे चलकर सी. राजगोपालाचारी ने अपनी अलग ‘एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी’ का गठन किया।
एक राजनेता और क्रांतिकारी होने के साथ-साथ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी लेखन का भी शौक रखते थे। उन्होंने रामायण, महाभारत और गीता का अनुवाद अपनी भाषा में किया। इसके अलावा कई मौलिक कहानियां भी लिखीं। साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें पुस्तक ‘चक्रवर्ती थिरुमगम्’ के लिए सम्मान भी मिला। तमिल भाषा में काफी अच्छी पकड़ रखने वाले सी राजगोपालचारी ने रामायण का तमिल में अनुवाद भी किया। जेल में रहने के दौरान उन्होंने ‘मेडिटेशन इन जेल’ नाम से अपनी किताब भी लिखीं। सी. राजगोपालाचारी ने 92 वर्ष की उम्र में 25 दिसंबर, 1972 को चेन्नई में आखिरी सांस ली।
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