Prithviraj Kapoor laid the foundation of Prithvi Theater to promote the theater.
60 के दशक में भारतीय सिनेमा में एक ऐसी क्लासिकल फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ का निर्माण हुआ, जिसने हिंदी सिनेमा को दुनिया के सामने अलग पहचान दिलाने का काम किया। इस फिल्म में अकबर के किरदार को भला कौन भूल पाया है। फिल्म में अकबर का किरदार निभाने वाले दिग्गज अभिनेता एवं थियेटर आर्टिस्ट पृथ्वीराज कपूर थे, जिन्होंने फिल्म को भव्य बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। इस फिल्म को बेहतरीन बनाने के लिए पृथ्वीराज का अहम योगदान था। उनकी शख्सियत की दीवानगी इस कदर थी कि अंधे भी उनकी आवाज के दम पर फिल्म देखने जाया करते थे। आज पृथ्वीराज कपूर की 117वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर, 1906 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के लयालपुर जिले के समुंदरी में हुआ था। पृथ्वीराज के पिता पुलिस अफसर हुआ करते थे। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई लयालपुर और लाहौर में हुई। वे वकील बनना चाहते थे, इसलिए पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से दो साल का वकालत का कोर्स किया। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दरअसल, पृथ्वी की बचपन से ही थियेटर में रुचि थी। वकालत करने के बाद उन्हें यह पेशा कुछ खास नहीं लगा और वे लायलपुर में ही नाटक किया करते। नाट्यकला में उनकी बड़ी रुचि थी। कई लोग उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए प्रेरित करते थे।
पृथ्वीराज कपूर वर्ष 1928 में अभिनय के लिए मुंबई आ गए थे। जहां उन्होंने साल 1929 में अपने सिने सफर की शुरुआत की। इस साल उनकी पहली लीड रोल वाली फिल्म ‘सिनेमा गर्ल’ रिलीज हुईं। गौरतलब है कि उस दौर में हिंदी सिनेमा अपने शुरुआती चरण में था। वह दौर साइलेंट फिल्मों का था। पृथ्वीराज ने भी करीब 9 साइलेंट फिल्मों में काम किया। वर्ष 1931 में उनकी पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ रिलीज हुई, जिसके बाद 1941 में फिल्म ‘सिकंदर’ रिलीज हुई, जिसने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया।
पृथ्वीराज कपूर की शादी 17 साल की उम्र में रामसर्नी मेहरा नाम की एक लड़की से हुई थी। दोनों के तीन बेटे राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर हुए। इनके अलावा दोनों के दो बेटे देवी और नंदी भी थे, मगर किन्हीं कारणों से उनकी मौत हो गई थी।
अगर पृथ्वीराज कपूर के फिल्मी करियर की कुछ बेहतरीन फिल्मों की बात करें तो फिल्म ‘दहेज’, ‘आवारा’ (1951), ‘आसमान महल'(1965), ‘तीन बहुरानियां'(1968), ‘कल आज और कल'(1971) और पंजाबी फिल्म ‘नानक नाम जहाज़ है’(1969) आदि शामिल हैं।
पृथ्वीराज कपूर ने थियेटर को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1944 में पृथ्वी थिएटर की नींव रखीं, जिसके तहत उन्होंने देशभर में कई ऐतिहासिक नाटकों का मंचन किया। थिएटर के जरिए पृथ्वी जो भी पैसा कमाते, वे अपनी फिल्मों में लगा देते थे। उनके बेटे राज कपूर भी इसी थियेटर से जुड़े थे। वर्ष 1946 में राज कपूर ने भी फिल्म इंडस्ट्री का रुख कर लिया। कुछ समय बाद ही पृथ्वीराज को ये अहसास हो गया था कि भारत में आगे थियेटर का कोई सुनहरा भविष्य नहीं है। हालांकि, थियेटर के प्रति उनका जूनून कम नहीं हुआ।
उन्होंने पृथ्वी थियेटर को एक स्थायी ठिकाना देने के लिए जुहू में जमीन खरीदीं, मगर वर्ष 1972 में पृथ्वीराज कपूर के निधन होने के कारण वे अपने जीते जी इसकी स्थापना नहीं कर सके। इसका जिम्मा शशि कपूर और उनकी पत्नी जिनेफर कैंडल ने लिया। पृथ्वी के निधन के 6 साल बाद जुहू में पृथ्वी थियेटर की शुरुआत कीं। 29 मई, 1972 को भारतीय सिनेमा के दिग्गज पृथ्वीराज कपूर का मुंबई में निधन हो गया।
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