प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक व शिक्षाविद प्रोफेसर यशपाल की आज 96वीं जयंती है। उन्होंने भारत की आजादी के बाद शिक्षा व्यवस्था को सही दिशा में ले जाने में अपना अहम योगदान दिया था। प्रोफेसर यश पाल ने अपना कॅरियर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) से शुरू किया था। बाद में वह वर्ष 1986 से 1991 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष पद पर भी रहे। वर्ष 2013 में प्रो. यशपाल को भारत सरकार ने देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया। कॉस्मिक रे पर विशेष अध्ययन ने उन्हें दुनियाभर में ख्याति दिलाई थी। इस खास मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
यश पाल का जन्म 26 नवंबर, 1926 को पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) के झांग शहर में हुआ था। उनका बचपन क्वेटा में गुजरा। वर्ष 1935 में वहां भूकम्प आने के कारण उनका पुस्तैनी मकान नष्ट हो गया था। उनके पिता का तबादला मध्यप्रदेश के जबलपुर में हो गया। वह भी अपने परिवार के साथ वही आ गए। वर्ष 1947 में वह अपने पिता के साथ दिल्ली आ गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू में हुई। लेकिन जबलपुर आने के बाद उन्हें हिंदी और अंग्रेजी भाषा में शिक्षा दी गई।
उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए विज्ञान विषय को चुना। यशपाल ने वर्ष 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय से फिजिक्स में मास्टर की डिग्री हासिल की। उन्होंने बाद में डॉक्टरेट की पढ़ाई के लिए बोस्टन, संयुक्त राज्य अमेरिका गए और वर्ष 1958 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से भौतिकी में पीएचडी की उपाधि हासिल की थी।
प्रो. यशपाल ने अपने करियर की शुरूआत टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च से की। उन्होंने कॉस्मिक रे यानी ब्रह्मांडीय विकिरणों पर विशेष अध्ययन किया था। उन्हें इस अध्ययन से दुनियाभर में ख्याति मिली। वर्ष 1972 में भारत सरकार ने अपना अंतरिक्ष विभाग स्थापित किया। वर्ष 1973 में सरकार ने उन्हें स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, अहमदाबाद का पहला निदेशक नियुक्त किया गया था, जिसने संचार प्रौद्योगिकी में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) की नींव रखी थी। शिक्षा के लिए उपग्रह आधारित प्रणाली के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वर्ष 1986 से 1991 तक प्रोफेसर यशपाल को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने अपने पद पर रहते हुए पहली बार बच्चों पर बस्ते के बढ़ते बोझ पर सरकार का ध्यान केंद्रित किया। शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने वर्ष 1993 में ओवरबर्डन के मुद्दे पर भारत सरकार ने यशपाल की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने लर्निंग विथाउट बर्डन नामक रिपोर्ट प्रस्तुत की। वर्ष 1983-1984 में वह योजना आयोग में मुख्य सलाहकार भी रहे थे।
प्रोफेसर यशपाल वर्ष 2007 से 2012 तक जेएनयू के कुलपति भी रहे थे। जब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार की, तब प्रो यशपाल को इसका अध्यक्ष बनाया गया। समिति ने उच्च शिक्षा में काफी बदलाव के सुझाव दिए। उन्होंने विज्ञान की बातों को आसानी से समझाया था। उन्होंने दूरदर्शन पर टर्निंग पाइंट नामक एक विज्ञान कार्यक्रम को भी होस्ट किया था।
प्रो. यश पाल को विज्ञान के क्षेत्र में दिए उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2009 में यूनेस्को ने ‘कलिंग’ सम्मान से सम्मानित किया। उन्हें भारत सरकार ने अपने तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से वर्ष 1976 में और वर्ष 2013 में ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया।
भारतीय शिक्षाविद प्रोफेसर यशपाल का निधन उत्तर प्रदेश के नोएडा में 24 जुलाई, 2017 को हुआ।
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