भारतीय संस्कृति व समाजशास्त्र के विद्वान डॉ. राधाकमल मुखर्जी की आज 144वीं जयंती है। मुखर्जी एक प्रसिद्ध विचारक और सामाजिक वैज्ञानिक थे। वो लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति व अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे थे। उन्होंने भारत की आज़ादी में भी रचनात्मक भूमिका निभाई थी। डॉ. मुखर्जी को भारत सरकार ने वर्ष 1962 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। इस अवसर पर जानिए डॉ. राधाकमल मुखर्जी के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
डॉ. राधाकमल मुखर्जी का जन्म 7 दिसम्बर, 1889 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर में हुआ था। उनके पिता एक वकील और राजनेता हुआ करते थे। राधाकमल की इतिहास में शुरू से ही काफी रुचि थी। मुखर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बहरामपुर में ही पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने कृष्णानगर कॉलेज से पढ़ाई कीं।
बाद में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ने के लिए एकेडमिक स्कॉलरशिप प्राप्त हुईं। डॉ. राधाकमल ने अंग्रेजी और इतिहास में स्नातक ऑनर्स की डिग्री प्राप्त कीं। इसके बाद यहीं से डॉ. मुखर्जी ने पीएचडी की उपाधि हासिल कीं। यहां पढ़ाई करते हुए उनका संपर्क एच एम पेरीवल, अरबिंदो घोष के भाई एम घोष और भाषाविद् हरिनाथ डे से हुआ था।
डॉ. मुखर्जी ने अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत लाहौर के एक कॉलेज में अध्यापन कार्य से की थी। इसके बाद वह कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य करने लगे। वर्ष 1921 में डॉ. मुखर्जी समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर व अध्यक्ष पद पर ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ में आ गए।
उनके नेतृत्व में ही लखनऊ विश्वविद्यालय में सबसे वर्ष 1921 में समाजशास्त्र का अध्ययन प्रारम्भ हुआ था। इस कारण से वह उत्तर प्रदेश के समाजशास्त्र के प्रणेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। वर्ष 1952 में उन्होंने अपने पद से सेवानिवृति ली। इसके बाद वह वर्ष 1955 से 1957 तक इस विश्वविद्यालय के कुलपति रहे थे।
इतिहास के डॉ. राधाकमल मुखर्जी अत्यन्त मौलिक दार्शनिक थे। वह 20वीं सदी के कतिपय बहुविज्ञानी सामाजिक वैज्ञानिकों में से एक थे, जिन्होंने अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, परिस्थिति विज्ञान, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, साहित्य, समाजकार्य, संस्कृति, सभ्यता, कला, रहस्यवाद, संगीत, धर्मशास्त्र, अध्यात्म, आचारशास्त्र, मूल्य आदि विभिन्न विषयों पर अपना बहुमूल्य योगदान दिया।
प्रोफेसर डॉ. मुखर्जी ने अपने जीवन के दौरान 50 प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। उन्हें वर्ष 1962 में भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। वर्ष 1955 में लंदन के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान मैकमिलन ने डॉ. मुखर्जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया था।
प्रोफेसर डॉ. राधाकमल मुखर्जी की प्रमुख रचनाओं में ‘द सोशल स्ट्रक्चर ऑफ वैल्यूज’, ‘द सोशल फशन्स ऑफ़ आर्ट’, ‘द डाइनानिक्स ऑफ़ मॉरल्स’, ‘द फ़िलासाफ़ी ऑफ़ पर्सनेल्टी’, ‘द फ़िलासाफ़ी ऑफ़ सोशल साइन्सेज’, ‘द वननेस ऑफ़ मैनकाइंड’, ‘द फ़्लावरिंग ऑफ़ इंडियन आर्ट’, ‘कास्टिक आर्ट ऑफ़ इंडिया’ आदि शामिल हैं। डॉ. मुखर्जी ने ‘भगवदगीता’ पर एक भाष्य भी लिखा था।
कई विषयों के विद्वान रहे डॉ. राधाकमल मुखर्जी ने 24 अगस्त, 1968 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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