बड़े शहरों में वायु प्रदूषण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है जिसका कारण है दिनोंदिन बढ़ते वाहन और उनसे निकलने वाला प्रदूषण। जो न केवल लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, आईक्यूएयर एयरविज़ुअल एंड ग्रीनपीस द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2018 के दौरान भारत जैसे विकासशील देशों के शहरों में अनियंत्रित वाहनों से निकलने वाली जहरीली धुंआ से बढ़ता वायु प्रदूषण चिंता का विषय है। इस रिपोर्ट में भारत की राष्ट्रीय राजधानी के तहत आने वाले गुरुग्राम दुनिया का सबसे प्रदूषित शहरों में शीर्ष स्थान पर है।
हालांकि पिछले साल की तुलना में उसका स्कोर कुछ बेहतर हुआ है। शीर्ष पांच शहरों में चार शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा हैं और एक शहर पाकिस्तान का है। इस रिपोर्ट में दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित 10 शहरों में से सात भारत के हैं।
सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में गुरुग्राम के बाद दूसरे स्थान पर गाज़ियाबाद, तीसरे स्थान पर फैसलाबाद (पाकिस्तान), चौथे स्थान पर फरीदाबाद तथा पांचवें पर भिवाड़ी मौजूद हैं। सूची में छठा स्थान नोएडा का है, जबकि सातवें और नौवें पायदान पर क्रमशः पटना (बिहार) और लखनऊ (उत्तर प्रदेश) हैं।
लिस्ट में आठवें स्थान पर चीन का होटन शहर है, और आखिरी (10वें) पायदान पर पाकिस्तान का ही लाहौर मौजूद है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ रही बड़ी अर्थव्यवस्था, यानी भारत के 22 शहर सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों के टॉप 30 में मौजूद हैं। इस सूची में पांच शहर चीन के हैं, दो शहर पाकिस्तान के तथा एक शहर बांग्लादेश का है।
आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018 में चीन ने प्रदूषण को कम करने की दिशा में खासा काम किया है, और पिछले साल की तुलना में उसकी धरती पर प्रदूषक तत्वों का औसत जमाव 12 फीसदी तक कम हुआ है।
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क्या है पीएम 2.5
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रदूषण मापने के लिए पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) स्तर 2.5 को मानक बनाया है जिसके आधार पर विश्वभर में वायु प्रदूषण का स्तर तय किया जाता है। पीएम 2.5 हवा में फैले अति सूक्ष्म खतरनाक कण है। 2.5 माइक्रोग्राम से छोटे इन कणों को पार्टिकुलेट मैटर 2.5 या पीएम 2.5 कहा जाता है।
प्रत्येक क्यूबिक मीटर हवा में पीएम 2.5 कणों के स्तर के आधार पर प्रदूषण का आकलन किया जाता है।
लंबे समय तक पीएम 2.5 कणों के संपर्क में रहने से —
ये हमारे श्वांस लेने पर फेफड़ों और लीवर को प्रभावित करते हैं।
इनके कारण खांसी, जुकाम, अस्थमा और हृदय से संबंधित बीमारियों का खतरा होता है।
फेफड़े के कैंसर, हृदयघात (हार्ट अटैक) और हृदय से जुड़ी अन्य बीमाारियों के होने के खतरा रहता है।
हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट्स के अनुसार, वायु प्रदूषण से प्रत्येक वर्ष विश्व में 70 लाख लोगों की असमय मृत्यु होती है।
इनके कारण सांस लेने पर ये अंदर जोते हैं जिनके कारण लोगों की औसत आयु तक में कमी आने लगती है।
बचाव के लिए करे ये उपाय
अपने स्तर पर प्रदूषण कम करने के लिए ये उपाय अपनाएं
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