Raghuvir Sahay's journalism made his poems strong and relevant.
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लघु-कथा लेखक, निबंधकार, आलोचक, अनुवादक, पत्रकार व कवि रघुवीर सहाय की 9 दिसम्बर को 94वीं जयंती है। वह वर्ष 1969 से 1982 तक राजनीतिक-सामाजिक हिंदी साप्ताहिक ‘दिनमान’ के मुख्य संपादक भी रहे थे। उन्होंने आकाशवाणी में बतौर उपसंपादक काम किया था। सहाय ने अपनी कविताओं के माध्यम से रोजमर्रा के किस्सों को अपने काव्य में जगह दीं। रघुवीर को साहित्यिक रचना ‘लोग भूल गए हैं’ के लिए वर्ष 1984 के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने लेखन में सरल, सहज व सधी हुई भाषा का प्रयोग किया। इस ख़ास अवसर पर जानिए रघुवीर सहाय के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
प्रसिद्ध लेखक व कवि रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर, 1929 को उत्तरप्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा लखनऊ में ही संपन्न हुईं। उन्होंने वर्ष 1951 में अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। सहाय ने अपना करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू किया था। वर्ष 1949 में उन्होंने ‘दैनिक जनजीवन’ में कार्य किया। बाद में वर्ष 1951 में वह दिल्ली आए और ‘प्रतीक’ पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में कार्य किया। इसके बाद रघुवीर सहाय आकाशवाणी के समाचार विभाग में उप-संपादक बन गए थे। वर्ष 1955 में रघुवीर ने विमलेश्वरी सहाय से शादी कीं।
रघुवीर सहाय ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखन की शुरुआत वर्ष 1946 में की थी। वह हिंदी में पद्य विधा की नई कविता के कवि थे। उनकी कुछ कविताएं साहित्यकार अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक में संकलित हैं। रघुवीर कविता लेखन के अलावा रचनात्मक और विवेचनात्मक गद्य भी लिखा करते थे। उन्होंने काव्य-रचना में पत्रकार की दृष्टि का सर्जनात्मक उपयोग किया। सहाय मानते थे कि अखबार की खबरों के भीतर दबी और छिपाई गई ऐसी खबरें होती हैं, जिनमें मानवीय पीड़ा छिपी रह जाती है। इन छिपी हुई मानवीय पीड़ा की अभिव्यक्ति करना ही कविता का दायित्व है।
उनकी पत्रकारिता उनकी कविताओं को दमदार और प्रासंगिक बनाती है। इससे उनकी कविताएं सत्य के बेहद करीब बन गई थी। सहाय ने अपनी कविताओं के माध्यम से रोजमर्रा के किस्सों को अपने काव्य में जगह दीं। उन्होंने काव्य में मुहावरों का कुशलता के साथ उपयोग किया, जिनका प्रयोग करने वाले वह आधुनिक कवि थे।
सहाय की कविताएं आजादी के बाद भारत में आए राजनीतिक परिवर्तन की तस्वीर को समग्रता में पेश करती हैं, जो आजादी के बाद देश में बने नए मानवीय संबंधों पर आधारित हैं। उनकी समूची काव्य-यात्रा का केंद्रीय लक्ष्य ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था को निर्मित करना है, जिसमें शोषण, अन्याय, हत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक संप्रभुता, आत्महत्या, जाति-धर्म में बंटे समाज के लिए कोई जगह न हो। जिन उम्मीदों और सपनों के लिए देश की आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी उन्हें साकार करने में जो बाधाएं आ रही है, उन पर लगातार विरोध उनकी काव्य रचना का प्रमुख लक्ष्य रहा।
कवि रघुवीर सहाय की पहली रचना ‘सीढ़ियों पर धूप’ (1960) हैं। इसके बाद उनकी प्रमुख रचनाएं- ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो-हँसे जल्दी हँसे’ (1974), ‘लोग भूल गए है’ आदि हैं। उन्हें ‘लोग भूल गए हैं’ कृति के लिए वर्ष 1984 के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
अपनी काव्य-शैली में रघुवीर सहाय ने सरल, सहज व सधी हुई भाषा का प्रयोग किया। यहां तक कि उनकी भाषा शहरी होते हुए भी बहुत ही सहज व्यवहार वाली है, सजावट की वस्तु नहीं।
नामवर कवि व साहित्यकार रघुवीर सहाय ने 30 दिसंबर, 1990 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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