‘केवल पानी पर खड़े होकर या उसे देखकर समुद्र पार नहीं किया जाता, इसे पार करने के लिए कदम बढ़ाना होगा।’ यह बात बांग्ला साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर रबीन्द्रनाथ टैगोर (रबीन्द्रनाथ ठाकुर) ने कही थी। उनकी बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे मानते थे कि ‘विश्वास’ से हर जंग जीती जा सकती है। इस महान रचनाकार का जन्म 7 मई के दिन पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में हुआ था। साहित्य में ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर की 162वीं जयंती के ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
कोलकाता में देवेंद्रनाथ और शारदा देवी के घर हुआ था जन्म
- रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में देवेंद्रनाथ और शारदा देवी के घर में हुआ था।
- रबीन्द्रनाथ की स्कूली शिक्षा सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे, इसलिए उनका नाम वर्ष 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में दर्ज कराया। उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्ययन किया, लेकिन वर्ष 1880 में बिना डिग्री ही वापस लौट आए थे।
- बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी।
- साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो – कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला सभी विधाओं में उन्होंने रचना की।
बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है रबीन्द्रनाथ संगीत
- रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही प्रकृति का सान्निध्य बहुत भाता था। वह हमेशा सोचा करते थे कि प्रकृति के सानिध्य में ही विद्यार्थियों को अध्ययन करना चाहिए। इसी सोच को मूर्तरूप देने के लिए वह 1901 में सियालदह छोड़कर आश्रम की स्थापना करने के लिए शान्ति निकेतन आ गए।
- टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रबीन्द्रनाथ संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है।
- टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में एक नई ऊर्जा ले कर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इनमे ‘चोखेर बाली’, ‘घरे बहिरे’, ‘गोरा’ आदि शामिल है।
- 1913 ईस्वी में ‘गीतांजलि’ के लिए रबीन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला जो कि एशिया मे प्रथम विजेता साहित्य में है।
- ‘गीतांजलि’ लोगों को इतनी पसंद आई कि अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रैंच, जापानी, रूसी आदि विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया।
- उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्मवाद तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है।
- 16 अक्तूबर 1905 को रबीन्द्रनाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनाया गया रक्षाबंधन उत्सव से ‘बंग-भंग आंदोलन’ का आरम्भ हुआ। इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया।
‘जलियांवाला कांड’ के विरोध में लौटा दी नाइट हुड’ की उपाधि
- टैगोर ने विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक ‘जलियांवाला कांड’ (1919) की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम द्वारा प्रदान की गई, ‘नाइट हुड’ की उपाधि लौटा दीं।
- रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं, जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं।
- हमारे देश का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित रचनाएं हैं।
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